Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१०८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ पोतानो मानीने भूल्यो.” आ टूंकी भाषा छे. कर्मे तने भूलाव्यो नथी. कर्मोए तने रखडाव्यो नथी. पूजामां आवे छे केः-

“कर्म बिचारे कौन भूल मेरी अधिकाई,
अग्नि सहै घनघात लोहकी संगति पाई.”

एटले लोढानो संग अग्नि करे तो अग्नि उपर घण पडे तेम आत्मा पोते परनो संग करे तो रागादि थाय, दुःखना घण पडे; पण परने लईने थाय एम नथी.

अहीं ए कहे छे के सोनुं अने चांदीना रजकणो भिन्न भिन्न छे, अनेकपणे छे. सोनाने धोळुं कहेवुं ए तो कथनमात्र छे, वस्तु एम छे नहि, तेवी रीते उपयोग अने अनुपयोग जेमनो स्वभाव छे एवां आत्मा अने शरीरने अत्यंत भिन्नपणुं होवाथी एकपदार्थपणानी प्राप्ति नथी तेथी अनेकपणुं ज छे.’ अहाहा! ज्ञायकस्वभावी आत्मा नित्यउपयोगस्वरूप वस्तु-तत्त्व छे. ए अनादि अनंत अस्तित्ववाळी सत्यार्थ परमार्थ वस्तु छे. आत्मा अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत आनंद, अनंत शांति, अनंत स्वच्छता, अनंत ईश्वरता-एम अनंत अनंत गुणोना अस्तित्वना स्वभावथी स्वभाववान वस्तु छे.

परने पोतानुं मानवुं ए तो मिथ्या भ्रम-अज्ञान छे ज. परंतु आत्माने एक समयनी पर्याय जेटलो माने ए पण पर्यायमूढ जीव छे, परसमय छे, मिथ्याद्रष्टि छे. अहाहा! वस्तु तो आखी आनंदकंद, ज्ञानानंदरसकंद, त्रिकाळी सत्ना सत्त्वरूपे अंदर पडी छे. एक समयनी पर्याय तो एना अनंतमा भागे एक अंश व्यक्त छे. ए अनंत- स्वभावनो स्वभाववान तुं, एनुं त्रिकाळी सत्त्व कांई एक समयनी पर्यायमां नथी आवतुं. आवो भगवान पूर्णानंदनो नाथ छे. एने परपणे मानवो के परथी हुं छुं एम मानवो ए तो मिथ्याभ्रम, अज्ञान अने भवभ्रमणनुं मूळ छे. ८४ लाखना अवतारनी ए जड छे. संयोगी चीज परवस्तु अने संयोगीभाव एटले पुण्य-पापना विकार ए बधुं छे. पण पोताना स्वभाववानने भूलीने संयोगी चीज अने संयोगीभावने पोताना मानवा ए भवभ्रमणनी जड छे.

वस्तु सहजानंदस्वरूप भगवान पूर्णानंदनो नाथ नित्यउपयोगस्वभावे अंदर पडेली छे एने आत्मतत्त्व कहीए. एना उपर अनंतकाळमां पण नजर गई नहि अने बहार जोया कर्युं. पोते जोनारो केवडो अने कयां छे अंदर ए जोयुं नहि, अने मात्र परने अने बहु बहु तो एक समयनी पर्यायने जोई. पर्याय जेमांथी ऊभी थाय छे अने जेना आश्रये छे एवी त्रिकाळी, ध्रुव चीजने जोई नहि अने मानी नहि. अने शरीरनी क्रियाओ करो, संयम शरीरथी पळे एम शरीरनी क्रियामां तथा गामने सुधारी दउं, दुनियाने सुधारी दउं, उपदेशथी समजावीने लोकोने तारी दउं इत्यादि क्रियाओ तथा भावोमां पोतापणुं