Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४प०ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१० छे एम जाणी पोताना शुद्ध एक ज्ञानस्वभावमां लीन थई प्रवर्ततो ज्ञानी शोभे छे. जुओ, आ ज्ञानीनी शोभा! ज्यारे अज्ञानी परभावथी मारी दशा थाय, परभाव विना मने न चाले-एम जाणतो थको परभावमां लीन थई प्रवर्ते छे ते अशोभा छे, कलंक छे.

पण शरीरनी निरोगता होय तो धर्म थई शके ने? एम नथी भाई! शरीरनी निरोगता होय तो मननी स्फुर्ति रहे ने धर्म थई शके एम मानी अज्ञानी शरीरथी एकत्व करे छे, पण ए तो अशोभा छे, कलंक छे भाई! केमके शरीरथी एकत्व छे ए ज मिथ्यात्वनुं महाकलंक छे. ज्ञानी तो रोगना काळे पण हुं रोगनी दशानो जाणनार मात्र छुं एम जाणी पोताना शुद्ध स्वभावमां रहेतो थको उज्ज्वळ पवित्र शोभाने पामे छे. ल्यो, आवी वातु छे.

आ प्रमाणे परभाव-अपेक्षाथी नास्तित्वनो भंग कह्यो.

*

हवे तेरमा भंगना कळशरूपे काव्य कहेवामां आवे छेः-

* कळश २६०ः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘पशुः’ पशु अर्थात् एकांतवादी अज्ञानी, ‘प्रादुर्भाव– विराम–मुद्रित–बहत्– ज्ञान–अंश–नाना–आत्मना निर्ज्ञानात्’ उत्पाद-व्ययथी लक्षित एवा जे वहेता (- परिणमता) ज्ञानना अंशो ते-रूप अनेकात्मकपणा वडे ज (आत्मानो) निर्णय अर्थात् ज्ञान करतो थको, ‘क्षणभङ्ग–सङ्ग–पतितः’ क्षणभंगना संगमां पडेलो, ‘प्रायः नश्यति’ बाहुल्यपणे नाश पामे छे;........

जुओ, शुं कीधुं? के आत्मा उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त सत् छे. एटले शुं? के ते ध्रुवपणे नित्य टकतो एवो नवी नवी अवस्थापणे उत्पन्न थाय छे, ने पूर्वपूर्व अवस्थापणे नाश पामे छे. आम एक समयमां अनंतगुणनी अनंती पर्यायो उत्पन्न थाय छे, अने बीजे समये तेनो व्यय थई जाय छे. आ वस्तुनो पर्यायधर्म छे. आम आत्मा नित्य-अनित्य बन्नेरूप छे. छतां अज्ञानी उत्पाद-व्ययथी लक्षित अर्थात् उत्पाद-व्ययथी जाणवामां आवता ज्ञाननां अंशरूप अनित्य भावोमां ज एकांते आ आत्मा छे एम निर्णय करे छे, एम माने छे. अहाहा.....! शुं कीधुं? के क्षणभंगना संगमां पडेलो-अनित्य पर्यायना संगमां पडेलो ते आ उत्पाद-व्ययरूप पर्याय जेटलो ज हुं आत्मा छुं एम माने छे. ते पोतानो जे ध्रुव नित्यपणानो स्वभाव छे तेने मानतो ज नथी. पोताना नित्य स्वभावने द्रष्टिओझल करी, आ उत्पाद-व्ययथी लक्षित एवा वहेता जे ज्ञानना अंशो ते ज हुं आखो आत्मा छुं एम ते