दईने असंख्यप्रदेशी एक अखंड प्रदेशमां अनंत गुणधाम एवा ध्रुव आत्मानी आशाए एने ज्यां तपासवा जाय छे त्यां अज्ञानी भोंठो पडे छे, अर्थात् एने कांई ज हाथ आवतुं नथी, केमके पर्याय विनानुं ध्रुव होई शकतुं ज नथी. अहा! पर्यायथी रहित जुदुं ए ध्रुव जोवा जाय पण एने क्यां जोवा मळे?
प्रश्नः– तो आप कहो छो के -ध्रुवमां पर्याय नथी, ने पर्यायमां ध्रुव नथी. ए शुं छे?
उत्तरः– ए बीजी अपेक्षाए वात छे भाई! एक समयनी अवस्थानो अंश ते त्रिकाळीध्रुवरूप नथी, ने त्रिकाळी ध्रुव एक समयनी अवस्थारूप थई जतो नथी एम परस्पर अन्यतानी वात छे. ए तो समयसार गाथा ४९ मां ‘अव्यक्त’ ना पांचमां बोलमां आवे छे के- “व्यक्तपणुं तथा अव्यक्तपणुं भेळा मिश्रितरूपे तेने प्रतिभासवा छतां पण ते व्यक्तपणाने स्पर्शतो नथी माटे अव्यक्त छे.” त्यां तो (निश्चये) अभेद एक ध्रुव तत्त्व केवुं छे ते सिद्ध करवुं छे तो कह्युं के- ध्रुव एक समयना अंशमां -पर्यायमां नथी-पर्यायने स्पर्शतुं नथी, ने पर्याय ध्रुवमां नथी-ध्रुवने स्पर्शती नथी. पण अहीं ए वात नथी. अही तो एकांतवादी पर्यायरहित एकला ध्रुवनी आशा करीने बेठो छे, तेने कहीए छीए के-भाई! तुं पर्याय विनानुं ध्रुव जोवा जाश पण तने कांई हाथ नहि आवे, केमके एक तो पर्यायरहित ध्रुव होतुं ज नथी, अने ध्रुवनो निर्णय करनारी पर्याय छे, ध्रुव (कांई) ध्रुवनो निर्णय करतुं नथी. समजाणुं कांई....? अहो! आचार्यदेवे चीज जेवी छे तेवी दीवा जेवी चोकखी बतावी छे. अहीं तो कहेवुं छे के परिणाम अने परिणामी बे चीज एक वस्तुना अंशो छे. भाई! सर्वज्ञ परमेश्वरे कहेलुं तत्त्व बहु गूढ-सूक्ष्म छे भाई! अपूर्व अंतर-पुरुषार्थथी जणाय एवुं छे.
अहाहा.....! आत्मा सच्चिदानंद प्रभु सत् नाम शाश्वत ज्ञान ने आनंदनी त्रिकाळ ध्रुवता धरनारुं तत्त्व छे. एनी वर्तमान दशामां कार्य-पर्याय जे थाय छे ते एनी चीज छे, एनाथी अभिन्न छे. पंचास्तिकायमां आवे छे के- पर्याय रहित द्रव्य ने द्रव्यरहित पर्याय कोई चीज नथी. आ वस्तुस्थिति छे. तथापि अनित्य पर्यायने अनेकरूप परिणमती देखीने, आ (-पर्याय) हुं नहि एम मानीने, अज्ञानी एनाथी जुदा ध्रुव आत्मतत्त्वने शोधवा जाय छे, पण एने कांई नजरमां आवतुं नथी. जेम द्रष्टि-आंख फोडीने देखवा जाय एने कांई देखातुं नथी. तेम वर्तमान नजर-पर्यायने उडाडीने ध्रुव तत्त्व जोवा जाय तेने कांई ज जणातुं नथी. पण शुं जणाय? जोनारी नजर-पर्याय ज नथी त्यां शुं जणाय? वेदांतादि मतवाळा जे वस्तुने सर्वथा फूटस्थ माने छे, पर्यायने मानता ज नथी तेमने वस्तुतत्त्वनी कदीय उपलब्धि थती नथी.
हवे आवी वात समजवी आकरी पडे एटले लोको दया, दान, व्रत, भक्ति,