परिशिष्टः ४६३
लावीने प्रत्यक्ष अनुमान-प्रमाणथी अनुभव करी जुओ. एम के प्रत्यक्ष अनुभव करतां वस्तु नित्य-अनित्य आदि अनेकान्तरूपे अवश्य जणाशे-सिद्ध थशे. अमे कहीए छीए माटे स्वीकारो एम नहि, प्रत्यक्ष अनुमान-प्रमाणथी अनुभव करी जोतां वस्तु स्वयमेव अनेकान्तरूप देखाशे-सिद्ध थशे. ओहो...! आ तो मंदिर पर जेम सर्वशोभारूप कळश चढावे तेम आचार्यदेेवे समग्र जिनशासननी शोभारूप आ कळश चढाव्यो छे; जिनशासन टकावी राख्युं छे.
समाप्त