Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४६२ः प्रवचन रत्नाकर भाग- १० वात पण क्यां रही? अहा! हुं परनुं करी शकुं छुं, शरीरादिने हलावी शकुं छुं एम जेणे मान्युं ते (मान्यताथी) पररूप थई गयो. वळी परथी मने ज्ञान ने सुख थाय एम मान्युं एणे परने ज आत्मा मान्यो, तेणे पोताने मान्यो ज नहि ते पण परमां मूढ थई गयो, खोवाई गयो, अटवाई गयो. अनेकान्त तेने यथार्थ वस्तुस्वरूप देखाडी जिवाडे छे.

अहो! अनेकान्त तो वस्तुना स्वरूपने यथार्थपणे बतावनारो महासिद्धांत छे, कहो के जैनदर्शननुं मूळ रहस्य छे. आ तो एकलुं संजीवक अमृत छे भाई! ओहो...! आचार्य परमेष्ठी भगवान अमृतचंद्रदेवे अनेकान्तनी व्याख्या दईने एकलुं अमृत पीरस्युं छे. नित्य-अनित्य; एक-अनेक, सत्-असत् आदि धर्मो परस्पर विरुद्ध होवा छतां तेओ वस्तुने अविरोधपणे साधे छे, सिद्ध करे छे. आ सिवाय कोई बीजी रीते माने के- निश्चयथी पण थाय ने व्यवहारथी पण थाय, उपादानथी पण थाय ने निमित्तथी पण थाय ते अनेकान्तना स्वरूपने समज्यो ज नथी. एक तत्त्व छे ते पोतानी व्यवस्था करवामां पोते ज व्यवस्थित छे. एनी व्यवस्था नाम विशेष अवस्था (पर्याय) करवावाळुं बीजुं द्रव्य होय एवुं जैनशासनमां वस्तुस्वरूप नथी.

कळश टीकाकारे अनेकान्तनुं स्वरूप समजावतां नीचे मुजब कह्युं छे; अनेकान्त अर्थात् स्याद्वाद, ते ज जेनुं स्वरूप छे एवी सर्वज्ञवाणी अर्थात् दिव्यध्वनि छे. अहीं कोईने आही शंका थाय के अनेकान्त ते संशय छे (अने) संशय ते मिथ्या छे. तेना प्रति समाधान एम छे के अनेकान्त तो संशयनुं दूरकरणशील छे तथा वस्तुना स्वरूपनुं साधनशील छे. एनुं विवरण-जे कोई सत्तास्वरूप वस्तु छे ते द्रव्य-गुणात्मक छे. एमां जे सत्ता अभेदरूपथी द्रव्य कहेवाय छे ते ज सत्ता भेदरूपे गुणरूपे कहेवाय छे. एनुं नाम अनेकान्त छे.

हवे कहे छे- ‘ते अनेकान्त ज निर्बाध जिनमत छे अने यथार्थ वस्तुस्थितिनो कहेनार छे. कांई कोईए असत् कल्पनाथी वचनमात्र प्रलाप कर्यो नथी. माटे हे निपुण पुरुषो! सारी रीते विचार करी प्रत्यक्ष अनुमान-प्रमाणथी अनुभव करी जुओ.’

जुओ, आ जिनमत कह्यो. अनेकान्त ज निर्बाध जिनमत छे. गाथामां अलंघ्य पद छे ने! तेनो आ अर्थ कह्यो. कोई बाधा न करी शके एवो अनेकान्त ज निर्बाध जिनमत छे केमके ते जेवी वस्तुस्थिति छे तेवी कहे छे, वस्तुने तेवी स्थापे छे. भाई! आ तो सर्वज्ञ परमेश्वरनी वाणी बापा! आमां असत् कल्पनानो संभव ज क्यां छे? अहाहा.....! वस्तु जेवी छे तेवी केवलज्ञानमां प्रत्यक्ष थई अने ते भगवान केवळीनी वाणीमां आवी त्यां असत् कल्पना केवी? भगवाननी वाणीमां तो यथातथ्य वस्तुना स्वरूपनुं निरूपण आव्युं छे. एटले तो अनेकान्तने जिनदेवनुं अलंघ्य शासन कह्युं छे. समजाणुं कांई......?

माटे, कहे छे, हे निपुण पुरुषो! ........ विचारवान समनस्क छे ने! एटले कहे छे- हे निपुण पुरुषो-डाह्या पुरुषो! तमे वस्तु जेवी छे तेवी ख्यालमां लावीने-विचारमां