करवानुं छे. नियमसार-गाथामां आवे छे ने के पोताना शुद्ध स्वरूपनां श्रद्धा-ज्ञान- आचरण एवां रत्नत्रय ज नियमथी कर्तव्य छे.
भाई! पर्याय स्वद्रव्यमां ढळीने अंतर्लीन थतां अनेकान्तपणुं जे वस्तुनुं स्वरूप छे ते व्यवस्थित-सुनिश्चित थईने (ज्ञानमां जेम छे तेम जणाईने) सिद्ध थाय छे अने नियमथी आ ज करवायोग्य कर्तव्य छे. आ सिवाय बधुं थोथेथोथां छे. समजाणुं कांई......?
‘अनेकान्त अर्थात् स्याद्वाद, जेवुं वस्तुनुं स्वरूप छे तेवुं ज स्थापन करतो थको, आपोआप सिद्ध थयो.’
अनेकान्तनी व्याख्या करतां आचार्य अमृतचंद्रदेव लखे छे- “ एक वस्तुमां वस्तुपणानी निपजावनारी परस्पर विरुद्ध बे शक्तिओनुं प्रकाशवुं ते अनेकान्त छे.” जेमके -जे नित्य छे ते अनित्य छे, एक छे ते अनेक छे, अभेद छे ते भेदरूप छे इत्यादि. अहा! स्याद्वादथी एक ज वस्तुमां सत्ता जे अभेदरूप छे ते भेदरूप छे, जे (द्रव्यरूपथी) नित्य छे ते (पर्यायरूपथी) अनित्य छे. एक ज चीजनी अंदरनी वात छे भाई! आ आनुं नाम अनेकान्त छे. पण द्रव्य पोताथी छे ने पर्याय परथी छे, वा द्रव्य स्वथी पण छे ने परथी पण छे तथा पर्याय स्वथी पण छे ने परथी पण छे-एम अनेकान्त नथी. ए तो (मिथ्या) एकान्त थयुं बापा! परनी साथे तो भगवान आत्माने संबंध ज नथी. आव्युं ने कळशमां (कळश २०० मां) के-
आत्मा पोताथीय प्राप्त थाय ने परद्रव्यथी-देवगुरु शास्त्रथीय थाय एवुं अनेकान्तनुं स्वरूप नथी, एवुं जैनदर्शन नथी. आत्मा पोतापणे छे अने परना कोई अंशपणेय नथी ए सम्यक् अनेकान्त छे. जुओ, आमां बीजा बधा पदार्थ (आत्मा ने तेना परिणामथी) काढी नाख्या. जुओ, आ शब्दोना वांचनथी अहीं (आत्मामां) ज्ञाननी पर्याय थाय छे एम नथी; केमके वस्तु पोते ज नित्य ने अनित्य छे. पहेलां ज्ञाननी पर्याय बीजी हती ते बदलीने शब्द (शास्त्र) जाणवारूप थई ते पोताथी ज थई छे, शब्द सांभळवामांथी-वांचवाथी ते थई छे एम नथी. शब्द तो छे, पण ए निमित्तमात्र ज छे. समजाणुं कांई......?
अरे! अज्ञानीओने परद्रव्य मारुं (कार्य, सुख) करे ने हुं परद्रव्यनुं करुं एम ज अनादिथी भास्युं छे. पण भाई! तारी वस्तु ज ज्यां स्वपणे छे, परपणे नथी, ज्ञानस्वरूपथी तत्रूप छे, परज्ञेयस्वरूपथी नथी, त्यां परनुं करवानो प्रश्न ज क्यां रह्यो? तथा परवस्तु आत्मामां (प्रवेशती ज) नथी तो पर आत्मामां कांई करे ए