Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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परिशिष्टः ४६१

करवानुं छे. नियमसार-गाथामां आवे छे ने के पोताना शुद्ध स्वरूपनां श्रद्धा-ज्ञान- आचरण एवां रत्नत्रय ज नियमथी कर्तव्य छे.

“जे नियमथी कर्तव्य एवां रतनत्रय ते नियम छे.
विपरीतना परिहार अर्थे सार पद योजेल छे.”

भाई! पर्याय स्वद्रव्यमां ढळीने अंतर्लीन थतां अनेकान्तपणुं जे वस्तुनुं स्वरूप छे ते व्यवस्थित-सुनिश्चित थईने (ज्ञानमां जेम छे तेम जणाईने) सिद्ध थाय छे अने नियमथी आ ज करवायोग्य कर्तव्य छे. आ सिवाय बधुं थोथेथोथां छे. समजाणुं कांई......?

* कळश २६३ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘अनेकान्त अर्थात् स्याद्वाद, जेवुं वस्तुनुं स्वरूप छे तेवुं ज स्थापन करतो थको, आपोआप सिद्ध थयो.’

अनेकान्तनी व्याख्या करतां आचार्य अमृतचंद्रदेव लखे छे- “ एक वस्तुमां वस्तुपणानी निपजावनारी परस्पर विरुद्ध बे शक्तिओनुं प्रकाशवुं ते अनेकान्त छे.” जेमके -जे नित्य छे ते अनित्य छे, एक छे ते अनेक छे, अभेद छे ते भेदरूप छे इत्यादि. अहा! स्याद्वादथी एक ज वस्तुमां सत्ता जे अभेदरूप छे ते भेदरूप छे, जे (द्रव्यरूपथी) नित्य छे ते (पर्यायरूपथी) अनित्य छे. एक ज चीजनी अंदरनी वात छे भाई! आ आनुं नाम अनेकान्त छे. पण द्रव्य पोताथी छे ने पर्याय परथी छे, वा द्रव्य स्वथी पण छे ने परथी पण छे तथा पर्याय स्वथी पण छे ने परथी पण छे-एम अनेकान्त नथी. ए तो (मिथ्या) एकान्त थयुं बापा! परनी साथे तो भगवान आत्माने संबंध ज नथी. आव्युं ने कळशमां (कळश २०० मां) के-

नास्ति सर्वोऽपि संबंधः परद्रव्यात्मतत्त्वयोः

आत्मा पोताथीय प्राप्त थाय ने परद्रव्यथी-देवगुरु शास्त्रथीय थाय एवुं अनेकान्तनुं स्वरूप नथी, एवुं जैनदर्शन नथी. आत्मा पोतापणे छे अने परना कोई अंशपणेय नथी ए सम्यक् अनेकान्त छे. जुओ, आमां बीजा बधा पदार्थ (आत्मा ने तेना परिणामथी) काढी नाख्या. जुओ, आ शब्दोना वांचनथी अहीं (आत्मामां) ज्ञाननी पर्याय थाय छे एम नथी; केमके वस्तु पोते ज नित्य ने अनित्य छे. पहेलां ज्ञाननी पर्याय बीजी हती ते बदलीने शब्द (शास्त्र) जाणवारूप थई ते पोताथी ज थई छे, शब्द सांभळवामांथी-वांचवाथी ते थई छे एम नथी. शब्द तो छे, पण ए निमित्तमात्र ज छे. समजाणुं कांई......?

अरे! अज्ञानीओने परद्रव्य मारुं (कार्य, सुख) करे ने हुं परद्रव्यनुं करुं एम ज अनादिथी भास्युं छे. पण भाई! तारी वस्तु ज ज्यां स्वपणे छे, परपणे नथी, ज्ञानस्वरूपथी तत्रूप छे, परज्ञेयस्वरूपथी नथी, त्यां परनुं करवानो प्रश्न ज क्यां रह्यो? तथा परवस्तु आत्मामां (प्रवेशती ज) नथी तो पर आत्मामां कांई करे ए