४६०ः प्रवचन रत्नाकर भाग-१०
जे समये परमात्मस्वरूप निज ज्ञानमात्र आत्मानुं लक्ष करीने निर्णय करवा प्रति उद्यमशील थाय छे त्यारे अंदरमां जे पर्याय वळे छे ते स्वथी वळे छे, कोई परनी सहाय के टेको छे तो अंतर्मुख वळे छे एम एमां भासतुं नथी. शुं कीधुं? स्वनुं लक्ष करीने स्वतंत्र पणे ज्यां पर्याय प्रगटी त्यां एमां एने ख्याल आवी जाय छे के हुं माराथी छुं ने परथी नथी; अर्थात् कर्मनो उदय मंद पडयो के एनो अभाव थयो माटे स्व तरफनो पुरुषार्थ थयो छे एम एमां भासतुं नथी. अहाहा.....! वस्तुए हुं एक छुं, ने पर्याये अनेक छुं, ने ए बधुं माराथी-पोताथी छे, परथी नहि-आम बधुं ज्ञानमां सिद्ध-निश्चित थई जाय छे.
आ रीते, कहे छे, अनेकान्त वीतराग सर्वज्ञदेवनुं कोईथी तोडी न शकाय एवुं अलंघ्य शासन छे. अनेकान्त तो वस्तुनुं स्वरूप छे, एने जैन परमेश्वरनुं शासन केम कह्युं? अहा! शक्तिए तो दरेक आत्मा पोते अंदर परमेश्वर छे. पण आवुं वस्तुनुं स्वरूप वीतराग जैन परमेश्वरे प्रगट करी बताव्युं छे तेथी एने जैन परमेश्वरनुं शासन अहीं कहे छे. अहा! आवुं जिनदेवनुं शासन अलंघ्य छे. अहा! अंदर जिनस्वरूप भगवान आत्मा छे. जे पुरुष पोताना आवा निजस्वरूपने अबद्धस्पृष्ट, अनन्य, अविशेष, नियत, असंयुक्त देखे छे ते सर्व जिनशासनने देखे छे-एम समयसार गाथा १प मां आव्युं ने? अहा! आ जिनशासन अलंघ्य छे एम कहे छे.
आ रीते ते अर्थात् अनेकान्त वस्तुना यथार्थ स्वरूपनी व्यवस्थिति वडे पोते पोताने स्थापित करतो थको स्थित थयो-सिद्ध थयो. भाई! पोते वस्तुतत्त्व एक छे ते ज पोतानी व्यवस्था नाम विशेष अवस्था करवामां व्यवस्थित-सुनिश्चित छे. अहा! निज पर्याय-अवस्थानी व्यवस्था करवामां तत्त्व-वस्तु पोते ज व्यवस्थित छे, पोतानी पर्यायनी व्यवस्था बीजो करे ए जैनशासनने मान्य नथी. वस्तु पोते ज स्वरूपथी एवी छे के पोतानी व्यवस्था (प्रतिसमयनी अवस्था) पोते ज करे; बीजो कोई एनी व्यवस्था करे छे एम भासे ते भ्रान्ति छे. आम वस्तुना यथार्थ स्वरूपना ज्ञान वडे अंतरमां पोते पोताने वाळतो थको स्थित थाय छे, निश्चित थाय छे. अर्थात् पोते पोतामां अंर्तद्रष्टि करी स्थिर थाय छे त्यां जेवी अनेकांतस्वरूप वस्तु छे तेवी पोताने सिद्ध थई जाय छे, अनुभवमां आवी जाय छे. अहा! धर्मीने आम जे निर्विकल्प निर्णय (निश्चयरूप ज्ञान) थयो ते पोते कर्ता थईने कर्यो छे, एमां कोई अन्य कर्ता भासतो नथी. पोते ज पोताने प्रमेय थयो, ने पोते ज पोताने प्रमाण कर्यो, एमां परनी सहाय-अपेक्षा छे ज नहि. समजाणुं कांई.....?
अहाहा...! पोते पोताथी ज पोताने जणाय, ने पोते ज पोताने जाणे एवो ज भगवान आत्मानो स्वभाव छे. भाई! आ सूक्ष्म पडे पण कांई करवानुं होय तो आ