Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). SatGurudev Stuti.

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श्री सद्गुरुदेव–स्तुति

(हरिगीत)
संसारसागर तारवा जिनवाणी छे नौका भली,
ज्ञानी सुकानी मळ्‌या विना ए नाव पण तारे नहीं;
आ काळमां शुद्धात्मज्ञानी सुकानी बहु बहु दोह्यलो,
मुज पुण्यराशि फळ्‌यो अहो! गुरु कहान तुं नाविक मळ्‌यो.
(अनुष्टुप)
अहो! भक्त चिदात्माना, सीमंधर–वीर–कुंदना!
बाह्यांतर विभवो तारा, तारे नाव मुमुक्षुनां.
(शिखरिणी)
सदा दृष्टि तारी विमळ निज चैतन्य नीरखे,
अने ज्ञप्तिमांही दरव–गुण–पर्याय विलसे;
निजालंबीभावे परिणति स्वरूपे जई भळे,
निमित्तो वहेवारो चिदघन विषे कांई न मळे.
(शार्दूलविक्रीडित)
हैयुं ‘सत सत, ज्ञान ज्ञान’ धबके ने वज्रवाणी छूटे,
जे वज्रे सुमुमुक्षु सत्त्व झळके, परद्रव्य नातो तूटे;
–रागद्वेष रुचे न, जंप न वळे भावेन्द्रिमां–अंशमां,
टंकोत्कीर्ण अकंप ज्ञान महिमा हृदये रहे सर्वदा.
(वसंततिलका)
नित्ये सुधाझरण चंद्र! तने नमुं हुं,
करुणा अकारण समुद्र! तने नमुं हुं;
हे ज्ञानपोषक सुमेघ! तने नमुं छुं हुं,
आ दासना जीवनशिल्पी! तने नमुं हुं.
(स्रग्धरा)
ऊंडी ऊंडी, ऊंडेथी सुखनिधि सतना वायु नित्ये वहंती,
वाणी चिन्मूर्ति! तारी उर–अनुभवना सूक्ष्म भावे भरेली;
भावो ऊंडा विचारी, अभिनव महिमा चित्तमां लावी लावी,
खोयेलुं रत्न पामुं, –मनरथ मननो; पूरजो शक्तिशाळी!