छुं-एम जणाय छे. आम लक्षणनी प्रसिद्धि वडे लक्ष्यनी प्रसिद्धि थाय छे माटे आत्मानो ज्ञानमात्रपणे व्यपदेश करवामां आव्यो छे. ज्ञान गुणथी अहीं वात करी तेमां ज्ञानगुण तो त्रिकाळ छे, तेथी ते कांई आत्माने पकडतो नथी, परंतु तेनी अंतर्मुखाकार वर्तमान प्रगट दशा भगवान आत्माने पकडे छे. तेथी, कहे छे, आत्मानो ज्ञानमात्रपणे व्यपदेश छे. समजाणुं कांई...?
हवे आम छे त्यां रागथी-व्यवहारथी आत्मा जणाय ए वात कयां रही प्रभु! राग तो जडस्वभाव छे; ए शुं जाणे! कांई ज न जाणे. माटे राग आत्मानुं लक्षण नथी. भाई! व्यवहार रत्नत्रयना रागमां आत्माने जाणवानुं ओळखवानुं सामर्थ्य नथी. समजाणुं कांई...?
हवे आत्मा लक्ष्य छे, ने ज्ञान तेनुं लक्षण छे-एम लक्षमां लीधा पछी हवे शिष्य पूछे छेः- ‘प्रश्नः– ए लक्षणनी प्रसिद्धिथी शुं प्रयोजन छे? मात्र लक्ष्य ज प्रसाध्य अर्थात् प्रसिद्ध करवायोग्य छे. (माटे लक्षणने प्रसिद्ध कर्या विना मात्र लक्ष्यने ज-आत्माने ज-प्रसिद्ध केम करता नथी?)’
जुओ, शिष्य शुं कहे छे? के ज्ञान ते आत्मा, ज्ञान ते आत्मा-एम लक्षण-लक्ष्यनो भेद पाडवाथी शुं प्रयोजन छे? एम के भेदथी शुं साध्य छे? एक लक्ष्य नाम आत्मा ज प्रसाध्य अर्थात् प्रसिद्ध करवायोग्य छे. माटे एक आत्माने ज सीधो प्रसिद्ध करावी दो ने. अंते तो अभेद एक आत्मा ज साध्य छे. तो सीधो तेने ज सिद्ध करावी दो ने; वच्चे भेद शा माटे लावो छो? ल्यो, आवो प्रश्न! हवे तेनो उत्तर कहे छेः-
‘उत्तरः– जेने लक्षण अप्रसिद्ध होय तेने (अर्थात् जे लक्षणने जाणतो नथी एवा अज्ञानी जनने) लक्ष्यनी प्रसिद्धि थती नथी. जेने लक्षण प्रसिद्ध थाय तेने ज लक्ष्यनी प्रसिद्धि थाय छे. (माटे अज्ञानीने पहेलां लक्षण बतावीए त्यारे ते लक्ष्यने ग्रहण करी शके छे.)’
जुओ, शुं कीधुं? के जेने ज्ञानलक्षण वडे लक्ष्यनुं लक्ष अने भान थयुं छे तेने (-ज्ञानीने) लक्ष्य-लक्षणना भेदथी प्रयोजन नथी ए तो बराबर; पण जेने लक्ष्यनी-आत्मानी खबर ज नथी तेने यथार्थ लक्षण वडे लक्ष्य ओळखाववो जरूरी छे, केमके लक्षण प्रसिद्ध थाय तेने ज लक्ष्यनी प्रसिद्धि थाय छे. अज्ञानीने लक्षण अप्रसिद्ध छे. ते देहने ने रागादिने आत्मा माने छे. देह ते हुं आत्मा, वा राग ते हुं आत्मा एम अज्ञानी माने छे. तेने कहीए के भाई! जे लक्ष्यमां त्रिकाळ रहे अने लक्ष्यने परिपूर्ण ओळखावे ते लक्षण छे. ज्ञान छे ते ज तारुं लक्षण छे, केमके आत्मा सदाय ज्ञानस्वरूप छे ने ज्ञान वडे ओळखाय छे. ज्ञानने अंतर्मुख करी आत्मवस्तुथी एकमेक थतां आत्मा ओळखाय छे, प्रसिद्ध थाय छे. आ प्रमाणे ज्ञानलक्षणनी प्रसिद्धि द्वारा आत्मा जे लक्ष्य छे तेनी प्रसिद्धि थाय छे.
जुओ, आ लक्ष्य-लक्षणनो भेद कीधो ते भेदमां अटकवा माटे नहि, पण अभेद आत्मानुं लक्ष कराववा माटे छे. भेदने गौण करी जे अभेदनुं लक्ष करे छे तेने भगवान आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे, अने त्यारे लक्ष्य-लक्षणनो भेद ते व्यवहार कहेवाय छे. भेदमां (-व्यवहारमां) अटकी रहे तेने आत्म प्रसिद्धि थती नथी, अने अभेद समजतां वच्चे लक्ष्य-लक्षणनो भेद आवे छे तेने जाणे नहि तेनेय आत्म प्रसिद्धि थती नथी, केमके जेने लक्षण अप्रसिद्ध होय तेने लक्ष्यनी प्रसिद्धि थती नथी. समजाणुं कांई...?
कोई अज्ञानीओ कहे छे-एकलुं ज्ञान-ज्ञान शुं करो छो? अमे जे आ पुण्यनी ने देहनी क्रिया करीए छीए ते साधन छे, ते वडे आत्मा ओळखाय जशे. तेने अहीं कहे छे-मूढ छो के शुं? देहनी क्रिया के पुण्यनी क्रिया ते आत्माने ओळखवानां साधन नथी, एक ज्ञानलक्षण वडे ज आत्मा ओळखाय छे. आम ज्ञानलक्षण कहीने व्यवहाराभासनो निषेध कर्यो.
वळी कोई कहे छे-ज्ञान ते लक्षण अने आत्मा लक्ष्य-एम भेद शा माटे पाडो छो? सीधो ज आत्मा बतावो ने? लक्षण द्वारा लक्ष्य बतावो छो तेने बदले सीधुं लक्ष्य ज बतावी दो ने! तेने कहे छे-भाई! जे लक्षणने जाणतो नथी ते लक्ष्यने पण जाणतो नथी, लक्षणने ओळखवाथी ज लक्ष्य ओळखी शकाय छे. जेम कोई कहे-अमारे साकर जोईए छे, गळपणथी काम नथी, तो तेने साकरनी प्राप्ति थती नथी; तेम जो कोई कहे-अमारे लक्ष्य-आत्मा जोईए छे, ज्ञानथी-लक्षणथी शुं काम छे? तो तेने आत्मानी प्राप्ति थती नथी. आ प्रमाणे ज्ञानलक्षणे आत्मा लक्षित थतो होवाथी ज्ञानलक्षण कहीने निश्चयाभासनो निषेध कर्यो. समजाणुं कांई...?