Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ अनंत गुणो तेनो कांई निषेध थतो नथी. आ रीते ज्ञान साथे बीजा अनंत धर्मो ‘ज्ञानमात्र वस्तु आत्मा’मां साथे ज (अन्वयरूप) होवाथी ज्ञानमात्र आत्माने अनेकान्तपणुं छे; अहीं आ वात आचार्यदेव प्रश्नोत्तररूपे विशेष स्पष्ट करे छेः-

प्रश्नः– आत्मा अनेकांतमय होवा छतां पण अहीं तेनो ज्ञानमात्रपणे केम व्यपदेश करवामां आवे छे? (आत्मा अनंत धर्मोवाळो होवा छतां तेने ज्ञानमात्रपणे केम कहेवामां आवे छे? ज्ञानमात्र कहेवाथी तो अन्य धर्मोनो निषेध समजाय छे.)’

जोयुं? शिष्यनो आ प्रश्न! एम के-आत्मा तो अनेकांतमय वस्तु छे; तेमां तत्-अतत् एक-अनेक, सत्- असत्, नित्य-अनित्य इत्यादि अनंतधर्मो स्वयमेव प्रकाशे छे, छतां ‘आत्मा ज्ञानमात्र छे’ एम आप उपदेश केम करो छो? प्रश्न समजाय छे? एम के-आत्मा चिदानंद प्रभु एक ज्ञानमात्र छे एम भार दईने आप कहो छो तो ए वडे, तेमां ज्ञान साथे बीजा आनंद आदि, तत्-अतत् आदि अनंत धर्मो छे तेनो तो निषेध नथी थई जतो ने? अनंत धर्ममय होवा छतां आत्माने ‘ज्ञानमात्र’ कहेवानुं शुं प्रयोजन छे? ल्यो, आ शिष्य आशंका करीने पूछे छे.

उत्तरः– लक्षणनी प्रसिद्धि वडे लक्ष्यनी प्रसिद्धि करवा माटे आत्मानो ज्ञानमात्रपणे व्यपदेश करवामां आवे छे. आत्मानुं ज्ञान लक्षण छे, कारण के ज्ञान आत्मानो असाधारण गुण छे (-अन्य द्रव्योमां ज्ञानगुण नथी.) माटे ज्ञाननी प्रसिद्धि वडे तेना लक्ष्यनी-आत्मानी-प्रसिद्धि थाय छे.’

जुओ, शुं कीधुं? के आत्मानुं ज्ञान लक्षण छे, अने आत्मा लक्ष्य छे. एटले शुं? के ज्ञानलक्षण आत्मानी प्रसिद्धि करे छे. ज्ञान आत्मानो असाधारण गुण छे ने! तेथी ज्ञान आत्मानुं सत्यार्थ लक्षण छे अने ते लक्ष्य एवा आत्माने प्रसिद्ध करे छे. आहाहा...! ज्ञान आत्माने रागादिथी जुदो जाणी शुद्ध एक आत्माने प्रसिद्ध करे छे. हा, पण कयुं ज्ञान? पर तरफ वळेलुं ज्ञान नहि, परंतु अंतर्मुख थईने आत्माने जे ज्ञान जाणे छे ते ज्ञान आत्मानुं लक्षण छे अने ते आत्माने प्रसिद्ध-प्रगट करे छे. जे ज्ञान शुद्ध आत्माने ज जाणे नहि अने परमां ने रागमां एकाकार थई प्रवर्ते ते खरेखर ज्ञान ज नथी, केमके ते शुद्ध आत्मानी प्रसिद्धि करतुं नथी, पण परने-रागने प्रसिद्ध करे छे. भाई! रागादि बीजी चीज हो भले, पण ए रागादि हुं नहि, हुं तो शुद्ध चैतन्यमूर्ति आत्मा छुं एम प्रसिद्ध करनारुं ज्ञान ते यथार्थ लक्षण छे, अने ते लक्षणना दोरे अंदर लक्ष्यनुं-शुद्ध आत्मानुं ग्रहण थाय छे. ल्यो, आ रीते शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मानी प्रसिद्धि अर्थे तेने ज्ञानमात्र कह्यो छे. ‘ज्ञानमात्र’ कहीने एकलो ज्ञानगुण सिद्ध नथी करवो, पण आखो (पूरण) आत्मा प्रसिद्ध करवो छे. समजाणुं कांई...?

आ शरीर तो जड पुद्गलमय छे, अने रागादि भावो पण आत्माथी विपरीत स्वभाववाळा-जड स्वभाववाळा छे तेथी शरीर ने रागादि आत्मानुं लक्षण नथी, एक ज्ञान ज आत्मानो असाधारण गुण छे तेथी आत्मानुं लक्षण छे. असाधारण गुण एटले शुं? के आत्मा सिवाय अन्य द्रव्योमां ज्ञानगुण नथी, अने आत्माना अनंतधर्मोमां पण एक ज्ञान ज स्वपरप्रकाशक छे. तेथी ज्ञानगुण असाधारण छे जे वडे भगवान आत्मानुं ग्रहण करी शकाय छे. आ रीते ज्ञानलक्षण ते आत्मानी परम प्रसिद्धिनुं साधन छे. अहाहा...! शरीर, राग, आत्मा आदि अनेक चीज मळेली (एकक्षेत्रावगाहमां) जणाय छे, त्यां ज्ञानलक्षण वडे ज भिन्न आत्मस्वरूपने ओळखी शकाय छे, ग्रहण कराय छे. आ रीते ज्ञानलक्षण भिन्न आत्मस्वरूपने ओळखवानुं साधन होवाथी आत्माने ज्ञानमात्र कहेवामां आव्यो छे. आवी वातु छे.

अहाहा...! ज्ञान... ज्ञान... ज्ञान... जाणपणुं ते आत्मा-एटलो अभेदमां प्रथम भेद पाडी पछी वृत्ति ज्यां अंतर्मुख थई लक्ष्य-आत्माना लक्षे एकाकार-तद्रूप थाय छे त्यां भगवान आत्मा प्रसिद्ध थाय छे, जणाय छे. आनुं नाम लक्षणनी प्रसिद्धि वडे लक्ष्यनी प्रसिद्धि छे. लक्षणना-वर्तमान ज्ञाननी दशाना-लक्षे लक्ष्य जणाय एम नहि, पण लक्षण-ज्ञाननी वर्तमान दशा, लक्ष्य नाम शुद्ध आत्माना लक्षमां जतां शुद्ध आत्मा जणाय छे. अहो! संतोए संक्षेपमां घणुं भर्युं छे.

‘लक्षणनी प्रसिद्धि वडे’-एम कह्युं ने! एमां शुं कहेवा मागे छे? के ज्ञाननी वर्तमान पर्याय जे आत्मानुं लक्षण छे ते प्रगट छे, ने ते वडे अप्रगट (शक्तिरूप) लक्ष्य (शुद्ध आत्मा) जणाय छे. अहाहा...! जाणनार- जाणनार एवुं त्रिकाळी ज्ञायक स्वरूप तो प्रगट नथी, पण तेना लक्षणरूप जे वर्तमान दशा छे ते प्रगट छे, तेमां आ हुं लक्ष्य-भगवान आत्मा