पदार्थ हो, पण तेने जाणवाना काळे जाणवामां तो ज्ञान ज आवे छे, कारण के ज्ञानमात्रने स्वसंवेदनथी सिद्धपणुं छे. शुं कीधुं आ? के सौ जीवोने ज्ञान पोताना स्वसंवेदन अर्थात् पोताना वेदनथी प्रसिद्ध छे. देहादि पदार्थ छे माटे ज्ञान छे एम नहि, पण पोताना वेदनथी ज्ञान प्रसिद्ध छे. झीणी वात भाई! आ बधुं जाणे छे ते ज्ञान आत्मानुं छे, माटे ते ज्ञानने आत्मा तरफ वाळ; तने आत्मा प्रसिद्ध थशे.
धीरेथी समजवुं बापु! आ तो जैन केवळी परमेश्वरनो वीतरागी मार्ग छे. अरे! भरतक्षेत्रमां भगवान केवळीना विरह पडया, ने अवधिज्ञान ने मनःपर्ययज्ञाननी ऋद्धि रही नहि! आवी सत्य वात ज्यां बहार आवी त्यां लोको संशयमां पडी गया ने विवाद-झघडा ऊभा थया. पण भगवान! आ तो तारा घरनी वात छे; माटे बहारनुं लक्ष मटाडीने ज्यां पूर्णानंदनो नाथ भगवान आत्मा छे त्यां ज्ञानलक्षण वडे लक्ष कर; तेथी ज्ञान-पर्याय पोते ज अभेद साथे तन्मय थई आत्मप्रसिद्धि करशे.
अहाहा...! कहे छे-‘ते प्रसिद्ध एवा ज्ञान वडे प्रसाध्यमान, तद्-अविनाभूत अनंत धर्मोना समुदायरूप मूर्ति आत्मा छे.’ शुं कीधुं? के ज्ञान प्रसिद्ध छे, अने तद्-अविनाभूत श्रद्धा, स्थिरता, आनंद, प्रभुत्व, स्वच्छत्व, आदि अनंतधर्मोना समुदायरूप-पिंडरूप अभेद एक चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मा प्रसाध्यमान छे. प्रसिद्ध ज्ञानलक्षण वडे परद्रव्यो ने रागादि जाणवायोग्य छे एम नहि, पण त्रिकाळी अभेद अनंतधर्ममय चिदानंद प्रभु आत्मा प्रसाध्यमान -साधवा योग्य छे. आमां प्रसिद्ध ज्ञाननुं ज्ञेय अने ध्येय कोने बनाववुं एनी वात छे. ज्ञानने अंतर्मुख वाळीने तद्- अविनाभूत शुद्ध आत्माने ध्येय बनाववानी आमां वात छे; केमके ए रीते आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे अर्थात् सम्यक् श्रद्धान-ज्ञान प्रगटे छे.
भाई! आ समज्या विना बहारमां गमे तेटलां व्रत, आदि करे, पण एनाथी भवना फेरा नहि मटे बापु! जन्म-मरण नहि मटे. देह-स्थिति पूरी थतां ज परिणाम अनुसार कयांय जईने अवतरशे. अहा! अहीं मोटा करोडपति ने अबजोपति शेठिया होय ते मरीने कयांय (कीडा, मकोडा वगेरेमां) जईने अवतरे. केम! केमके जेम कोई मजुरो आखो दि’ मजुरी करे तेम आ निरंतर राग-द्वेष-मोहनी-पापनी मजुरी कर्या करे छे. परद्रव्यनी क्रिया तो कोई करी शकतुं नथी, पण आ आखो दि’ राग-द्वेष-मोहरूप अनेक प्रकारना विकल्पोनी मजुरी कर्या करे छे. तेओ मोटा मजुरो छे; भगवान आवा जीवोने ‘वराकाः’ एटले बिचारा कहे छे. समजाणुं कांई...?
अहा! अंतरमां सच्चिदानंद प्रभु आत्मा विराजे छे तेने ध्येय बनाव्या विना, तेनो आश्रय कर्या विना बधुं (जाणपणुं) धूळ-धाणी छे; केमके ज्ञान जे प्रसिद्ध छे तेना वडे प्रसाध्यमान तो एक शुद्ध आत्मा छे. शुं कीधुं? जे दशामां जाणपणुं छे ते जाणवानी दशा प्रसिद्ध छे, केमके ते पोताना वेदनथी सिद्ध छे. ज्ञान स्वने जाणे छे, परने पण जाणे छे; एने एमां परनी जरूर-अपेक्षा नथी. ज्ञान स्वने जाणे ने जाणवारूप प्रवर्ते, वळी ज्ञान परने पण जाणे, पण परने करे नहि ने परमां भळे नहि. अहाहा...! आवुं ज्ञान प्रसिद्ध छे, अने ए ज्ञान वडे प्रसाध्यमान- साधवायोग्य अनंतधर्मोना समुदायरूप एक अभेद भगवान आत्मा छे. अहाहा...! प्रसिद्ध जाणवानी पर्याय छे ए वडे, अहीं कहे छे, राग के निमित्तने पकडवां नथी, पण अंतरंगमां अनंतधर्मनो धरनारो ध्रुवधाम निजध्येयरूप प्रभु आत्मा छे ते एकने पकडवो छे. जाणवानी दशा जे लक्षण छे तेना लक्षरूप लक्ष्य एक ध्रुव भगवान आत्मा छे. बस; आ सिवाय बाह्य निमित्तो-देव-गुरु-शास्त्र इत्यादि अन्य कोई एनुं लक्ष्य नथी. आवी सूक्ष्म अने गंभीर वात छे बापु!
अरे! अनादिथी अज्ञानी प्राणीओनुं लक्ष स्वलक्ष्यने चूकीने बहारमां-देव-गुरु-शास्त्र आदि निमित्तोमां अने व्रत-पूजा-भक्ति आदि रागमां ज-निरंतर रह्युं छे; अने एटले ज तेमने आत्मानी प्रसिद्धि कदी थई नथी. भाई रे! जेनुं जे लक्षण छे ते लक्षणने तेमां ज धारी राखवुं ते वस्तुस्वरूप छे. ज्ञाननी पर्यायमां परनुं जाणवुं भले थाय, पण एथी करीने ए (ज्ञान) कांई परनुं लक्षण थई जतुं नथी. ज्ञानलक्षण तो आत्मानुं ज छे. एटले जाणवानी दशामां परनुं लक्ष छोडी दईने जेनुं ते लक्षण छे ते चैतन्यमूर्ति आत्माने ज पकडवो छे. माटे हे भाई! तारी नजर त्यां (शुद्ध आत्मामां) कर; तेथी तने सुख अने शांति प्रगटशे; बाकी बहारमां-निमित्तोमां झावां नाख्ये (संसार सिवाय) कांई मळे एवुं नथी. समजाणुं कांई...?
अहाहा...! भगवान! तुं कोण छो? अंतरंगमां आनंदनो भंडार सच्चिदानंदमय आत्मा छो ने प्रभु! अने ए सदा ज्ञानस्वरूप ज छे; रागरूपे के संसाररूपे ए कदीय थयो नथी. तारुं घर ज ए छे, राग के निमित्त ए कोई तारुं