Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ आदि निर्मळ पर्यायोने ज क्रमवर्ती लीधी छे. रागादि अशुद्ध पर्यायो उत्पन्न थाय तेने अहीं क्रमवर्ती पर्यायोमां लीधी नथी. (केमके शक्तिना अधिकारमां विकारी पर्यायोने पर गणी छे.)

अहाहा...! आ ज्ञानमात्र आत्मा कीधो एमां द्रष्टि पूरण द्रव्य जे एक ज्ञायकरूप छे तेना उपर जाय छे; अने त्यारे पर्यायमां निराकुल आनंद अने शुद्ध-पवित्र जीवन प्रगट थाय छे. आनुं नाम धर्म अने आनुं नाम जीवन छे. बाकी वर्तमान पर्याय निज द्रव्यने-एक ज्ञानमात्र आत्माने छोडीने परने-विकारने देखे ए तो विपरीत द्रष्टि छे. अन्यमतना भजनमां आवे छे ने के-

‘नंदलाल नहि रे आवुं रे घरकाम छे.’

आ तो श्री कृष्णने जे सखी हती ते कहे छे के-तारी पासे नहि आवुं, केमके घरे काम छे. तेम अनादिथी अज्ञानी जीव हठथी निज आत्मा प्रति एवो ज भाव राखे छे के-

‘नंदलाल नहि रे आवुं रे पर-काम छे.’

अहा! अज्ञानी जीवने अनादिथी एवी मिथ्या मान्यता छे के तेनी पर्याय स्वघरमां न जतां परना काममां ज गूंचायेली रहे छे; परकामनुं ए बहानुं काढी स्वघरमां जती नथी. परंतु भाई! ए महाविपरीतता छे. एनुं फळ बहु आकरुं छे बापु! पोताने जाणे-देखे ते ज साचुं ज्ञान छे अने ते ज साचुं जीवन छे.

जुओ, आ शक्तिओनो अधिकार छे. आ शक्तिओनुं विशेष वर्णन श्री दीपचंदजीकृत अध्यात्म पंचसंग्रह ग्रंथना ‘ज्ञानदर्पण’ विभागमां बहु सुंदर आवे छे. वळी आ जीवत्वशक्तिनुं वर्णन पं. श्री दीपचंदजीए चिद्दविलासमां पण बहु सुंदर करेलुं छे. पं. श्री दीपचंदजी समकिती आत्मज्ञानी पुरुष हता. तेओ एक स्थान पर कहे छे -बधा आत्मा साधर्मी छे. भगवानने संबोधीने कहे छे-भगवान! हुं तमारो साधर्मी छुं. (अमारी) पर्यायमां जरी भूल छे तेने एक बाजुए राखीए तो, अहाहा...! जेम आप द्रव्यस्वरूपथी परिपूर्ण ज्ञानानंद स्वरूप भगवान छो तेम हुं पण द्रव्यरूपथी परिपूर्ण ज्ञानानंद स्वरूप भगवान छुं. अहाहा...! तेथी आप मारा साधर्मी छो. अरे! शुद्ध जीवत्वशक्ति अपेक्षा बधा आत्माओ मारा साधर्मी छे. तेओ एक ठेकाणे कहे छे-आ जीवत्व शक्ति जीवने लोकमां महा सुखदायी छे. अहा! जेनी पर्यायमां आ जीवत्व शक्ति व्यापी-प्रगट थई तेना सुखनुं शुं कहेवुं? लोकमां ते अपार सुखी छे, ने ते परम सुखने प्राप्त थशे.

आ तो अध्यात्मनी अलौकिक वातुं बापु! आ कोई लौकिक कथा-वार्ता नथी. अहाहा..! अतीन्द्रिय आनंदमां झूलता पवित्र जीवनना धारक वीतरागी दिगंबर संतोने अंतरमां (अकारण) करुणानो विकल्प उठयो, अने आ शास्त्र रचाई गयां छे. अहा! तेओ तो जे विकल्प उठयो तेनाय स्वामी नथी. अहाहा...! तेओ अहीं शास्त्रमां कहे छे-भगवान! तुं ज्ञान, आनंद, इत्यादि अनंत गुण लक्ष्मीनो धरनार ज्ञानमात्र वस्तु आत्मा छो. अने आ चैतन्यमात्र प्राणने धरनारी जीवनशक्ति पण तारी अंतरंग लक्ष्मी छे. अहाहा...! आवी जीवनशक्ति, एक ज्ञानमात्रवस्तुना आश्रयमां जतां, पर्यायमां प्रगट थाय छे अने त्यारे पर्यायमां अतीन्द्रिय आनंदनी भरती ऊछळे छे. आ रीते जीवनशक्तिमां ध्रुव उपादान अने क्षणिक उपादान बन्ने आवी जाय छे. त्रिकाळी जीवनशक्ति ते ध्रुव उपादान छे, अने पर्यायमां दर्शन, ज्ञान, चारित्रनुं निर्मळ परिणमन थयुं ते क्षणिक उपादान छे. अहाहा...! द्रव्यनी द्रष्टि थतां जीवनशक्तिनुं निर्मळ परिणमन थयुं त्यारे पर्यायमां निर्मळ ज्ञान, निर्मळ आनंद, निर्मळ प्रभुता, निर्मळ स्वच्छता इत्यादि अनंतगुणनी निर्मळ दशा प्रगट थाय छे. आनुं नाम धर्म अने आनुं नाम मोक्षमार्ग छे; अने आ क्षणिक उपादान छे. अहा! आ भावमां (क्षणिक उपादानमां) व्यवहारनो अभाव (नास्ति) छे. आ अनेकान्त छे. व्यवहारनो सर्वथा अभाव छे एम नहि, व्यवहारमां व्यवहार भले हो, पण शक्तिना परिणमनमां व्यवहार नाम अशुद्धता-राग समातो नथी, अभावरूप छे, केमके शक्ति शुद्ध अने तेनुं परिणमन पण शुद्ध छे. अशुद्धता ए कांई शक्तिनुं कार्य नथी; अशुद्धता तो परना ने पर्यायना लक्षे थाय छे, परंतु धर्मीने परनी ने पर्यायनी द्रष्टि ज छूटी गई छे. समजाणुं कांई...?

जुओ, द्रव्यमां अनंत शक्तिओ छे. त्यां एक शक्तिनुं क्षेत्र भिन्न अने बीजी शक्तिनुं क्षेत्र भिन्न-एम नथी, परंतु एक जीवनशक्ति बीजी अनंत शक्तिमां व्यापक छे. एक एक शक्ति बीजी अनंतमां व्यापक छे. वळी एक एक शक्ति बीजी अनंतने निमित्त छे, एटले एक गुण कारण (निमित्त) अने बीजो गुण कार्य एम कहेवामां आवे छे, आ व्यवहार छे; निश्चयथी तो गुण पोते ज कारण छे, ने पोते ज कार्य छे. निमित्त एटले शुं? के एक गुणना परिणमन काळे बीजो गुण अनुकूळपणे छे, बन्नेनो समकाळ ने समव्याप्ति छे बस; कोई कोईनुं परिणमन करी दे छे एम नहि.