Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१६ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ ज छे, बंधनुं ज कारण छे. आरोप दईने तेने मोक्षमार्ग कहीए ते व्यवहार छे. हवे आम बन्ने साथे छे त्यां व्यवहारथी निश्चय थाय एम कयां रह्युं? अहा! पोतानी निर्मळ परिणति पोताथी थई छे, स्वआश्रयथी थई छे, रागथी-व्यवहारथी नहि-आनुं नाम अनेकान्त ने स्याद्वाद छे. व्यवहारथी पण थाय, ने निश्चयथी पण थाय ए कांई स्याद्वाद नथी, ए तो फूदडीवाद छे; ए कांई अनेकान्त नथी, मिथ्या अनेकान्त छे.

अरे! आवा तत्त्वनी समजण विना जीवो बिचारा दुःखी छे. आ पैसावाळाय बधा दुःखी छे हों. पोतानी अनंत चैतन्य संपदानी खबर नथी ने बहारमां मागणनी जेम ‘लाव-लाव’ करे छे ए बधा भिखारी छे. भावनगरना राज्यनी एक करोडनी ऊपज हती. एकवार भावनगरना दरबार व्याख्यानमां आवेला. त्यारे कहेलुं- दरबार! महिने एक लाखनी पेदाश मागे ते नानो मागण, पांच लाखनी मागे ते मोटो मागण ने करोडनी ऊपज मागे ते मागणोमां मागण महा भिखारी छे. एम अज्ञानी ‘लाव-लाव’ एम विषयो ने पुण्योदय मागे छे ते मागण भिखारी छे. शास्त्रमां तेमने ‘वराकाः’ एटले भिखारी-बिचारा कह्या छे. अहा! हुं आनंदनो नाथ छुं, मारी चैतन्यखाणमां एकलो आनंद अने शांति पडयां छे-एवी अंतरंग लक्ष्मीनी खबर न मळे ने बहारमां-विषयोमां झावां नाखे ते बधा बिचारा छे, रांका-भिखारी छे. भगवान! अमारी पासे तो आ वातुं छे.

अहाहा...! भगवान आत्मा सच्चिदानंद प्रभु अनंत अनंत ज्ञाननो खजानो छे, अनंत अनंत आनंदनो खजानो छे. आ तो बापु! अनंत शक्तिओनुं महानिधान छे. अहाहा...! आवो शक्तिवान प्रभु ने एनी जीवत्व आदि अनंत शक्तिओ छे ते पारिणामिक भावे छे. पारिणामिक भाव, औपशमिक भाव, क्षायोपशमिक भाव, क्षायिक भाव ने औदयिक भाव-एम पांच भाव कह्या छे ने? अहाहा...! तेमां आ जीवत्व आदि जे त्रिकाळी शक्तिओ छे ते पारिणामिक भावे छे, अने त्रिकाळी द्रव्यना आश्रये जे निर्मळ पर्यायो प्रगट थाय छे ते औपशमिक, क्षायोपशमिक के क्षायिक भावरूप छे; तथा मोहना निमित्ते जे विकारी मलिन भाव छे ते औदयिक भाव छे. भाई! आ दया, दान, व्रत आदिना शुभ परिणाम थाय छे ते मलिन औदयिक भाव छे. भले ते जीवनी दशामां थया होय, पण तेमनामां जीवत्व नथी; ते जीवत्वथी रहित अचेतन मडदा जेवा ज छे. हवे आम छे त्यां एनाथी चैतन्यना निर्मळ उपशमादि भाव प्रगटे ए केम बने? कदीय न बने. आवी चोख्खी वात छे.

अहाहा...! भगवान चैतन्यमूर्तिमां जेम जीवतत्त्व नामनी शक्ति छे तेम षट्कारको रूप छ शक्तिओ छे. अहाहा...! तेनी एकेक शक्तिमां षट्कारकोनुं रूप छे. जुओ, ज्ञानमां कर्ता नामनी शक्ति नथी. ज्ञानगुण छे ते कांई कर्ता गुणना आश्रये नथी. तत्त्वार्थसूत्रमां भगवान उमास्वामीए कह्युं छे तेम गुणना आश्रये गुण नथी, बधा गुण द्रव्यना आश्रये छे. आ रीते एक गुण बीजा गुणथी भिन्न-अन्य-अन्य छे, पण एक गुणमां बीजा गुणोनुं रूप छे. झीणी वात छे प्रभु! आम ज्ञानमां कर्ता नामनी शक्ति नथी, पण ज्ञानमां कर्ताशक्तिनुं रूप छे. ए वडे ज्ञान पोते पोतानो ज (ज्ञाननो) कर्ता छे; तेम ज्ञानमां कर्मशक्ति नथी, पण ज्ञानमां कर्मशक्तिनुं रूप छे. ए वडे ज्ञान पोते ज पोतानुं-ज्ञाननुं कर्म छे; इत्यादि. आ धीमे धीमे धीरजथी समजवुं प्रभु! अहा! आ तो सर्वज्ञ वीतराग अरिहंत परमेश्वरनो मार्ग छे. हवे ‘णमो अरिहंताणं’-एम रोज बोले पण अरिहंत परमेश्वर कोण छे एनी लोकोने कांई खबर न मळे! अरे भाई! अरिहंतनुं स्वरूप जाणीने तेमने साचा नमस्कार करवा ते तो कोई अलौकिक चीज छे. अहाहा...! भगवान अरिहंतना जेवो ज पोतानो द्रव्य स्वभाव छे एम जाणी जे निज द्रव्य स्वभावनी द्रष्टि करे छे तेने शुद्ध जीवत्व सहित अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव थाय छे. अहा! ते अतीन्द्रिय आनंदनी एक समयनी पर्यायमां षट्कारकरूप परिणमन छे. आनंद पर्याय ते कर्ता, आनंदनी पर्याय ते कर्म, आनंदनी पर्याय ते करण- साधन, आनंदनी पर्याय ते संप्रदान, ते ज अपादान अने ते ज अधिकरण-एम आनंदनी पर्याय पोते षट्कारकरूप परिणमी जाय छे. समजाणुं कांई...? हवे आमां व्यवहारथी थाय एम कयां रह्युं?

ए तो द्रव्यसंग्रहनी ४७मी गाथामां आवी गयुं के-निश्चय अने व्यवहार बन्ने मोक्षमार्ग ज्ञानीने ध्यानमां एक समयमां साथे होय छे. श्रीमद् राजचंद्रजीए पण कह्युं छे के-

नय निश्चय एकांतथी, आमां नथी कहेल,
एकांते व्यवहार नहि, बन्ने साथे रहेल.

निश्चय अने व्यवहार बन्ने साथे होय छे, छतां निश्चय ते व्यवहार नथी, ने व्यवहार ते निश्चय नथी. बन्नेना षट्कारक