११४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ छे अने परम वीतरागता थई छे. तेथी शरीरनी मुद्रा पण शांत-परमशांत देखाय छे. ए मुद्राना निमित्ते जो एम विचारे के भगवान चैतन्यमूर्ति जाणे शांत-शांत-शांत अंदर स्वरूपमां ठरी गया छे अने एम विचारी पोताना अंतरंगमां जुए तो भगवान एकलो ठरी गयेलो शांत जणाय छे.
अहीं निमित्तथी कथन कर्युं छे. जो सर्वज्ञ परमात्माना समोसरणमां वीतरागमुद्राने देखी पोते शांत-शांत थई जाय तो भगवानना शरीरने निमित्त कहेवाय. बहेनश्रीनां वचनामृतमां आवे छे के हे नाथ! शांतरसना परमाणुथी आपनुं शरीर विराजे छे. अने भगवान आत्मानो अंदर वीतरागस्वभाव प्रगट थई गयो छे. शांत- शांत-शांत शरीरना रजकणो पण उपशमरस जेवा शांत देखाय एने देखीने जोनारो पण जो एम विचारे के पोतानुं अविकारी स्वरूप पण आवुं शांत छे तो एने अंदरमां शान्ति थाय. जो त्यां ने त्यां ऊभो रहे अने भगवाननी शांत मुद्रा, शरीरनी कान्ति इत्यादिना विकल्पो ज कर्या करे तो पुण्यबंधन थाय. (शांतिरूप धर्म न थाय.)
‘आवो उपकार जाणी शरीरना आश्रये पण स्तुति करे छे; तथा शान्त मुद्रा देखी अंतरंगमां वीतराग भावनो निश्चय थाय छे ए पण उपकार छे’ अंतरंगमां निश्चय थाय एनी वात छे. बाकी एकली शांत मुद्रा एवी तो अनंत वार करी अने देखी, अनंत वार भगवाननी मूर्तिओ देखी अने पूजा पण अनंत वार करी, समोसरणमां अनंत वार गयो पण भगवान आत्मा अंदर शांत-शांत-शांत, रागना विकल्पनी अशांतिथी भिन्न उपशमरसनो कंद छे एम अंतरंगमां निश्चय न कर्यो. तेथी भगवाननी मुद्रा पण निमित्त थई न कहेवाय.
जेम सक्करकंदनी उपरनी लाल छाल न जुओ तो अंदर आखो सक्कर एटले साकर नाम मीठाशनो सफेद पिंड पडयो छे, तेम पुण्य-पापना विकल्पनी छाल विनानो शांतरसथी भरेलो चैतन्यपिंड अंदर पडेलो छे एम भगवाननी शांत मुद्रा देखीने अंदर निश्चय करे तो उपकार (निमित्त) छे. पण एने आवी नवराश कयां छे? तेथी तो चार गतिमां अनादिथी रखडपट्टी करी रह्यो छे. समयसार नाटकमां बनारसीदासे कह्युं छे केः-
आ शरीरनुं वर्णन ए जिनवर्णन नथी. अंदर वीतरागमूर्ति शांतरसनो पिंड प्रभु आत्मा चैतन्यस्वरूप विराजे छे ए जिन छे. एनुं वर्णन जिनवर्णन कोई जुदी चीज छे. एनुं ज्ञान-श्रद्धान करवुं ए सम्यग्दर्शन आदि धर्म छे. अन्यथा शरीरादिना वर्णनमां रोकाई जाय तो पुण्यबंध थाय ए ज.