Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 394 of 4199

 

गाथा २८ ] [ ११३

ए ज भाव हवेनी गाथामां कहे छेः-

* गाथा २८ः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘जेम, परमार्थथी श्वेतपणुं सुवर्णनो स्वभाव नहि होवा छतां पण, चांदीनो गुण जे श्वेतपणुं, तेना नामथी सुवर्णनुं “श्वेत सुवर्ण” एवुं नाम कहेवामां आवे छे.’ जुओ, ज्यारे सोनुं अने चांदीने गाळीने गट्ठो करे तो सोनाने “धोळुं सोनुं” एम कहेवामां आवे छे. त्यां सोनुं धोळुं नथी, सोनुं तो पीळुं ज छे. धोळुं तो रूपुं छे अने सोनुं तो पीळाश, चीकाश आदिथी अभिन्न छे. छतां चांदीना मेळापथी चांदीनो गुण जे श्वेतपणुं छे एना नामथी सोनाने “श्वेत सुवर्ण” एम व्यवहारमात्रथी ज कहेवामां आवे छे, परमार्थे एम नथी.

‘तेवी रीते, परमार्थथी शुकल-रक्तपणुं तीर्थंकर-केवळीपुरुषनो स्वभाव नहि होवा छतां पण, शरीरना गुणो जे शुकल-रक्तपणुं वगेरे, तेमना स्तवनथी तीर्थंकर- केवळीपुरुषनुं “शुकल-रक्त तीर्थंकरकेवळीपुरुष” एवुं स्तवन करवामां आवे छे ते व्यवहारमात्रथी ज करवामां आवे छे.’ भगवान धोळा अने भगवान राता एम श्वेत- रक्तपणुं ए तीर्थंकर-केवळीनो स्वभाव नथी. ए तो शरीरना गुण छे. आवे छे ने के सोळ तीर्थंकर सोनावर्णे हता, बे राता वर्णे, बे धोळा वर्णे, बे नीलवर्णे अने बे अंजनवर्णे हता. भाई! ए तो बधी शरीरनी वातो छे आत्मानी नहि. ए तो व्यवहारथी कहेवामां आवी छे. जेम चोखानो कोथळो होय तेमां चोखा चार मण होय अने कोथळो अढी शेर होय ते भेगो तोळाय, चार मण अने अढीशेर. हवे तेमांथी चोखा खूटे तो अढी शेरनो कोथळो कांई रांधवामां काम आवे? (न आवे). तेम शरीर तो कोथळो छे अने अंदर त्रिकाळी भगवान आनंदकंद आत्मा ए चोखा (सार वस्तु) छे. ए बन्नेनुं एकपणुं त्रण काळमां नथी. ए एकपणुं तो व्यवहारमात्रथी कहेवामां आवे छे. परंतु शरीर अने आत्मानुं एकपणुं नहि होवाथी निश्चय नये शरीरनुं स्तवन करवाथी आत्मानुं स्तवन बनतुं ज नथी.

* गाथाः २८ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘अहीं कोई प्रश्न करे के व्यवहारनय तो असत्यार्थ कह्यो छे अने शरीर जड छे तो व्यवहारना आश्रये जडनी स्तुतिनुं शुं फळ छे?’

‘तेनो उत्तरः-व्यवहारनय सर्वथा असत्यार्थ नथी, निश्चयने प्रधान करी असत्यार्थ कह्यो छे. वळी छद्मस्थने पोतानो, परनो आत्मा साक्षात् देखातो नथी, शरीर देखाय छे, तेनी शांतरूप मुद्रा देखी पोताने पण शांत भाव थाय छे.’ शुं कहे छे? भगवानने अंदर निर्मळ परिणतिरूप केवळज्ञान प्रगटयुं छे, णमो अरिहंताणं-सर्वज्ञपद प्रगटयुं