कोई वळी कहे छे-क्रमबद्धनो अर्थ एक पछी एक थाय एम बराबर, पण अमुक आ ज थाय एम नहि. परंतु एवी वस्तुस्थिति नथी भाई! द्रव्यनी (त्रिकाळवर्ती) प्रत्येक पर्यायनो क्रम नियत-निश्चित ज छे. कोई पर्याय कदीय आडीअवळी थई शके नहि. दरेक पर्याय पोताना क्षणिक उपादाननी योग्यतानुसार जे काळे जे थवायोग्य होय ते ज ते काळे निश्चित प्रगट थाय छे.
जुओ, आत्मामां एक विभुत्वशक्ति छे एनी अहीं वात छे. आ विभुत्वशक्ति पूरा द्रव्यमां अने तेना अनंत गुणोमां व्यापक छे. द्रव्यनी अनंत शक्तिओ क्रमबद्ध पर्यायपणे परिणमे छे. बहिद्रष्टिने तेनो अंदर स्वीकार थतो नथी, पण एक अभेद शुद्ध अंतःतत्त्वनी द्रष्टि करतां ज पर्याय क्रमबद्ध थाय छे तेनो यथार्थ निर्णय थाय छे. अमे तो आ वात प्रवचनोमां विस्तारथी करी छे
प्रश्नः– तो आप छापीने बहार पाडवानुं कहो तो वहेली प्रसिद्ध थाय. उत्तरः– अमे कोईने कांई कहेता नथी. तत्त्व-विचार अने स्वाध्याय करवा सिवाय बीजा कोई काममां अमे पडता नथी. शुं छापवुं ने बहार पाडवुं ए समाजनुं काम छे, अमारुं ते काम नथी.
आ विभुत्व नामनी शक्ति सर्व शक्तिओमां व्यापे छे, द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणेमां व्यापे छे. तेथी द्रव्य विभु, गुण विभु ने वर्तमान पर्याय विभु छे. सूक्ष्म वात छे प्रभु! आ ज्ञानस्वभाव विभु छे, ने ज्ञाननी वर्तमान दशा विभु छे. ज्ञाननी क्रमसर पर्याय सुनिश्चित जे थवायोग्य होय ते ज प्रगट थाय छे, अने तेनी साथे अनंत गुणनी पण ते समये सुनिश्चित जे पर्याय प्रगट थवानी होय ते ज प्रगट थाय छे, अनंत गुणनी पर्यायमां पण आ विभुत्व गुण व्यापे छे.
त्यारे कोई वळी कहे छे-क्रमबद्ध पर्याय मानवाथी नियत (-नियतवाद) थई जाय छे. अरे भाई! जेम द्रव्य अने तेनी शक्ति नियत छे अने निश्चित छे तेम पोतानी क्षणिक उपादाननी योग्यता अनुसार समय समये प्रगट थती दरेक पर्याय पण नियत ज छे. जे समये जे पर्याय थवायोग्य छे ते ज प्रगट थाय छे; पण पर्याय क्रमबद्ध छे एवो निर्णय करनारनी द्रष्टि त्रिकाळी शुद्ध एक ज्ञायक उपर जाय छे त्यारे ज क्रमबद्धनो यथार्थ निर्णय थाय छे. द्रव्यद्रष्टि रहित अज्ञानीने आ वात गोठती नथी. ते कहे छे-श्रुतज्ञाननी अपेक्षा नियत नथी. पण भाई! तारो तर्क यथार्थ नथी, केमके श्रुतज्ञाननी अपेक्षा पण दरेक पर्याय क्रमबद्ध ज छे एवो यथार्थ निर्णय सम्यग्द्रष्टिने होय छे. भाई! जरा द्रष्टि सूक्ष्म करी आ समजवा माटे प्रयत्न करवो जोईए; आ अवसर छे.
प्रश्नः– हा, पण पंचास्तिकायनी गाथा १पपमां संसारी जीवने नियत तथा अनियत एम बन्ने प्रकारनी पर्यायो थया करे छे एम कह्युं छे ने? गाथा आ प्रमाणे छे-
उत्तरः– हा, पंचास्तिकायनी गाथा १पपमां नियत अने अनियत पर्यायनी वात छे. त्यां स्वभाव अने स्वभावलीन निर्मळ पर्याय प्रगट थाय तेने नियत कहेल छे अने विभाव पर्याय प्रगट थाय तेने अनियत कहेल छे. अनियत पर्याय एटले ते आगळ-पाछळ के आडी-अवळी थाय एवो त्यां अर्थ नथी. अनियत एटले स्वभावमां अनवस्थित अनेकरूप विकारी पर्याय; ते पण जे समये प्रगट थाय ते नियत क्रमबद्ध ज प्रगट थाय छे. गाथामां अने टीकामां पण गुण-स्वभाव अने निर्मळ पर्यायने नियत कहेल छे, अने विकारी विभाव पर्यायने अनियत कहेल छे. अहीं अनियतनो अर्थ पर्याय आडी-अवळी थाय छे एम छे नहि. भाई! पोतानी मति-कल्पनाथी शास्त्रना अर्थ करे ते केम चाले? न चाले. पाणीनो शीतळ स्वभाव ते नियत छे, स्वभावलीन शीतळ दशा ते नियत छे अने अग्निना निमित्ते तेनी उष्ण दशा ते अनियत छे. आवी वात! समजाणुं काई...!
शुं थाय? लोकोने पूर्वना आग्रह (हठाग्रह) होय एटले आ बेसे नहि. आ वात पहेलां हती नहि; हमणां सोनगढथी प्रसिद्धिमां आवी छे एटले केटलाक हठपूर्वक तेनो विरोध करे छे. ए तो ‘जैनतत्त्वमीमांसा’मां केवळज्ञान- स्वभावमीमांसा नामना प्रकरणमां पं. श्री. फूलचंदजीए आ बाबते कह्युं छे के-“ज्यारथी सर्व द्रव्योनी पर्यायो क्रमनियमित (क्रमबद्ध) थाय छे आ तथ्य प्रमुखरूपथी बधानी सामे आव्युं छे त्यारथी विद्वानो द्वारा आवा कुतर्क उठाववामां आव्या छे. जेमना मनमां एवुं शल्य घर करी बेठुं छे के केवळज्ञानने सर्व द्रव्यो अने तेनी सर्व पर्यायोनुं ज्ञाता मानी