Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३१ ] [ १२१ जीतवुं थयुं. आम जे (मुनि) द्रव्येन्द्रियो, भावेन्द्रियो तथा इंद्रियोना विषयभूत पदार्थो- ए त्रणेने जीतीने, ज्ञेय-ज्ञायक-संकर नामनो दोष आवतो हतो ते सघळो दूर थवाथी एकत्वमां *टंकोत्कीर्ण अने ज्ञानस्वभाव वडे सर्व अन्यद्रव्योथी परमार्थे जुदा एवा पोताना आत्माने अनुभवे छे ते निश्चयथी ‘जितेन्द्रिय जिन’ छे. (ज्ञानस्वभाव अन्य अचेतन द्रव्योमां नथी तेथी ते वडे आत्मा सर्वथी अधिक, जुदो ज छे.) केवो छे ते ज्ञानस्वभाव? आ विश्वनी (समस्त पदार्थोनी) उपर तरतो (अर्थात् तेमने जाणतां छतां ते-रूप नहि थतो), प्रत्यक्ष उधोतपणाथी सदाय अंतरंगमां प्रकाशमान, अविनश्वर, स्वतःसिद्ध अने परमार्थसत्-एवो भगवान ज्ञानस्वभाव छे.

आ रीते एक निश्चयस्तुति तो आ थई.

(ज्ञेय तो द्रव्येन्द्रियो, भावेन्द्रियो तथा इंद्रियोना विषयभूत पदार्थो अने ज्ञायक पोते आत्मा-ए बन्नेनुं अनुभवन, विषयोनी आसक्तताथी, एक जेवुं थतुं हतुं; भेदज्ञानथी भिन्नपणुं जाण्युं त्यारे ते ज्ञेयज्ञायक-संकरदोष दूर थयो एम अहीं जाणवुं.)

शिष्यनो प्रश्न छे के-जेम नगरना वर्णनथी राजानुं वर्णन यथार्थपणे थई शके नहि तेम शरीरना स्तवनथी आत्मानी स्तुति थई शक्ती नथी; तो पछी तीर्थंकर केवळीनी निश्चयस्तुति कोने कहे छे?

तेनुं समाधानः-आत्मा ज्ञायकस्वभावी वस्तु छे. अने आ शरीर-परिणामने प्राप्त जे इंद्रियो छे ते जड छे. तथा एक एक विषयने जे खंडखंडपणे जाणे छे ते भावेन्द्रियो-क्षयोपशमज्ञान पण खरेखर इंद्रिय छे. शरीरपरिणामने प्राप्त जड इंद्रियो जेम ज्ञायकनुं परज्ञेय छे तेम शब्द, रस, रूप, गंध आदिने जाणनार भावेन्द्रियो पण निश्चयथी ज्ञायकनुं परज्ञेय छे; ज्ञायक भगवान आत्मानुं ते स्वज्ञेय नथी. तेमज भावेन्द्रियोथी जणाता जे शब्द, रस, गंध, स्पर्शादि पर पदार्थो ते पर परज्ञेय छे. स्वज्ञेयपणे जाणवा लायक ज्ञायक अने पर तरीके जाणवा लायक परज्ञेय-ए बन्नेनी एकत्वबुद्धि ते मिथ्यात्व, अज्ञान अने संसारभाव छे. ए त्रणेयने (द्रव्येन्द्रियो, भावेन्द्रियो अने तेमना विषयभूत पदार्थोने) जे जीते एटले के परज्ञेय तरफनुं लक्ष छोडीने स्वज्ञेय जे शुद्ध ज्ञायकभावस्वरूप आत्मा छे तेनो अनुभव करे, तेने जाणे, वेदे अने माने ते सम्यग्द्रष्टि छे अने तेने केवळीनी साची अथवा निश्चय स्तुति होय छे. आ अधिकारमां मुनिनी प्रधानताथी वात छे. (सम्यग्द्रष्टि पण एमां आवी जाय छे) धर्मनी शरुआतनी आ गाथा छे. छठ्ठी अने अगीयारमी गाथामां आ ज वात छे. अहीं तेनुं जुदी रीते कथन कर्युं छे. ____________________________________________________________ * टंकोत्कीर्ण = पथ्थरमां टांकणाथी कोरेली मूर्तिनी जेम एकाकार जेवो ने तेवो स्थित.