Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३०-अतत्त्वशक्तिः १४७

ते चारनां द्रव्य-गुण पारिणामिकभावे छे, अने तेनी पर्याय पण पारिणामिकभावरूप कहेवामां आवी छे, केमके तेमां उत्पाद-व्ययरूप पर्यायनी धारा शुद्ध एकरूप वर्ते छे.

जीवद्रव्यमां एक ध्रुव कारणशुद्धपर्याय पारिणामिकभावरूप कहेवामां आवी छे. नियमसारमां ध्रुव कारणशुद्धपर्यायनी वात आवी छे. धर्मास्तिकाय आदि चारे द्रव्यनां द्रव्य-गुण अने पर्याय पारिणामिकभावरूप एकरूप छे; तेमां उत्पाद-व्ययरूप पर्यायनी धारा एकरूप वर्ते छे, पण आत्मद्रव्यमां एकरूप उत्पाद-व्यय नथी. तेनी संसार दशामां विकारी पर्यायना उत्पाद-व्यय थाय छे, मोक्षमार्गमां शुद्ध-अशुद्ध पर्यायना उत्पाद-व्यय थाय छे, अने सिद्ध दशामां एकली शुद्ध पर्यायना उत्पाद-व्यय होय छे. आ प्रमाणे जीवमां उत्पाद-व्ययवाळी पर्याय एकरूप नथी. चार द्रव्यमां जेम उत्पाद-व्ययनी एकरूप धारा त्रिकाळ चाले छे, तेम जीवमां उत्पाद-व्ययनी धारा त्रिकाळ एकरूप नथी.

जीवद्रव्यमां ध्रुव कारणशुद्धपर्याय छे ते त्रिकाळ धारावाही एकरूप छे, पण आ कारणशुद्धपर्याय प्रगट उत्पाद- व्ययरूप नथी. सामान्य... सामान्य एवुं जे आत्मद्रव्य त्रिकाळ ध्रुव छे तेना विशेषरूप ध्रुव कारणशुद्धपर्याय छे; तेमां उत्पाद-व्यय नथी. समुद्रनी (एकरूप)सपाटीनी जेम कारण-शुद्धपर्याय त्रिकाळ ध्रुव छे. नियमसारनी गाथा १ थी १९ सुधीनां प्रवचनो छपाईने बहार पडयां छे तेमां आ विषय स्पष्ट कर्यो छे, सामान्य वस्तु जे ध्रुव छे, तेमां एक विशेष ध्रुव कारणशुद्धपर्याय अनादिअनंत वर्ते छे. तेने नियमसारमां १पमी गाथामां पंचमभावनी पूजनीक परिणति कही छे. हवे आवा सूक्ष्म विषयनुं श्रवण, विचार, धारणा, मंथन होय नहि एटले विद्वानोने पण आ वात बेसे नहि, पण शुं थाय? भाई, उंडां तलस्पर्शी विचार ने मंथन करी आनो सम्यक् निर्णय करवो जोईए. आ कारणशुद्धपर्याय छे ते प्रगट पर्यायरूप नथी, समुद्रमां जेम पाणीनी सपाटी होय छे तेम आ भगवान आत्मा अनंत गुणनी ध्रुव पिंडरूप वस्तु छे तेमां सपाटी समान अनादिअनंत ध्रुव कारणशुद्धपर्याय छे. आ तद्न नवी वात छे. सूक्ष्म चिंतन-मनन वडे तेनो यथार्थ निर्णय करवो जोईए.

जेम गुण त्रिकाळ ध्रुव छे, तेम दरेक गुणनी पर्याय त्रिकाळ ध्रुव अनादिअनंत शुद्ध छे; आ उत्पादव्यय विनानी कारण-शुद्धपर्याय छे. अहाहा...! आ कारणशुद्धपर्यायमां पण अतत्त्वशक्ति व्यापक छे. द्रव्य-गुणनो तो आ स्वभाव छे के विकारपणे न थवुं, कारणशुद्धपर्यायनोय एवो स्वभाव छे के विकाररूपे न थवुं. आ अतत्त्वशक्ति छे ते द्रव्य-गुण-पर्याय त्रणेमां व्यापे छे. भगवान आत्मा शुद्ध कारणपरमात्मा छे तेना उपर द्रष्टि रहेतां प्रगट पर्यायमां पण रागरूपे न थवुं एवुं शुद्ध परिणमन थई जाय छे. भाई! आ त्रणलोकना नाथ भगवान जिनेन्द्रदेवनी वाणी छे. बहारमां तो अनेक प्रकारनी क्रिया करो, व्रत-तप करो ने धर्म थई जशे एम वात चाले छे, पण ते यथार्थ नथी. न्यालचंदभाईए ‘द्रव्यद्रष्टि प्रकाश’ नामना पुस्तकमां कह्युं छे के-‘करना सो मरना है’, केमके करवामां तो एकला विकल्प छे. आ विकल्पोमां गुंचाईने जीव पोताना चैतन्य जीवननुं मरण करे छे. अहीं कहे छे-चैतन्य छे ते चैतन्यरूपे परिणमन करे छे, ते जडरूपे कदीय न थाय एवी एनी अतत्त्वशक्ति छे. भगवान आत्मा त्रिकाळ एक ज्ञायकपणे रह्यो छे, ते शुभाशुभभावरूपे कदी थयो ज नथी. ते जडरूपे कदी थयो ज नथी. अजीव अधिकारमां शुभाशुभभावने अजीव-जड कह्या छे.

समयसारनी छट्ठी गाथामां आचार्यदेवे आ छट्ठीना लेख लख्या छे के-ज्ञायकभावस्वरूप आत्मा त्रिकाळ ज्ञायकबिंब छे, ते कदीय शुभाशुभभावरूपे थयो ज नथी. चैतन्यनुं तेज ए शुभाशुभभावमां प्रसरतुं ज नथी. भाई, मारग तो आवो छे, ने आ ज हितनो मारग छे. भाई, तारा द्रव्य-गुण ने कारणपर्यायनी सहज शक्ति ज एवी छे के आत्मा रागरूपे, व्यवहार रत्नत्रयपणे थाय नहि. ए तो स्वभावनी द्रष्टि जेणे छोडी दीधी छे एवा पर्यायद्रष्टिवाळा अज्ञानीने पर्यायमां विकार उत्पन्न थाय छे बाकी द्रव्य विकारने उत्पन्न करे एवुं एमां छे ज नहि.

अरेरे! तत्त्वद्रष्टि विना जीव अनादिकाळथी दुःखी-दुःखी थईने चार गतिमां रझळी रह्यो छे. जुओ, ब्रह्मदत्त नामे एक चक्रवर्ती थया. तेमनुं ७०० वर्षनुं आयुष्य हतुं. ते पूरुं थतां सातमी नरके जई पडया. अहाहा...! हीराजडित पलंगमां सुनारा, ने जेनी हजारो देव सेवा करे एवा ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती मरीने पापना फळरूपे सातमी नरकमां ३३ सागरनी आयुनी स्थितिमां गया छे. पोताने भूलीने अज्ञानपणे घोर पाप कर्यां तेथी अहींना एक श्वासना कल्पेला सुखना फळमां त्यां ११, प६, ९७प (अगीयार लाख छप्पन हजार नवसो पंचोतेर) पल्योपमनुं दुःख प्राप्त थयुं छे. एक पल्योपमना असंख्यातमा भागमां असंख्य अबज वर्ष वीती जाय छे. अहीं ७०० वर्षना आयुष्यना भोगवटामां एवा दुष्ट भाव