१४६ः प्रवचन रत्नाकर भाग-११ तो ‘णमो सिध्दाणं’-सिद्धपदमां हाल विराजे छे. श्री सीमंधर भगवान महाविदेहक्षेत्रमां हाल बिराजे छे. तेओ ‘णमो अरिहंताणं’-अरिहंतपदे विराजे छे. तेमनी ॐध्वनि हंमेशां नीकळे छे. भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेव संवत ४९नी सालमां विदेहक्षेत्रमां पधार्या हता, त्यां आठ दिवस रह्या हता. तेमणे त्यां साक्षात् भगवाननी वाणी सांभळी छे, ने त्यांथी आवीने पछी आ बधां शास्त्रो रच्यां छे. आम आ भगवाननी वाणी छे.
तेमां कहे छे-रागरूपे, विकाररूपे न थवुं एवी एक आत्मानी अतत्त्वशक्ति छे. दया, दान, व्रत, भक्ति इत्यादिना भाव ए राग छे. देव-गुरु-शास्त्रनी श्रद्धा-विनय-भक्तिनो भाव एय राग छे, शास्त्र भणवां एय राग-विकल्प छे. नव तत्त्वनी भेदरूप श्रद्धा ने पंचमहाव्रतना परिणाम ए पण बधो विकल्प-राग छे. अहीं कहे छे- ए व्यवहार रत्नत्रयना रागरूपे न थवुं एवो अतत्त्वशक्तिस्वरूप भगवान आत्मा छे. हवे आम छे त्यां बैरां- छोकरां ने महेल-मकान ने हजीरा ने धन-संपत्ति इत्यादिपणे थवुं ए कयां रह्युं? अरे, ए तो बधां कयांय दूर रही गयां. भाई! ए बधांने पोतानां मानीने तुं अनंतकाळमां हेरान-हेरान थई गयो छे. अपनेको आप भूलके हेरान हो गया. अरे, पोतानुं स्वरूप अंदर केवुं छे एनी वात एणे अंदर प्रीति लावीने कदी सांभळी नथी. श्री पद्मनंदि स्वामी पद्मनंदि पंचविंशतिमां कहे छे ने के-
निश्चितं स भवेद्भव्यो भाविनिर्वाणभाजनम्।।
अहा! जीवे रागथी भिन्न निज भगवान आत्मानी वात प्रीतिपूर्वक कदी सांभळी नथी. आचार्य कहे छे- अंतरमां प्रीति लावीने जे निज शुद्धात्मानी वात सांभळे छे ते अवश्य भावि निर्वाणनुं भाजन थाय छे.
जुओ, पहेलां कह्युं के-आनंदरूपे परिणमे एवी आत्मानी तत्त्वशक्ति छे. अहीं कहे छे-रागरूपे ने जडपणे परिणमे नहि एवी आत्मानी अतत्त्वशक्ति छे. आवी वात! हवे अत्यारे तो बहार बधे प्ररूपणा ज एवी चाले छे के -दया पाळो, व्रत करो, तपस्या करो, भक्ति करो, ने एम करतां करतां आत्म-कल्याण थई जशे. पण आवी प्ररूपणा बराबर नथी, केमके पररूपे के रागरूपे परिणमे एवी आत्मामां कोई शक्ति ज नथी; उलटानुं कहे छे- आत्मामां अतद्भवनरूप अतत्त्वशक्ति छे. शरीरपणे न थवुं ए तो ठीक वात, पण पर्यायमां रागादिरूप परिणमन छे ते-रूपे-तद्रूपे न थाय एवी अतत्त्वशक्ति आत्मामां त्रिकाळ पडी छे.
शुद्ध चैतन्यपणे थवुं एवी आत्मानी तत्त्वशक्ति छे, ने रागरूपे न थवुं एवी एनी अतत्त्वशक्ति छे. एवो ज एनो स्वभाव छे. तेथी राग करो ने तमारुं कल्याण थई जशे एवी वात तद्न विपरीत छे. मिथ्यात्वना जोरमां अज्ञानी भले गमे ते कहे, पण रागादिरूप न थवुं एवो भगवान आत्मानो त्रिकाळी स्वभाव छे. हवे आम छे त्यां आ पैसा कमावा, ने सगांवहालांने राजी राखवां, ने विषयभोग भोगववा इत्यादिरूपे आत्मा थाय ए वात कयां रहे छे? ए तो बधुं कयांय दूर रही गयुं. हवे तत्त्व-समजण करतो नथी, ने आखो दि’ संसारना प्रपंचमां ज रच्यो रहे छे, पण एनुं फळ बहु आकरुं आवशे भाई! मिथ्यात्वनुं फळ परंपरा निगोद छे बापु!
अहीं कहे छे-जे एनामां नथी ते-रूपे थवुं एवो वस्तुनो स्वभाव ज नथी; पररूपे ने रागादिरूपे न थाय एवो आत्मानो स्वभाव छे.
चक्रवर्तीने नव निधान होय छे; ए तो धूळ-जड निधान छे. अने भगवान आत्मामां अनंत चैतन्यशक्तिनां निधान भर्यां छे. पण एनो महिमा लावी एनी रुचि एणे कदी करी नथी. कदीक शास्त्रनुं ज्ञान थयुं तो एमां खुशी थई गयो, संतुष्ट थई गयो; परंतु भाई, शास्त्रज्ञान ए वास्तवमां ज्ञान ज नथी, आत्मज्ञान ज्ञान छे. अहीं कहे छे-अज्ञानपणे न थवुं एवी आत्मानी अतत्त्वशक्ति छे. जेम परमाणुमां कर्म थाय एवो कोई गुण नथी; गुण विना अद्धरथी परमाणुमां कर्मरूपी पर्याय थाय छे, तेम आत्मामां विकार थाय एवी कोई शक्ति नथी; अद्धरथी, गुण विना, पर्यायमां स्वतंत्र पोताथी विकार थाय छे. बाकी विकारपणे न थवुं एवो ज द्रव्यनो त्रिकाळी स्वभाव छे; आवुं अतत्त्वशक्तिनुं स्वरूप छे.
जेम एक परमाणु द्रव्यमां पीडा नथी, पीडानो अभाव छे, तेम त्रिकाळी आत्मद्रव्यमां विकार नथी, विकारनो अभाव छे. विकारने उत्पन्न करे एवी आत्मामां कोई शक्ति नथी. आत्मामां एक वैभाविकशक्ति छे, पण ते शक्ति विकार करे छे, विभावरूप परिणमन करे छे एवो एनो अर्थ नथी. ए तो धर्मास्तिकाय आदि चार द्रव्योमां नथी एवी विशेष शक्तिने वैभाविकशक्ति कहेवामां आवी छे. जीव अने पुद्गल परमाणु-आ बे द्रव्योमां आवी खास शक्ति छे. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश अने काळ ए चार द्रव्योनुं तो शुद्ध परिणमन सदा पारिणामिकभावरूप छे.