Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). 30 AtattvaShakti.

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३०-अतत्त्वशक्तिः १४प

पण तद्रूप भवनरूप चैतन्यनी निराकुल आनंदनी परिणति न थाय.

भाई! तारा आत्मामां तद्रूप भवनमय तत्त्वशक्ति छे; तेने ओळखी अंतर्मुख थतां ज तेनुं तद्रूप परिणमन थाय छे, अने आ ज धर्म छे, आ ज मोक्षमार्ग छे.

आ प्रमाणे तत्त्वशक्तिनुं अहीं वर्णन पूरुं थयुं.

३०ः अतत्त्वशक्ति

‘अतद्रूप भवनरूप एवी अतत्त्वशक्ति.’ (तत्स्वरूप न होवारूप अथवा तत्स्वरूपे नहि परिणमवारूप अतत्त्व-शक्ति आत्मामां छे. आ शक्तिथी चेतन जडरूप थतो नथी.)

अहाहा...! रागरूपे न थवुं, पुण्यना भावपणे न थवुं, पर द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावपणे न थवुं एवी अतत्त्व नामनी जीवमां शक्ति छे. पोताना स्वद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावपणे रहेवुं... निर्मळ निर्मळ थवुं-ते तत्त्वशक्तिमां वात करी. अने रागपणे न थवुं तेम ज परना द्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावपणे न थवुं एवो जे आत्मानो स्वभाव छे ते अतत्त्वशक्ति छे.

ल्यो, हवे लोको तो कहे छे के-व्यवहार करतां करतां निश्चय थशे, त्यारे अहीं आ स्पष्ट कहे छे के- व्यवहाररूपे न थवुं एवी आत्मानी अतत्त्वशक्तिनुं स्वरूप छे. अहाहा...! अनंत अनंत शक्तिनो भंडार प्रभु आत्मा छे. भाई! तारा भंडारमां अक्षय निधान भर्यां छे. अहा! ते निधान एवां भर्यां छे के केवळज्ञान थाय तोय तेमां कांई घटाडो थतो नथी; अने निगोदमां गयो त्यां अक्षरना अनंतमा भागे मतिज्ञान हतुं त्यारेय अंतरनां अक्षय निधान तो एवां ने एवां पूर्ण रह्यां छे. आ लसण ने डुंगळीमां निगोदना जीवो छे. एक नानकडी कणीमां असंख्य शरीर छे, ने एकेक शरीरमां अनंता जीवो रह्या छे. पण ए जीवो स्वरूपथी तो तद्रूप भवनरूप छे.

काले वात करी हती के नारकीने स्वर्गनुं सुख नथी. आ लौकिक सुखनी वात छे; साचुं सुख तो स्वर्गनी धूळमांय कयां छे? कोई नारकी जीवनी आयुष्यनी स्थिति दस हजार वर्षनी होय छे, ने वधारेमां वधारे ३३ सागरनुं आयुष्य होय छे. ते नारकीना जीवने स्वर्गनुं सुख बीलकुल नथी, तेम ज स्वर्गना देवने नारकी जीवोनुं दुःख बीलकुल होतुं नथी. तेवी रीते परमाणुमां पीडा नथी, तथा भगवान आत्मामां विकार के शरीर नथी. एक परमाणु छूटो छे ते शुद्ध होय छे, स्कंधमां भळतां ते विभावरूपे थाय छे. स्कंधमां वैभाविक पर्याय थाय छे. कर्मरूप पर्याय छे ते वैभाविक पर्याय छे; कर्मपणे थाय एवो कोई गुण परमाणुमां नथी. विभावरूप पर्याय पोताथी स्वतंत्र थाय छे. परमाणु स्वतंत्रपणे, कोई गुण विना, पर्यायमां कर्मरूपे-विभावरूपे परिणमे छे. आ शरीर, मन, वाणी, इन्द्रिय, पैसा-धूळ ए बधा स्कंधो छे ते वैभाविक दशारूपे थयेला छे. तेवी रीते भगवान आत्मामां विकार थाय एवो कोइ गुण नथी, बल्के विकारपणे न थाय एवो आत्मानो अतत्त्व स्वभाव-गुण छे. आवी वात! समजाणुं कांई...? विकार थाय ए तो परना लक्षे स्वतंत्र थयेली वैभाविक दशा छे, ते कांई शक्तिना कार्यरूप नथी. आवी झीणी वात भाई!

बेनना वचनामृतमां आवे छे के-जेम अग्निमां उधई नथी, कंचनमां काट नथी, तेम आत्मामां आवरण नथी, उणप नथी, अशुद्धि नथी. अहाहा...! भगवान आत्मा पूर्णविज्ञानघन, परम पवित्र, पूर्णानंदनो नाथ प्रभु छे, तेमां परद्रव्यरूपे न थवारूप एक अतत्त्वशक्ति त्रिकाळ पडी छे. अहा! रागरूपे ने शरीररूपे न थाय एवी आत्मामां अतत्त्व-शक्ति त्रिकाळ छे. हवे आवी वात कोई भाग्यशाळी होय तेना काने पडे. स्तुतिमां आवे छे ने के-

भवि भागनवश जोगे वशाय,
तुम धुनि ह्यै सुनि विभ्रम नशाय.

पुण्यना फळमां आ धूळ-लक्ष्मी मळे ते भाग्यशाळी एम नहि, भगवाननी वाणी काने पडे ते भाग्यशाळी छे; ए धूळवाळा-लक्ष्मीवाळा तो भांगशाळी छे, केमके एमने तो एनो नशो चढे छे ने!

भाई! आ तो त्रणलोकना नाथ सर्वज्ञ परमात्मानी वाणी छे. भगवान महावीर स्वामी तो मोक्ष पधार्या. तेओ