गाथा ३२ ] [ १३३ ए पांचनां सूत्रो इंद्रियसूत्रद्वारा जुदां व्याख्यानरूप करवां; एम सोळ सूत्रो जुदां जुदां व्याख्यानरूप करवां अने आ उपदेशथी बीजां पण विचारवां.
थाय छे तेने भेदज्ञानना बळथी जुदो अनुभवे ते जितमोह जिन छे. अहीं एवो आशय छे के श्रेणी चडतां मोहनो उद्रय जेने अनुभवमां न रहे अने जे पोताना बळथी उपशमादि करी आत्माने अनुभवे छे तेने जितमोह कह्यो छे; अहीं मोहने जीत्यो छे; तेनो नाश थयो नथी.
शिष्यनो प्रश्न हतो के ज्यारे शरीरना वर्णनथी आत्मानां वर्णन अने स्तुति थतां नथी तो आत्मानी-केवळीनी निश्चयस्तुति कोने कहे छे? आ प्रश्नना उत्तरमां गाथा ३१, ३२ अने ३३ मां केवळीना गुणोनी स्तुति कोने कहेवाय छे एनी वात करी छे. तेमां प्रथम ३१ मी गाथामां कह्युं के-द्रव्येन्द्रिय, भावेन्द्रिय अने तेना विषयो ए त्रणेयनुं लक्ष छोडीने ज्ञानानंदस्वभाव जे परथी भिन्न-अधिक परिपूर्ण छे तेनो अनुभव करवो ते पहेला प्रकारनी केवळीनी स्तुति छे. हवे आ गाथामां बीजा प्रकारनी स्तुति कोने कहेवाय ते कहे छे.
कर्मनो उद्रय आवे छे ते भावक छे, अने ते भावकने अनुसरीने जे विकार थाय छे ते भाव्य छे. आ भाव्य-भावकनी एक्ता छे त्यां सुधी तेटलो अस्थिरतानो दोष छे. एक्ता छे एटले के समक्तिीने कर्मना उद्रयना अनुसार विकारी परिणति थाय छे एनी वात छे. (एक्ताबुद्धि छे एम नहि). सम्यग्द्रष्टिने आत्माना आनंदनो अनुभव होवा छतां पर्यायमां कर्मना उद्रय तरफनुं वलण छे. एने अहीं भाव्यभावक संकरदोष कहे छे. आ दोष मिथ्यात्वनो नथी, पण चारित्रनो छे. आ दोष कर्मना उद्रयना कारणे थाय छे एम नथी पण ते कर्मना उद्रयने अनुसरीने थती पोतानी परिणतिना कारणे छे. ते परिणतिने उद्रयथी दूर हठावतां (उद्रयने हठाववानो नथी) पर तरफनुं जोडाण छूटी जाय छे. त्यारे तेने भाव्यभावक-संकरदोष दूर थाय छे. आ बीजा प्रकारनी स्तुति छे.
भावक जे कर्म छे तेने अनुसरीने पर्यायमां जे विकार थवानी लायकात छे ते भावकनुं भाव्य छे. निमित्तना वलणमां भाव्यभावकपणानी एकपणानी जे वृत्ति थाय छे ते भाव्य-भावक-संकरदोष ते. तेने जे जीते छे भाव्यभावक दोष रहित थाय छे. आ अंदरनी पोतानी स्तुति छे. राग अने निमित्तनुं लक्ष छोडी स्वभावनुं लक्ष करवाथी, निमित्तने आधीन जे भाव्य-विकारी भाव थतो हतो ते थयो नहि तेने अहीं केवळीनी बीजा प्रकारनी स्तुति कहे छे. जेने आ बीजा प्रकारनी स्तुति थई होय तेने पहेला प्रकारनी स्तुति तो होय ज छे.
ज्ञानीए-मुनिए मिथ्यात्व तो जीत्यो छे, परंतु हजु कर्मनो जे उद्रय आवे छे तेमां जोडाण न करतां ज्ञानस्वभाव वडे सर्व परद्रव्योथी अधिकपणे पोताना स्वरूपमां