गाथा ३६ ] [ १९७ आवो चिद्घनपरिपूर्ण शक्तिओथी भरेलो भंडार-ते हुं छुं एम जेना अनुभवमां आवे छे ते अनुभव एक निर्विकारी कर्म-कार्य छे, अने तेने मोक्षमार्ग कहे छे.
कर्म अर्थात् कार्य-पर्याय. आत्मामां कर्म नामनो त्रिकाळ गुण छे. तेथी कार्य- पर्याय ते कर्म गुणमांथी आवे छे. ए कर्म गुणनुं रूप बीजा अनंत गुणोमां छे. एक गुणमां बीजो गुण नथी, पण एक गुणमां बीजा गुणनुं रूप छे. र्क्ता गुणनुं रूप, कर्म गुणनुं रूप वगेरेनुं रूप बीजा अनंत गुणमां छे. एक गुणमां के एक गुणना आश्रये बीजो गुण छे एम नहि. गुणो तो सर्व द्रव्यना आश्रये छे. पण एक गुणमां बीजा गुणना रूपनुं सामर्थ्य छे. कर्ता गुण छे ते ज्ञानगुणथी भिन्न छे. पण ज्ञानगुणमां कर्ता गुणनुं रूप छे. तेवी रीते कर्मगुणनुं पण रूप छे. आवो शुद्ध चैतन्यघननो निधि हुं छुं एम ज्ञानी अनुभवे छे. अहाहा! तेना स्वभावना सामर्थ्यनी शुं शक्ति छे! रागरूपे थवुं ए कोई शक्ति के गुण नथी. वस्तु तो शुद्ध चिद्घन एटले शुद्ध आनंदघन, शुद्ध ज्ञानघन, शुद्ध वीर्यघन-एम अनंता गुणनुं घन-समूह छे. भाई! तेने प्राप्त करवा केटलो पुरुषार्थ जोईए?
वीर्यनो वेग ज्यां अंतरमां वळे छे त्यां ज्ञानी एम अनुभवे छे के हुं तो पूर्णस्वरूप निधि छुं. हुं शरीर नथी, राग नथी, पुण्य-पाप नथी अने अल्पज्ञ पण नथी, तेम ज एकगुणरूप पण नथी; हुं तो अनंता गुणनुं एक निधान-खाण छुं.
आवी ज रीते गाथामां जे ‘मोह’ पद छे तेने बदलीने राग लेवो. रागना भावकपणे हुं नथी. कर्म भावक छे अने तेनुं भाव्य राग छे. ते हुं नथी. हुं तो ज्ञायक छुं. तेथी ते मारा ज्ञानमां जणावा योग्य छे. परंतु ते राग मारा ज्ञाननी पर्यायमां (तद्रूप) आवी जाय एवुं मारुं स्वरूप नथी. एवी ज रीते द्वेष पण जे कर्म भावक छे तेनुं भाव्य छे. पण ते ज्ञायकनुं भाव्य नथी. ज्ञायकनुं भाव्य तो द्वेषने लक्षमां लीधा विना जाणवुं ते छे. ते ज प्रमाणे क्रोध ए कर्म-भावकनो भाव छे पण ज्ञायकनो भाव नथी. हा, ज्ञायकनुं भाव्य जे ज्ञान ते ज्ञानमां क्रोध जणाय छे खरो, पण ते क्रोध ते हुं नहि. ज्ञानमां क्रोध जणाय छे एम कहेवुं ते व्यवहार छे. खरेखर तो ज्ञाननी पर्यायनुं स्वपरप्रकाशकरूप व्यक्त थाय छे, अने ते हुं छुं पण क्रोध हुं नथी. आ तो प्रवीण एटले विचक्षण पुरुषना अनुभवनी वात छे.
अहाहा! भगवानना मुखेथी छूटती दिव्यध्वनि केवी हशे! आखा लोकना स्वामी इन्द्रो अने गणधरो सभामां सांभळता होय अने भगवानना श्रीमुखेथी अमृतनो धोध वहेतो होय ए वाणीमां केटकेटलुं स्पष्टीकरण आवे? आचार्य भगवंतो जो आटली चमत्कारिक वातो करे छे तो भगवाननी दिव्यध्वनिनी शी वात! अहाहा! पंचम आराना छद्मस्थ मुनिओ एम कहे छे के-अमे तो पूर्ण निधि छीए. एमांथी अनंत आनंद