कही छे ने? ए रुचिमां आत्मा जणायो एटले आत्मा रुचि अने ज्ञानमां स्थित थयो एवी शैलीथी वात करी छे.
जीव एटले भगवान आत्मा जे दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां स्थित थई रह्यो छे एने स्वसमय कहेवामां आवे छे. आचार्य भगवान पोते मुनि छे ने? एटले ‘चारित्र-दर्शन-ज्ञानस्थित’ एवा शब्दनो प्रयोग कर्यो छे. त्रिकाळी जे छे ते सम्यक् श्रद्धा-ज्ञान-चारित्रनी पर्यायमां ख्यालमां आव्यो एटले एमां ए स्थित छे एम कही एवा जीवने स्वसमय कह्यो. एनो अर्थ के जे अनादिथी रागमां स्थित हतो ते आत्मामां स्थित थयो.
अहो! समयसारनी एक कडी तेना भाव सहित यथार्थ समजे तो कल्याण थाय एवुं छे.
‘जीव’ शब्द केम वापर्यो? केटलाक कहे छे के आत्मा तो तद्न शुद्ध छे अने जीव अशुद्ध छे, पण एम नथी एवुं सिद्ध करवा जीव शब्द वापर्यो छे. जीव कहो के आत्मा, बन्ने एक ज चीज छे.
अहीं बीजी गाथामां ‘जीवो चरित्तदंसणणाणठिदो’ त्यांथी उपाडयुं छे, अने छेल्ले ज्यां ४७ शक्तिओनुं वर्णन छे त्यां जीवत्व शक्तिथी शरूआत करी छे. आत्मामां एक जीवत्व शक्ति छे जेने लईने आत्मा ज्ञान, दर्शन, आनंद अने सत्ता एवा भाव-प्राणने धारण करे छे-एनाथी टके छे. जीव कहेतां जीवतुं द्रव्य जीवत्व स्वभावथी जीवे छे. अहीं एम कहे छे के-हे भव्य! जे जीव दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां स्थित थई रह्यो छे, एटले जे (जीव) ज्ञानमां जणाय छे, श्रद्धामां निर्णीत थाय छे, स्थिरतामां आवे छे तेने निश्चयथी स्वसमय जाण. कुंदकुंदाचार्य पोकारीने कहे छे के हे भाई! जे आत्मा पोतानी श्रद्धामां श्रद्धायो, ज्ञानमां जणायो अने चारित्रमां ठर्यो एने तुं स्वसमय जाण. जीवने ध्येय (द्रष्टिमां लेवा योग्य) तो द्रव्य छे ए वात अहीं नथी. अहीं तो जे आत्मा पोताना स्वरूपे परिणमे छे एने स्वसमय कह्यो छे. जे आत्मा पोतानी शुद्ध परिणतिमां आवे छे एने स्वसमय कह्यो छे. आत्मा जे विकाररूपे हतो ते ज्यारे शुद्ध परिणतिए परिणमे त्यारे ते स्वसमय छे, त्यारे आत्मा आत्मारूपे थयो एम कहेवाय. अलबत, आवा आत्माने ध्येय तो त्रिकाळी द्रव्य ज छे. नियमसारमां आवे छे के-सर्वकर्मना क्षयनो हेतु एवो जे मोक्षमार्ग-सम्यक्दर्शन- ज्ञान-चारित्र-जेने अहीं स्वसमय परिणति कही एनो हेतु त्रिकाळ परमात्मा छे.
‘अने जे जीव पुद्गलकर्मना प्रदेशमां स्थित थयेल छे तेने पर समय जाण.’ जे जीव रागमां स्थित छे ए पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां स्थित छे, ते भगवान आत्माना श्रद्धा-