ज्ञान-चारित्रमां स्थित नथी. राग-द्वेष आदि विकारना जेटला अंशो छे ए बधा पुद्गलकर्मना प्रदेशो छे, आत्मानो भाव नथी. तेथी एने परसमय-अनात्मा जाण.
‘एकसाथे’ एवो छे; अने ‘अय’ गमनार्थक धातु छे एनो गमन अर्थ छे अने ज्ञान अर्थ पण छे. तेथी एकसाथे जाणवुं अने परिणमवुं एवी बे क्रियाओ जेमां होय ते समय कहेवामां आवे छे. आ जीव नामनो पदार्थ एक ज वखते परिणमे पण छे अने जाणे पण छे तेथी ते समय छे. जीव जे सम्यक्दर्शननो विषय त्रिकाळी शुद्ध आत्मा ते वात अहीं नथी. अही तो जीवनी सत्ता-होवापणुं सिद्ध करे छे.
आ जीव पदार्थ केवो छे? ‘सदाय परिणमनस्वरूप स्वभावमां रहेलो होवाथी, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यनी एकतारूप अनुभूति जेनुं लक्षण छे एवी सत्ताथी सहित छे.’ अहीं अनुभूतिनो अर्थ अनुभव एम नथी. अनुभूतिनो अर्थ रहेवुं एम थाय छे. उत्पाद-व्यय-ध्रुवपणे रहेवुं एवो अनुभूतिनो अर्थ छे. अनुभूति एटले सम्यग्ज्ञान ए वात अहीं नथी. जड पण उत्पाद-व्यय-ध्रुवपणे रहे छे तेने जडनी अनुभूति कहे छे. जड पण एक समयमां टकीने परिणमे छे तेथी ते सत् छे, सत्ता सहित छे. पण एक समयमां परिणमे अने जाणे एवी विशेषता जडमां नथी. अहीं तो जीवनी सत्तानुं वर्णन छे.
‘उत्पादव्ययध्रौव्य युक्तं सत्’ सूत्र छे ने. (तत्त्वार्थसूत्र) आत्मा पण उत्पाद- व्यय-ध्रौव्य युक्तं सत्, एवी सत्ताथी सहित छे. उत्पाद, व्यय अने ध्रुव ए त्रणेयना एक समयमां होवापणारूप सत्ता छे. सम्यक्दर्शननो विषय शुं छे ते वात पछी करशे. अहीं तो जीवनी हयाती केवी रीते छे तेनी सिद्धि करी छे. उत्पाद एटले नवी पर्यायनुं थवुं, व्यय एटले जूनी पर्यायनुं जवुं अने ध्रुवपणे कायम रहेवुं एवी सत्तानी अहीं वात छे. जीव जे समये जाणे ते ज समये परिणमे एवी उत्पाद-व्यय- ध्रुवरूप सत्ता ए जीवनुं स्वरूप छे.
आ विशेषणथी जीवनी सत्ता नहीं माननार नास्तिकवादीओनो मत खंडित थयो. तथा पुरुषने अपरिणामी माननार सांख्योनो व्यवच्छेद थयो. जीव परिणमतो नथी, कूटस्थ छे एम माननारनो परिणमनस्वभाव कहेवाथी निषेध थयो. द्रव्यस्वभाव, ध्रुव अपरिणामी जे सम्यक्दर्शननो विषय छे ते वात अहीं नथी. अहीं तो परिणाम सहितनुं आखुं द्रव्य सिद्ध करवुं छे.