Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४८ [ समयसार प्रवचन

नैयायिको अने वैशेषिको सत्ताने नित्य ज माने छे. बौद्धो सत्ताने क्षणिक ज माने छे. ए बधानुं अहीं निराकरण थयुं. उत्पाद-व्यय-ध्रुवरूप सत्ता कहेवाथी उत्पाद- व्ययरूप परिणमन न माने एनो निषेध थयो अने एकलुं क्षणिक ज माने एनो ‘ध्रुव’ कहेवाथी निषेध थयो. उत्पाद-व्यय-ध्रुवरूप सत्तानी अहीं सिद्धि करी छे. कई अपेक्षाथी कहेवाय छे ते ध्यानमां राखे तो आ समजाय एवुं छे. उत्पाद-व्यय-ध्रुवरूप सत्तानुं होवापणुं तेने अहीं अनुभूति कहेवामां आवी छे.

वळी जीव केवो छे? ‘चैतन्यस्वरूपपणाथी नित्य-उद्योतरूप निर्मळ स्पष्ट दर्शनज्ञान-ज्योतिस्वरूप छे.’ अहीं पण परिणमननी वात छे, त्रिकाळी ध्रुवनी वात नथी. अहीं चैतन्यनुं परिणमन दर्शनज्ञानस्वरूप छे एम कह्युं छे. जडनुं परिणमन जडपणे छे अने चैतन्यनुं परिणमन दर्शनज्ञानपणे छे एम सिद्ध कर्युं छे. आ दर्शन एटले सामान्य उपयोग अने ज्ञान एटले विशेष उपयोगनी वात छे. दर्शन एटले सम्यक्दर्शन नहीं, चैतन्यस्वरूपपणाथी पोते चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा छे ते नित्यउद्योतरूप निर्मळ स्पष्ट दर्शनज्ञान ज्योतिमय परिणमन स्वरूप छे. चैतन्यनुं परिणमन दर्शनज्ञानस्वरूप छे. आ विशेषणथी चैतन्यने ज्ञानाकार-ज्ञानस्वरूप नहीं माननार सांख्यमतनुं निराकरण थयुं.

वळी ते केवो छे? ‘अनंत धर्मोमां रहेलुं जे एकधर्मीपणुं तेने लीधे जेने द्रव्यपणुं प्रगट छे. अनंत धर्मोनी एकता ते द्रव्यपणुं छे. अहीं तो बधा धर्मोनी वात छे, एकलो ध्रुव एम नहीं, पण उत्पाद, व्यय, ध्रुव आदि अनंत धर्मोथी तेने एकधर्मीपणुं प्रगट छे. सम्यक्दर्शननो विषय जे ध्रुव द्रव्य तेनी अहीं वात नथी. आ तो द्रव्यना अनंत धर्मोमां रहेलुं जे एकपणुं तेने लीधे द्रव्यपणुं जेने प्रगट छे ए द्रव्यनी वात छे. आ विशेषणथी वस्तुने धर्मोथी रहित माननार बौद्धमतनो निषेध थयो.

अहा! उत्पाद-व्यय-ध्रुवपणे आखो समय छे’ ते प्रमाणज्ञाननो विषय छे. सम्यक्दर्शननो विषय जे द्रव्य ते जुदी वस्तु छे. अहीं तो हजु आखी वस्तु सिद्ध करे छे.

वळी ते केवो छे? ‘क्रमरूप अने अक्रमरूप प्रवर्तता अनेक भावो जेनो स्वभाव होवाथी जेणे गुणपर्यायो अंगीकार कर्या छे.’ क्रमे प्रवर्ते ते पर्याय अने अक्रमे प्रवर्ते ते गुण छे. अहीं तो वस्तुने सिद्ध करवी छे. आखी चीज गुणो अने पर्यायो सहित छे. गुणो ते अक्रमवर्ती छे, एटले सहवर्ती छे; पर्यायो उत्पाद-व्ययरूप क्रमवर्ती छे; आवो ज स्वभाव छे. सम्यक्दर्शननो विषय जे द्रव्य एनी आ वात नथी. आ तो जीव द्रव्य आखी चीज छे ते गुणपर्यायो सहित छे एम नक्की करे छे. तेमांथी सम्यक्दर्शननो विषय जे ध्रुवसामान्य ते पछी सिद्ध करशे. आ विशेषणथी पुरुषने निर्गुण माननार सांख्यमतनो निरास थयो.