Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] ४९

वळी ते केवो छे? ‘पोताना अने पर द्रव्योना आकारोने प्रकाशवानुं सामर्थ्य होवाथी जेणे समस्त रूपने झळकावनारुं एकरूपपणुं प्राप्त कर्युं छे. अहा...! पोतानुं ज्ञान करे अने परद्रव्यना आकारनुं एटले परना स्वरूपनुं ज्ञान करे एवुं स्व-परने प्रकाशवानुं एनुं सामर्थ्य छे. त्रणकाळ त्रणलोकने जाणवानुं सामर्थ्य एक समयनी पर्यायनुं छे, छतां एकरूपपणे रहे छे; खंड खंड नथी थतुं एम कहे छे.

अहा! आचार्योए केटली करुणा करीने स्पष्ट कर्युं छे. साधारण जीवोने ख्यालमां आवे एवी शैलीथी स्पष्ट कर्युं छे. उत्पाद-व्ययरूप बधी पर्यायो क्रमसर थाय छे. अहीं तो वस्तुने सिद्ध करे छे एटले बधी पर्यायोनी वात छे. सम्यक्दर्शन कई रीते थाय ए वात अत्यारे नथी. अहीं तो वस्तुनी सिद्धि करे छे के सर्वज्ञ- परमात्माए जोयेलुं तत्त्व आवुं छे. ए सिवाय अन्यमतीओ गमे ते प्रकारे कहे तेनो अहीं निषेध करे छे. अन्यमतवाळा कहे एवुं वस्तुस्वरूप छे ज नहीं. पोताना अने परद्रव्योना आकार-स्वरूपने प्रकाशवानुं सामर्थ्य होवाथी समस्त रूपने प्रकाशनारुं एकपणुं जेणे प्राप्त कर्युं छे एवो जीव पदार्थ ते समय छे. त्रणकाळ, त्रणलोकने ज्ञाननी पर्याय जाणे छतां ज्ञान एक आकाररूप छे एम कहे छे. आ विशेषणथी ज्ञान पोताने ज जाणे छे, परने नथी जाणतुं एम एकाकार ज माननारनो तथा पोताने नथी जाणतुं पण परने जाणे छे एम अनेकाकार ज माननारनो व्यवच्छेद थयो.

वळी ते केवो छे? अन्य द्रव्योना जे विशेष गुणो-खास गुणो, जेमके आकाशनो अवगाहन हेतुत्व, धर्मास्तिकायनो गतिहेतुत्व, अधर्मास्तिकायनो स्थितिहेतुत्व, काळनो वर्तनाहेतुत्व अने पुद्गलनो रूपीपणुं-तेमना अभावने लीधे अने असाधारण चैतन्यरूपता-स्वभावना सद्भावने लीधे आकाश, धर्म, अधर्म, काळ अने पुद्गल ए पांच द्रव्योथी जे भिन्न छे. अन्य द्रव्यना जे खास गुणो एनो आत्मामां अभाव होवाने लीधे अने असाधारण चैतन्यस्वभावना सद्भावने लीधे आकाश आदि पांच द्रव्योथी जीव भिन्न छे. आ विशेषणथी एक ब्रह्मवस्तुने ज माननारनो व्यवच्छेद थयो.

वळी ते केवो छे? अनंत अन्य द्रव्योना क्षेत्रथी भिन्न छे. ‘अनंत अन्य द्रव्यो साथे अत्यंत एकक्षेत्रावगाहरूप होवा छतां पण पोताना स्वरूपथी नहि छूटवाथी जे टंकोत्कीर्ण चैतन्यस्वभावरूप छे.’ ज्यां आत्मा छे त्यां अनंत परमाणु, आकाश, काळ, धर्म, अधर्म बधुं छे. आवो अत्यंत एकक्षेत्रावगाह होवा छतां जीव पोताना स्वरूपथी छूटतो नथी, चैतन्यस्वरूप ज पोते रहे छे. गुण अने पर्यायपणे टंकोत्कीर्ण चैतन्यस्वभाव ज रहे छे. आ विशेषणथी वस्तुस्वभावनो नियम बताव्यो. जीव अन्य द्रव्यो साथे एक ज क्षेत्रमां