मळीने रहेवा छतां पोताना क्षेत्रथी भिन्नपणे रही पोताना चैतन्यस्वभावरूप ज रहे छे, स्वरूपथी कदीय छूटतो नथी. आवो ज वस्तुस्वभाव छे.
आम सात बोलथी जे कहेवामां आव्यो एवो जीव नामनो पदार्थ ते समय छे. सात बोलथी समय सिद्ध कर्यो छे.
-उत्पाद-व्यय-ध्रुवयुक्त सत्ताथी सहित छे. -दर्शनज्ञानस्वरूप परिणमन सहित छे. -अनंत धर्मोमां रहेला एकधर्मीपणाने लीधे तेने द्रव्यपणुं प्रगट छे. -अक्रमवर्ती अने क्रमवर्ती एवा गुणपर्यायो सहित छे. -स्व-पर स्वरूपने प्रकाशवानुं सामर्थ्य होवाथी तेने समस्त रूपने प्रकाशनारुं
-असाधारण चैतन्य गुणना सद्भावने लीधे तथा परद्रव्योना विशेष गुणोना
-अन्य द्रव्योथी अत्यंत एकक्षेत्रावगाह होवा छतां पोताना भिन्न क्षेत्रपणे
अहा! ज्ञान एने कहीए जे पूर्वापर विरोध रहित वस्तुने सिद्ध करे. आगळ- पाछळ विरोध आवे तेने ज्ञान न कहेवाय.
हवे अहीं स्वसमय परसमय कई रीते छे ते समजावे छे. ‘ज्यारे आ जीव, सर्व पदार्थोना स्वभावने प्रकाशवामां समर्थ एवा केवळज्ञानने उत्पन्न करनारी भेदज्ञान-ज्योतिनो उदय थवाथी, सर्व परद्रव्योथी छूटी दर्शनज्ञानस्वभावमां निश्चितप्रवृत्तिरूप आत्मतत्त्व साथे एकत्वरूपे लीन थई प्रवृत्ति करे छे त्यारे दर्शन- ज्ञान-चारित्रमां स्थित थवाथी पोताना स्वरूपने एकतारूपे एक ज वखते जाणतो तथा परिणमतो एवो ते ‘स्व-समय’ एम प्रतीतरूप करवामां आवे छे.’
सर्व पदार्थोना स्वभावने प्रकाशे ते केवळज्ञान छे. एवा केवळज्ञानने भेदज्ञानज्योति प्रगट करे छे. आ भेदज्ञानज्योतिनो उदय थतां सर्व परद्रव्योथी छूटी, दर्शनज्ञानस्वभावमां, पर्यायरहित अभेद त्रिकाळ ध्रुव, चैतन्यरूप आत्मतत्त्वमां द्रष्टि करी तेनी साथे एकत्वगतपणे वर्ते छे त्यारे दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां स्थित थयो एम कहेवामां आवे छे. युगपद् स्वने एकत्वपूर्वक जाणतो अने स्वमां एकत्वपणे परिणमतो ते ‘स्वसमय’ एम प्रतीत करवामां आवे छे-एटले के जाणवामां आवे छे. अहीं टीकामां जाणवाना अर्थमां प्रतीत शब्दनो प्रयोग कर्यो छे.