Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] प१

पहेलां (बीजा बोलमां) जे दर्शन-ज्ञान आव्युं हतुं ते देखवा-जाणवानी वात हती. अहीं ‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां’ दर्शन कहेतां सम्यक्दर्शननी वात छे. शुद्ध, अभेद चैतन्य पूर्णानंदस्वरूप भगवाननी रुचि ते सम्यक्दर्शन, तेनुं ज्ञान ते ज्ञान अने तेमां रमणता-स्थिरता ते चारित्र. ते दर्शन-ज्ञान-चारित्रमां स्थित थवाथी युगपद् स्वने एकत्वपणे जाणतो अने परिणमतो-ते स्वसमय जाण एम कहे छे.

सात बोलथी जीवना स्वरूपने कही चरित्त-दर्शन-ज्ञानस्थितनी व्याख्या करतां केवलज्ञानने उत्पन्न करनारी भेदज्ञानज्योतिनी वात करी छे. सर्व परद्रव्योथी भिन्न पडी, दर्शनज्ञानस्वभावमां नियतवृत्ति-एटले त्रिकाळ जे आत्मतत्त्व तेनी साथे एकत्वपणे वर्तवापणुं छे ते भेदज्ञान छे. आवुं भेदज्ञान केवळज्ञाननी उत्पत्तिनुं कारण छे.

एक समयमां केवलज्ञान-केवलदर्शनज्योतिथी बिराजमान चैतन्यसूर्य भगवान अरिहंतदेव परमात्मा जेमनुं नाम-स्मरण करवुं पण भलुं छे-केमके गुणवाळुं नाम छे ने? -एवा भगवाने स्वसमयना स्वरूपनुं वर्णन करतां एम कह्युं छे के-जे आत्मा परथी भिन्न पडी पोताना दर्शनज्ञानस्वभावमां एकत्व पामे छे तेने तुं स्वसमय जाण, एम सर्वज्ञनी कहेली वात अहीं आचार्यदेव कहे छे.

अहा! केवी स्पष्ट व्याख्या करी छे? सत्नो ढंढेरो पीटयो छे.

पाठमां ‘जीवो चरित्तदंसणणाणट्ठिदो’– स्वसमयनी वात प्रथम करी छे. हवे परसमयनी वात करे छे. ‘ज्यारे ते, अनादि अविद्यारूपी जे केळ तेना मूळनी गांठ जेवो जे मोह तेना उदय अनुसार प्रवृत्तिना आधीनपणाथी, दर्शनज्ञानस्वभावमां निश्चितप्रवृत्तिरूप आत्मतत्त्वथी छूटी परद्रव्यना निमित्तथी उत्पन्न मोह-राग-द्वेषादि भावोमां एकतारूपे लीन थई प्रवर्ते छे त्यारे पुद्गलकर्मना कार्मणस्कंधरूप प्रदेशोमां स्थित थवाथी परद्रव्यने पोतानी साथे एकपणे एककाळमां जाणतो अने रागादिरूप परिणमतो एवो ते ‘परसमय’ एम प्रतीत करवामां आवे छे. आ तो सर्वज्ञ परमेश्वरे जोयेल आत्मानी वात छे. अज्ञानीओ, जेओ आत्माने जोया अने जाण्या विना कहे एमनी वात नथी. दर्शनज्ञानस्वभावी आत्मा अनादि अज्ञानथी मोहमां पडी, पोताना स्वभावथी छूटी रागद्वेषने एकत्वपणे जाणतो अने एकत्वपणे परिणमतो वर्ते छे त्यारे ते पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां स्थित होवाथी एने ‘परसमय’ एम प्रतीत करवामां आवे छे एटले के ते परसमय छे एम जाणवामां आवे छे.

आ रीते जीव नामना पदार्थने स्वसमय अने परसमय एम द्विविधपणुं प्रगट थाय छे.