Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ इच्छानुसार शरीरमां क्रिया थाय छेण. माटे शरीर ए ज आत्मा छे आवो ते अज्ञानीओनो मत छे. आ चार्वाक मत छे.

चार बोल पुरा थया. हवे पांचमो बोल कहे छे. कोई एम कहे छे के समस्त लोकने पुण्यपापरूपे व्यापतो जे कर्मनो विपाक ते ज जीव छे कारण के शुभाशुभ भावथी अन्य जुदो कोई जीव जोवामां आवतो नथी. अज्ञानीने आखा लोकमां पुण्य-पापनुं करवुं-एटलुं ज मात्र देखाय छे. परंतु शुभ अने अशुभ भावो एनाथी भिन्न आत्मा एने जणातो नथी. पण ए भिन्न जणातो नथी एवो निर्णय तो ज्ञाने कर्यो ने? परंतु ए ज्ञान उपर अज्ञानीनी द्रष्टि जती नथी. अहीं पुण्य-पापना र्क्तानी वात लीधी छे. शुभाशुभ भावना र्क्ता थईने परिणमवुं-एनाथी भिन्न आत्मा अज्ञानीने देखातो नथी.

हवे छठ्ठो बोल भोक्तानो कहे छे. कोई कहे छे के शाता-अशातारूपे व्याप्त जे समस्त तीव्र-मंदत्वगुणो ते वडे भेदरूप थतो जे कर्मनो अनुभव ते ज जीव छे. कारण के सुख-दुःखथी अन्य जुदो कोई जीव देखवामां आवतो नथी. भगवान आत्मा अनंत अनंत सुखनुं धाम छे. परंतु अज्ञानीने एनी तरफ नजर नथी. ए तो शातामां मंद अने अशातामां तीव्र एवो जे भेदरूप कर्मनो अनुभव तेने ज जाणे छे अने तेथी ए ज जीव छे एम माने छे. शाताना अनुभवमां सुखनुं (अल्प दुःखनुं) वेदन अने अशाताना अनुभवमां (तीव्र) दुःखनुं वेदन देखाय छे. तेथी ते अज्ञानवश जे सुख-दुःखनो अनुभव थाय छे तेने ज जीव माने छे.

अज्ञानीनी द्रष्टि निरंतर पर्याय उपर ज रहेती होय छे. वस्तुतत्त्व जे चैतन्यमूर्ति त्रिकाळी शुद्ध आत्मा तेनी एने द्रष्टि ज नथी. तेथी शाता-अशाताना उद्रयमां जे मोह-जनित सुख-दुःखनुं वेदन तेनाथी भिन्न शुद्ध आत्मजनित वेदन होई शके छे एवुं एने भासतुं ज नथी. आम पर्यायबुद्धि जीवो, अनंतशक्तिमंडित जे त्रिकाळी शुद्ध आत्मद्रव्य तेनी द्रष्टिनो अभाव होवाथी, सुख-दुःखनी कल्पनास्वरूप जे शाता-अशातानुं वेदन होय छे तेने ज भ्रमवश आत्मा माने छे.

हवे सातमो बोलः-कोई कहे छे के शिखंडनी जेम उभयरूप मळेलां जे आत्मा अने कर्म, ते बन्ने मळेलां ज जीव छे कारण के समस्तपणे कर्मथी अन्य जुदो कोई जीव जोवामां आवतो नथी. अज्ञानी कहे छे के कर्मरहित आत्मा थाय एवुं तो कांई जणातुं नथी. अहाहा....! निश्चयथी वस्तु तो त्रिकाळ कर्मरहित ज छे. परंतु ए वस्तुना स्वभाव उपर द्रष्टि करे तो ने? ए तो अवस्थामां आत्मा अने कर्म उभयरूप मळेलां जुए छे अने तेथी तेने ज आत्मा माने छे. खरेखर तो कर्मथी भिन्न जीव नथी, नथी-एवुं जे एनुं ज्ञान ते ज जीवनुं भिन्न अस्तित्व सिद्ध करे छे. (जीव नथी एवुं जाणनार पोते ज जीव छे).