Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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४४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ ज निरंतर अनुभवो एम कह्युं छे. शुभरागनो जे अनुभव छे ते दुःखरूप छे, ते परमार्थ नथी.

व्यवहार आवे खरो, पण ते परमार्थ नथी. भगवान आत्माने अनुभववो ते परमार्थ छे. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रथी शुद्धात्माने सेववो अने उत्कृष्ट लक्ष्मी-ज्ञान अने आनंद प्रगट करवां ते परमार्थ छे. झीणी वात छे, पण सादी भाषामां कहेवाय छे. कलकत्तेथी अमुक युवान छोकरा आव्या हता. पण अरे! आत्मा कयां बाळक, वृद्ध के युवान छे? भगवान आत्मानो अनुभव करे ते खरेखर युवान छे. आत्मानो अनुभव न करे अने रागने पोतानो माने ते अज्ञानी वृद्ध होय, ३१ सागरनी आयुष्यनी स्थितिवाळो देव होय तोपण ते बाळक छे. रागथी भिन्न पडीने भगवान आत्मानो अनुभव करे त्यां आत्मा पुष्ट थाय छे माटे ते युवान छे. बाळकपणामां आत्मानुं शोषण (हीनता) थतुं हतुं तेथी तेने बाळक कह्यो. अने पूर्ण केवळज्ञान प्रगटावे ते खरेखर वृद्ध छे.

रागादि भावोमां चेतनपणानो भ्रम उपजे छे, पण ते परमार्थे चेतन नथी. स्वभावनी द्रष्टिए दया, दान, व्रत, भक्ति आदिनो राग कर्म जन्य छे. जड कर्मनो संबंध आत्माने असद्भूत व्यवहारनयथी छे, रागनो संबंध अशुद्ध निश्चयनयथी छे अने मतिज्ञान आदिनो पण त्रिकाळी आत्मा साथे अशुद्ध निश्चयनयथी संबंध छे. चार गतिनी योग्यता जे छे तेने पण अशुद्ध-निश्चयनयथी आत्मा साथे संबंध छे, केमके ते आत्मानी पर्यायमां छे. अशुद्धनिश्चय कहो के व्यवहार कहो, बन्ने एक ज वात छे. पर्याय ते व्यवहार अने द्रव्य ते निश्चय छे.

[प्रवचन नं. ९२ * दिनांक ११-६-७६]