समयसार गाथा प०-पप ] [ ९प
उत्तरः– भगवान! निमित्त तो छे. (छे एनो कोण निषेध करे?). पण निमित्त करे शुं? भाई! शरीरना एकेएक रजकणनो ते ते काळे परिणमवानो स्वभाव छे तेथी ते पोताना कारणे स्वकाळे परिणमे छे. तेमां निमित्तनो दाव ज कयां छे? रमतमां दाव आवे त्यारे पासा नाखे छे. पण अहीं तो निमित्तनो दाव ज आवतो नथी. कह्युं छे ने के-
जेम सूर्यनो रथ एक पैडाथी चाले छे तेम दरेक पदार्थ एकला पोताना परिणमन- स्वभावथी ज परिणमे छे, तेमां बीजानी अपेक्षा नथी. सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप शुद्धरत्नत्रयना परिणमनमां पण परनी अपेक्षा नथी. श्री नियमसारनी बीजी गाथानी टीकामां आवे छे के ‘निज परमात्मतत्त्वनां सम्यक्-श्रद्धान-ज्ञान-अनुष्ठानरूप शुद्धरत्नत्रयात्मक मार्ग परम निरपेक्ष होवाथी मोक्षनो उपाय छे.’ आम निश्चय मोक्षमार्गने व्यवहारनी के निमित्तनी अपेक्षा छे ज नहि. आ परम वीतरागना शास्त्रनुं कथन छे.
प्रश्नः– तो व्यवहारनय शी रीते प्रयोजनवान छे?
उत्तरः– तेने जाणवो ते प्रयोजनवान छे. बारमी गाथानी टीकामां आवे छे के व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान छे. ते कई रीते? के निश्चयस्वभावनो आश्रय थतां स्वानुभूति प्रगट थाय छे, सम्यग्दर्शन थाय छे छतां पर्यायमां अपूर्णता तथा रागनो अशुद्धतानो भाग ते ते काळे होय छे. तेने ते ते काळे जाणवो-‘तदात्वे प्रयोजनवान्’ प्रयोजवान छे. ज्यां सुधी पूर्ण शुद्धता थाय नहीं त्यां सुधी पर्यायमां जे अशुद्धतानो भाग छे तेने ते समये जाणवो-एम व्यवहारनय जाणेलो प्रयोजनवान छे. व्यवहारनय छे, व्यवहारनयनो विषय पण छे; परंतु व्यवहारनय जाणेलो प्रयोजनवान छे, आदरेलो नहि.
त्रिकाळी शुद्ध द्रव्य छे ते निश्चयनयनो विषय छे. ज्यारे पर्यायमां जे साधकपणुं छे, अपूर्णता छे अर्थात् शुद्धता तेम ज अशुद्धताना अंशो छे ए बधो व्यवहारनयनो विषय छे. तेने ते काळे जाणेलो प्रयोजनवान छे. व्यवहारनय आश्रय करवा लायक नथी माटे व्यवहारनय छे ज नहि एम नथी. जो व्यवहारनय होय ज नहि तो चोथुं, पांचमुं, छठ्ठुं, आदि गुणस्थानो बनशे ज नहि. अने तो पछी तीर्थनो ज नाश थशे, अर्थात् पर्यायना जे भेद छे ते रहेशे ज नहि. माटे जेम निश्चयनयनो विषय छे, तेम व्यवहारनयनो पण विषय तो छे पण ते आश्रय करवा लायक नथी एम यथार्थ समजवुं.
अहीं कार्मण शरीरनी वात चाले छे. जे कर्मनो उद्रय छे ते जडनी पर्याय छे, पुद्गलना परिणाममय छे. माटे ते भगवान आत्माथी भिन्न छे एम कहे छे. पाठमां तो शरीरने आत्माथी भिन्न न कहेतां अनुभूतिथी भिन्न कह्युं छे, केमके राग, कर्म अने शरीरनी परिणतिथी लक्ष छोडीने जेणे एक चैतन्यस्वभावी आत्माना लक्षे अनुभूति प्रगट करी छे तेने तेओ भिन्न छे एम जणाय छे. शरीरादिने कहेवा छे तो आत्माथी भिन्न, पण