९६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ ज्यारे शरीरादिथी भिन्न परिणति करे त्यारे भिन्न छे एम ख्याल आवे ने? तेथी ते शरीरादि अनुभूतिथी भिन्न छे एम अहीं कह्युं छे.
औदारिक शरीर पुद्गलमय परिणाम छे. तेनुं क्षणे क्षणे जे परिणमन थाय छे ते जड पुद्गलमय छे. ते जीवमय नथी के जीवना परिणाममय नथी. अंदर आत्मा छे माटे ते चाले छे, परिणमे छे एम नथी. तेवी रीते रागनुं निमित्त छे माटे कार्मण शरीरनुं परिणमन थाय छे एम नथी. राग छे माटे ते वखते कर्मने चारित्रमोहपणे परिणमवुं पडे छे एम नथी. ते वखते परमाणुमां ते रीते परिणमवानो स्वकाळ छे तेथी ते रीते ते परिणमे छे. एमां रागनी कांई अपेक्षा नथी. तेम आहारक ऋद्धिधारी मुनिने प्रश्न पूछवानो विकल्प आव्यो माटे आहारक शरीर बन्युं एम नथी. ते समये आहारक शरीरनो परिणमवानो काळ हतो माटे ते आहारक शरीर बन्युं छे. जीवे तेने बनाव्युं एम कहेवुं ए बधी (व्यवहारनी) वातो छे.
वैक्रियक शरीर अनेक रूप धारण करे छे. ते वैक्रियक शरीरना परमाणुओनी पर्याय पुद्गलमय छे. जीवनी इच्छा छे माटे ते अनेक रूप धारण करे छे एम नथी. जे ते क्षणे जे रूपे परिणमवानो तेनो स्वकाळ छे ते रूपे ते स्वयं परिणमे छे. आ प्रमाणे औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस अने कार्मण शरीर-बधाय जीवने नथी, कारण के ते पुद्गल-द्रव्यना परिणाममय होवाथी पोतानी अनुभूतिथी भिन्न छे. निज शुद्ध परमात्मानी अनुभूतिमां तेओ भिन्न भासे छे तेथी ते जीवने नथी. परथी भिन्न पडीने ज्यारे आत्मानुभूति करे छे त्यारे ते अनुभूतिथी शरीरना परिणाम तद्न भिन्न रही जाय छे.
जुओ, औदारिक, वैक्रियक, आदि शरीर (शरीरपणे) छे खरां, पण ते बधांय जीवने नथी. जीव तो शरीर विनानो चैतन्यरूपे त्रिकाळ छे. विश्वमां वस्तुओ अनंत छे. जे अनंत छे ते अनंतपणे कयारे रहे? के ज्यारे एकबीजाना कार्यने करे नहि त्यारे. एकबीजामां भळे नहि तो अनंत अनंतपणे रहे. जो एकथी बीजानुं कार्य थाय तो पृथक्पणे अनंत वस्तु रहे नहीं. जो दरेक वस्तुनी परिणति पोताथी थाय अने बीजाथी न थाय एम रहे तो ज अनंत वस्तुओनी अनंतपणे हयाती सिद्ध थाय. तेथी जीव अने औदारिक आदि शरीर जेम छे तेम पृथक् पृथक् समजवां जोईए.
७. समचतुरस्त्र्रसंस्थान जे शरीरनो आकार छे ते पण पुद्गलमय परिणाम छे. ते तेना पोताना कारणे थाय छे. नामकर्मनो उद्रय निमित्त छे माटे थाय छे एम नथी. अहा! गजब वात छे! अंदर पुण्यनो उद्रय छे माटे पैसा आवे छे एम नथी, कारण के उदयना परिणाम भिन्न छे अने जे पैसा आवे छे एनी परिणति भिन्न छे. माटे कर्मने लईने पैसा आवे छे ए वात यथार्थ नथी. साताना उद्रयने लईने अनुकूळ संजोगो मळे छे एम कहेवुं ए पण कथनमात्र छे, वस्तुस्वरूप एम नथी. तेवी रीते असाताना उद्रयने