समयसार गाथा प०-पप ] [ ९७ लईने शरीरमां रोग थाय छे ते पण निमित्तनुं कथन छे. बाकी तो शरीरना परमाणुओने रोगरूपे परिणमवानो काळ होवाथी रोगरूपे परिणमे छे. समचतुरस्त्र संस्थाननी जेम न्यग्रोधपरिमंडळ, स्वाति, कुब्जक, वामन अथवा हुंडक संस्थान-ते बधाय जीवने नथी कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे. आ शरीरनो जे आकार छे ते बधो जडनो आकार छे, पुद्गलना परिणाममय छे. आत्माने लईने तेमां कांई थाय छे एम तो नथी, पण पूर्वे जे शुभाशुभभाव करेला त्यारे जे कर्म बंधायां हतां ते कर्मने लईने एमां कांई थाय छे एम पण नथी.
८. हवे संहनननी-हाडकांनी मजबूताईनी वात करे छे. वज्रर्षभनाराच संहनन विना केवळज्ञान न थाय एम आवे छे ने? भाई, निश्चयथी तो केवळज्ञाननी पर्याय पोताना कारणे थाय छे, द्रव्यना तथा गुणना कारणे थाय छे एम पण नथी. ते पर्यायनुं परिणमन, पोताना षट्कारकथी ते रूपे परिणमवानो काळ छे तेथी थाय छे, वज्रर्षभनाराच संहनन निमित्त छे माटे केवळज्ञान थाय छे एम नथी. स्त्रीने त्रण संहनन होय छे, अने तेथी तेने केवळज्ञान थाय नहीं एम शास्त्रमां आवे छे. ए तो स्त्री पर्यायमां केवळज्ञान थवानी योग्यता नथी तेथी थतुं नथी त्यारे निमित्त केवुं होय छे तेनुं त्यां ज्ञान कराव्युं छे. स्त्रीनुं शरीर छे माटे साधुपणुं आवतुं नथी एम नथी. परंतु स्त्रीनो देह होय तेने आत्मानी परिणतिनुं छठ्ठुं गुणस्थान आवे एवी योग्यता ज होती नथी एम निमित्तनुं त्यां यथार्थ ज्ञान कराव्युं छे.
जेने पूर्णज्ञान थवानुं छे तेना शरीरनी दशा नग्न ज होय छे. वस्त्र होय अने मुनिपणुं आवे तथा वस्त्र सहितने केवळज्ञान थाय ए वस्तुनुं स्वरूप ज नथी. छतां परद्रव्य छे माटे केवळज्ञान नथी एम नथी. भारे विचित्र! एक बाजु एम कहे के वस्त्र सहितने मुनिपणुं आवे नहीं अने वळी पाछुं एम कहे के परद्रव्य नुकशान करे नहि! भाई, मुनिपणानी दशा छे ते संवर-निर्जरानी दशा छे. हवे जे संवर-निर्जरानी दशा छे ते काळमां विकल्पनी एटली ज मर्यादा छे के तेमां वस्त्रादिग्रहणनो (हीन) विकल्प होई शके नहीं. तेथी जेने वस्त्र-ग्रहणनो विकल्प छे तेने ते भूमिकामां मुनिपणुं संभवित नथी. तेथी जे कोई वस्त्र सहित मुनिपणुं माने छे तेने आस्रवसहित सातेय तत्त्वनी भूल छे. तेथी तो श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे कह्युं छे के वस्त्रनो धागो पण राखीने जो कोई मुनिपणुं माने के मनावे तो ते निगोदमां जाय छे. (अष्टपाहुड) अहीं कहे छे के संहननमात्र जीवने नथी. जे वज्रर्षभनाराच, वज्रनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलिका, अथवा असंप्राप्तासृपाटिका संहनन छे ते बधुंय जीवने नथी कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे.