९८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३
९. हवे रागनी वात करे छे. जे प्रीतिरूप राग छे ते बधोय जीवने नथी. आ दया, दान, व्रत, तप, भक्ति इत्यादि शुभराग छे-ते बधोय जीवने नथी, कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय छे अने तेथी अनुभूतिथी भिन्न छे. आकरी वात, भाई! अहीं कहे छे के जे महाव्रतना परिणाम छे ते पुद्गलना परिणाम छे. स्वभावमां तो एवो कोई गुण नथी जे रागरूपे परिणमे. छतां पर्यायमां जे राग थाय छे ते निमित्तने आधीन थतां थाय छे. माटे जे राग थाय छे तेने पुद्गलना परिणाममय कह्यो छे. जुओ, व्यवहाररत्नत्रयना भावने पण पुद्गलना परिणाम कह्या छे. माटे जे व्यवहाररत्नत्रयथी निर्जरा थवी माने छे ते अचेतन पुद्गलथी चैतन्यभाव थवो माने छे. पण ए भूल छे.
भगवान आत्मा चैतन्यस्वरूप ज्ञानपुंजी प्रभु आनंदनो कंद छे प्रीतिरूप राग सघळोय तेने नथी केम के ते पुद्गलना परिणाममय छे. त्रिकाळी शुद्ध चैतन्यना अंतरमां ढळेली पर्याय जे अनुभूति ते अनुभूतिथी राग भिन्न रही जाय छे. अहाहा....! त्रिकाळी शुद्ध उपादानमां निमग्न थयेली अनुभूतिथी राग सघळोय भिन्न रही जाय छे. भाई! जेने प्रीतिरूप रागनो प्रेम छे, मंद रागनो प्रेम छे तेने खरेखर पुद्गलनो प्रेम छे, तेने आनंदनो नाथ भगवान आत्मानो प्रेम नथी. जेने शुभरागनो प्रेम छे ते आत्माना पडखे चडयो ज नथी. तेने आत्मा प्रत्ये अनादर छे. अहीं कहे छे के स्वद्रव्यना आश्रये जे निर्मळ अनुभूति प्रगट थाय छे ते अनुभूतिथी शुभाशुभ सघळोय राग पर तरीके भिन्न रही जाय छे तेथी राग बधोय जीवने नथी.
प्रश्नः– रागने पुद्गल परिणाममय केम कह्यो? शास्त्रमां तो एम आवे छे के जीवने दसमा गुणस्थान सुधी राग होय छे?
उत्तरः– भाई! राग छे ते वस्तुद्रष्टिथी जोतां स्वभावभूत नथी. रागमां चैतन्यना नूरनो अंश नथी. आत्मा चिन्मात्रस्वरूप भगवान अनंतशक्तिथी मंडित महिमावंत पदार्थ छे, पण तेमां एकेय शक्ति एवी नथी जे राग उत्पन्न करे, विकाररूपे परिणमे. छतां पर्यायमां जे राग थाय छे ते पर्यायनो धर्म छे. निमित्तने आधीन थई परिणमतां पर्यायमां राग थाय छे. (स्वभावने आधीन थतां राग थतो नथी). तथा ते स्वानुभूतिथी भिन्न पडी जाय छे. माटे असंख्यात प्रकारे थतो सघळोय शुभाशुभ राग, जीवस्वभावरूप नहि होवाथी तथा अनुभूतिथी भिन्न पडी जतो होवाथी निश्चयथी पुद्गल परिणाममय कह्यो छे. जोके अशुद्ध निश्चयथी रागने जीवनी पर्याय कही छे, परंतु अशुद्ध निश्चय छे ए ज व्यवहारनय छे. पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान कराववा सिद्धांतमां अशुद्धनिश्चयनयथी एटले के असद्भूत व्यवहारनयथी दसमा गुणस्थान सुधी जीवने राग होय छे एम कह्युं छे. वास्तवमां राग पररूप अचेतन जड पुद्गल- परिणाममय छे. राग जो जीवनो होय तो कदीय जीवथी भिन्न पडे नहि तथा जीवनी जे (राग रहित) निर्मळ अनुभूति