Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 617 of 4199

 

समयसार गाथा प०-पप ] [ ९९ थाय छे ते थाय ज नहि. भाई! आ तो वीतराग सर्वज्ञनो मार्ग कोई अलौकिक छे! (तेने खूब रुचिथी समजवो जोईए).

१०. जे अप्रीतिरूप द्वेष छे ते बधोय जीवने नथी. असंख्य प्रकारना जे अणगमारूप द्वेषना भाव छे ते बधाय जीवने नथी कारण के ज्यारे अनुभूति थाय छे त्यारे ते द्वेषभाव भिन्न रही जाय छे. द्वेषभावमां चैतन्यना ज्ञाननो अंश नथी. तेथी ते जीवथी अन्य अजीव पुद्गल-परिणाममय छे. आ अजीव अधिकार चाले छे ने? जीव तो चैतन्यमय चित्स्वरूप छे. तेनी चैतन्यशक्तिनो अंश द्वेषमां नथी. माटे द्वेष सघळोय अचेतन अजीव छे केमके अनुभूतिथी ते भिन्न छे.

११. जे यथार्थ तत्त्वनी अप्रतिपत्तिरूप मोह छे ते बधोय जीवने नथी. वास्तविक चिद्घनस्वरूप चिदानंदमय आत्मानी विपरीत मान्यतारूप मोह छे. एवो मोहभाव बधोय आत्माने नथी कारण के ते पुद्गलपरिणाममय होवाथी पोतानी अनुभूतिथी भिन्न छे. अहाहा! जेणे निज चैतन्यमय स्वद्रव्यनो आश्रय लीधो छे ते मिथ्यात्वना परिणामथी भिन्न पडी जाय छे. तेनामां मिथ्यात्वना परिणाम रहेता नथी एम अहीं कहे छे. चैतन्यना सत्त्वरूप जे आत्मा छे तेनाथी अनेक विपरीत मान्यतारूप मोह छे. ए सघळोय मोह जीवने नथी केमके चैतन्यना सत्त्वमां तेनो प्रवेश नथी अने शुद्ध चैतन्यनो एकनो अनुभव करतां ए बधीय मिथ्या मान्यतारूप मिथ्यात्वनो नाश थइ जाय छे. जगतमां तत्त्वना स्वरूपथी विपरीत अनेक मिथ्या मान्यताओ होय छे. ते बधीय जड पुद्गलना परिणाममय होवाथी स्वानुभूतिथी भिन्न छे. एटले के स्वानुभूति थता ए बधीय मिथ्या मान्यताओनो अभाव थई जाय छे माटे ते जीवने नथी.

१२. हवे आस्त्रवनी वात करे छे. मिथ्यात्व, अविरति, कषाय अने योग जेमनां लक्षण छे एवा जे प्रत्ययो एटले के आस्रवो-ते बधाय जीवने नथी. अहीं कषायमां प्रमाद गर्भित थई जाय छे. अहीं मलिन पर्यायने-भावास्रवने पुद्गलना परिणाममय कह्या छे, कारण के पोते ज्यां चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मानो आश्रय करे छे त्यां आस्रवना परिणाम अनुभूतिथी भिन्न रही जाय छे. मिथ्यात्व तो त्यारे न ज होय पण अन्य आस्रवो पण भिन्न रही जाय छे. आ जड मिथ्यात्वादिनी वात नथी. आ तो जे मलिन परिणामरूप आस्रवो-मिथ्यात्वभाव, अविरतिभाव, छठ्ठा गुणस्थाननो प्रमाद कषायभाव, अने योग छे ते जीवना परिणाम नथी केमके ते अनुभूतिथी भिन्न छे. जो ते चैतन्यस्वरूप जीवना परिणाम होय तो सदाय चैतन्यनी साथे रहे. पण एम नथी केमके चैतन्यना अनुभवथी तेओ भिन्न रही जाय छे.

आत्मा शुद्ध चैतन्यमूर्ति भगवान छे. तेना परिणाम, ज्ञान अने आनंदमय ज होय छे. चित्शक्ति जेनुं सर्वस्व छे एवी चैतन्यमय वस्तुना परिणाम चैतन्यनी जातना ज