१०० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ होय. शुद्ध चैतन्यस्वभावना आश्रये उत्पन्न थयेल परिणाम शुद्ध चैतन्यमय ज होय. परंतु आ आस्रवो बधाय पुद्गल परिणाममय होवाथी स्वानुभूतिथी भिन्न छे. तेथी ते जीवने नथी. अहो! आचार्यदेवे स्वभावनी द्रष्टि करी स्वानुभूतिनी निर्मळ परिणति प्रगट करवानी शुं प्रेरणा करी छे!
तो मोक्षमार्गप्रकाशकमां सातमा अधिकारमां श्रीमान् पंडितप्रवर टोडरमलजीए एम कह्युं छे के-‘भावकर्म ए आत्मानो भाव छे अने ते निश्चयथी आत्मानो ज छे, परंतु कर्मना निमित्तथी थाय छे तेथी व्यवहारथी तेने कर्मनो कहीए छीए’ वळी पंचास्तिकायमां पण भावकर्म आत्मानो भाव छे एम कह्युं छे. ते भावकर्म थाय छे ते पोतानो छे अने पोताथी थाय छे एम तेमां कह्युं छे. कर्मनो कहेवो ए तो निमित्तथी-व्यवहारथी कहेवाय छे. निश्चयथी तो विकारना परिणाम जीवमां थाय छे अने तेने जीव करे छे. उपर कह्युं ते बन्ने शास्त्रोमां शैली जुदी छे. एमां राग पोतानी पर्यायमां थाय छे ते तेम ज्ञान कराववानुं प्रयोजन छे. (स्वभावने ओळखे नहि अने) कोई एम मानी ले के आस्रवना परिणाम जडथी छे अने जडना छे तेने पर्यायनुं यथार्थ ज्ञान कराववा एम कह्युं के भावकर्म जीवना परिणाम छे. (अन्यथा ते आस्रवोथी निवृत्त थवा शा माटे उपाय करे?)
अहीं आ गाथामां अपेक्षा जुदी छे. भावकर्म प्रथम आत्माना (अवस्थामां) सिद्ध करी पछी ते जीवने नथी एम कह्युं छे. अहाहा! आत्मा चैतन्यस्वरूप ज्ञायकस्वभावी आखुं अभेद चैतन्यदळ छे. एनो अनुभव करतां आस्रवो अनुभवमां (ज्ञानमां) स्वपणे आवता नथी, जुदा ज रही जाय छे. माटे तेओ निश्चये जीवना नथी. अहीं द्रष्टि अपेक्षाए कथन कर्युं छे. भाई! वीतराग परमेश्वरनो मार्ग सूक्ष्म छे. (ज्यां जे शैली होय ते यथार्थ समजवी जोईए)
एक बीजु एम कहे के मिथ्यात्वना बे प्रकार छे, एक जीव मिथ्यात्व अने बीजु अजीव मिथ्यात्व. (समयसार गाथा १६४/६प) भाई! ए कई अपेक्षाए कह्युं छे? ए तो जीवना परिणाम जीवमां अने जडना परिणाम जडमां एटलुं बताववा कह्युं छे. ज्यारे अहीं तो कहे छे के चैतन्यस्वरूप जे त्रिकाळी शुद्ध आत्मा छे तेना ते आस्रव परिणाम नथी, कारण के अनुभूतिनी पर्याय निज चैतन्यस्वभावमां ढळतां ते आस्रवो अनुभूतिथी भिन्न रही जाय छे, अनुभवमां आवता नथी. भाई, आ तो अंतरना अनुभवनी वात छे. ते कांई कोरी पंडिताईथी पार पडे एम नथी.
अहाहा....! चैतन्यस्वरूपी जे जीववस्तु छे तेने मिथ्यात्वादि आस्रवो नथी. केम तेने नथी? केमके चैतन्यस्वरूप भगवाननी अनुभूति करतां ते आस्रवो जुदा रही जाय छे. तेनुं (आस्रवनुं) अस्तित्व भले हो, परंतु ते अस्तित्व पर अजीव तरीके रही जाय छे. आस्रवो जीवने नथी तेथी तेओ पर्यायमां तद्न उत्पन्न ज थता नथी एम नथी. ए