समयसार गाथा प० थी पप ] [ ११३ एकलो स्वभावनो पिंड छे. आवा स्वभावनी द्रष्टिमां गतिना विकारी परिणाम पुद्गलना छे कारण के ते परिणाम नीकळी जाय छे अने ते पर्यायमां जे उत्पन्न थाय छे ते द्रव्यगुणथी उत्पन्न थता नथी. अहो! वीतरागदेवनो मार्ग अद्भुत अने अलौकिक छे. सर्वज्ञ भगवान विदेहक्षेत्रमां हाल बिराजमान छे. अने चार ज्ञानना धणी, बार अंगनी रचना करनार गणधरदेवो पण तेमनी सभामां हाजराहजुर छे. तेमनो आ मार्ग छे. बापु! आ कांई आली- दुवालीए कहेलुं नथी.
हवे इन्द्रिय-भावेन्द्रिय अने द्रव्येन्द्रिय-ते बधीय पुद्गलना परिणाम छे एम कहे छे. भगवान आत्मा अतीन्द्रिय महाप्रभु छे. तेनी अपेक्षाए भावेन्द्रियने पण पुद्गलना परिणाम कह्या छे. आ द्रव्येन्द्रिय छे ए तो जड पुद्गलरूप ज छे. पण जे भावेन्द्रिय छे ते पर्याय अपेक्षाए जीवना ज परिणाम छे. परंतु द्रव्यद्रष्टिथी जोतां भावेन्द्रियनुं स्वरूप त्रिकाळी अतीन्द्रियस्वभावमां नथी अने ते नीकळी जाय छे. माटे भावेन्द्रिय पुद्गलना परिणाम छे. बीजी रीते कहीए तो भावेन्द्रियना परिणाम पोताथी ज छे जेमां कर्मना क्षयोपशमनुं निमित्तपणुं छे. आम भावेन्द्रियना परिणाम बे कारणथी थया छे एम कह्युं त्यां प्रमाणज्ञाननो विषय बताववा कह्युं छे, निमित्तनुं ज्ञान कराववा एम कह्युं छे. गजब वात छे! शास्त्रनी शैली कोई एवी छे के चारे बाजुथी मेळ खाय छे. अहो! अद्भुत धारा वहे छे!
बारमी गाथामां ‘व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान छे’ एम जे कह्युं छे तेमां निमित्तनी (पर पदार्थनी) वात नथी. तेमां तो भेदवाळी पर्यायनी वात छे. शुद्धता अने अशुद्धताना अंशो जे पर्यायमां छे तेने जाणवा ते व्यवहारनय छे. त्रिकाळी शुद्ध द्रव्य ते निश्चय अने पर्यायनुं ज्ञान करवुं ते व्यवहारनय. द्रव्य अने पर्याय बन्नेनुं ज्ञान थईने त्यां प्रमाणज्ञान थाय छे. पर निमित्तनी त्यां वात नथी. पण ज्यारे स्व अने पर एम बन्नेनी भेगी वात करवी होय त्यारे परने निमित्त कहेवामां आवे छे अने ते व्यवहार छे. गाथा ११ अने १२मां अंदरना व्यवहारनी-निमित्तनी वात छे.
(आ शास्त्रनी) ३१मी गाथामां आव्युं हतुं के भावेन्द्रिय खंड-खंड ज्ञानने जणावे छे, पूर्ण आत्माने नहि. तेथी ते परज्ञेय छे. भावेन्द्रियनो विषय जे खंड-खंड ज्ञान छे ते ज्ञायकनुं परज्ञेय छे. इन्द्रियने जीतवी एटले शुं? के (१) भावेन्द्रिय जे खंड-खंड ज्ञान छे ते (२) इन्द्रियो जड छे ते (३) अने तेना विषयो जे देव-गुरु-शास्त्र आदि छे ते-बधाय परज्ञेय- परद्रव्य-इन्द्रिय छे. ते त्रणेयने जीतवा एटले के तेनाथी अधिकभिन्न एक ज्ञायकभावने जाणवो ते इन्द्रियोनुं जीतवुं छे.