Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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११२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३

२२. पोतानुं फळ उत्पन्न करवामां समर्थ कर्म-अवस्था जेमनुं लक्षण छे एवां जे उदयस्थानो ते बधांय जीवने नथी. आ पर्यायमां थता विकारी भावनी वात छे, कर्मनी नहि. जेने जीव अर्थात् द्रव्यस्वभाव कहीए तेने आ उदयस्थानो नथी. जीवनी पर्यायमां उदयना जे असंख्य प्रकारो बने छे ते सघळाय जीवने नथी. चार गति, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि जेटला उदयना प्रकारो छे ते बधाय परमस्वभावभावरूप भगवान आत्माने नथी. माटे ते सर्वने पुद्गलना परिणाममय कह्या छे. एम तो उदयना स्थानोनो भाव जीवनी पोतानी पर्याय छे अने ते कर्मना निमित्तनी अपेक्षा विना पोतानामां थया छे. परंतु भगवान परमस्वभावभावनी द्रष्टि जेने थई छे एवा धर्मी जीवने, पर्यायनी अपेक्षाए उदयनां स्थानो पर्यायमां होवा छतां, द्रव्यबुद्धिए तेओ (पोतामां) नथी; अने ते उदयस्थानो नीकळी जाय छे माटे तेओने पुद्गलद्रव्यना परिणाममय कह्या छे.

उदयना-विकारना जेटला प्रकार छे ते बधाय निश्चयथी तो जीवथी थया छे, कर्मथी नहि; कारण के कर्म तो परद्रव्य छे, ते जीवने अडतुंय नथी तो पछी तेनाथी उदयभाव-विकार केम थाय? (न ज थाय). तत्त्वार्थसूत्रमां पण उदयभावो जीवना सत्त्वरूप कह्या छे केमके ते जीवनी पर्यायमां ते काळे पोताथी उत्पन्न थाय छे. परंतु अहीं तेमने पुद्गलना परिणाममय कह्या छे केमके त्रिकाळी स्वभावमां विकार थवानो कोई गुण नथी. तेथी त्रिकाळी स्वभावनी द्रष्टिमां, निमित्तने आधीन थयेला भाव निमित्तना छे एम कह्युं छे. तेथी करीने निमित्तथी उदयभाव थाय छे एम न समजवुं. निमित्त तो उपचारमात्र कारण छे, यथार्थ कारण तो पोतानुं छे. अरे! अत्यारे भगवानना विरह पडया! केवळज्ञान रह्युं नहि! तेम ज कोई चमत्कारिक ज्ञान पण रह्युं नहि! (खेद छे के बधा वादविवादमां अटवाई गया छे).

उदयनां स्थानो जीवना परिणाम छे, परंतु आ गाथामां तेओ शुद्ध जीवने नथी एम कह्युं छे ते स्वभावनी अपेक्षाए कह्युं छे. आत्मा त्रिकाळी शुद्ध चैतन्यस्वभावमय छे. ते स्वभावनी द्रष्टि थतां विकारना परिणाम थता नथी. तेथी विकारना परिणामने पुद्गलना परिणाम कह्या छे. आम वस्तुनुं स्वरूप जेम छे तेम यथार्थ समजवुं जोईए.

२३. हवे मार्गणास्थानोनी वात छे. तेमां प्रथम गतिनी वात छे. गतिना परिणाम तो जीवना छे. आ शरीर छे ते गति नथी. अंदर गतिनो जे विशेषभाव-उदयभाव छे ते गति छे. मनुष्य, देव, तिर्यंच अने नरकगतिना परिणाम जीवना छे. परंतु ते विकारी परिणाम होवाथी, त्रिकाळ स्वभावनी द्रष्टि थतां छूटी जाय छे. माटे ते परिणाम पुद्गलना छे एम कह्युं छे. अहीं बधाय-चौदे मार्गणास्थानोने पुद्गलना परिणाम कह्या छे. भाई! वस्तु जे आत्मा छे ए तो शुद्ध परमात्मस्वरूप चिद्घन छे. अनादि-अनंत छे, एक समयमां परिपूर्णस्वरूप प्रभु छे, (वस्तु तो) वर्तमानमां पूर्ण आखी छे, अहाहा....!