समयसार गाथा प० थी पप ] [ १११
योगस्थान एटले कंपन. जीवनो जे अयोगगुण छे तेनी ते विकारी पर्याय छे. ते कर्म- ग्रहणमां निमित्त छे. कर्म परमाणुनुं आववुं तो तेना पोताना उपादानना कारणे छे. परमाणुनो ते काळे ते रीते परिणमवानो काळ छे तेथी ते रीते कर्मरूपे परिणमे छे. तेमां योगनुं निमित्त कहेवुं ते व्यवहार छे. अहीं योगना परिणाम आत्माना नथी पण पुद्गलना छे एम जे कह्युं छे ते स्वभावनी द्रष्टि कराववा कह्युं छे. योगना-कंपनना विकारी परिणाम स्वभावथी उत्पन्न थता नथी. तेथी स्वभावनी द्रष्टि कराववा पर्यायमां जे परलक्षी विकार थाय छे तेने परमां नाखी दई ते पुद्गलना परिणाममय छे एम कह्युं छे. भाई! वस्तुनुं स्वरूप ज आवुं छे त्यां बीजुं शुं थाय?
प्रश्नः– कार्य तो बे कारणथी थाय छे अने तमे एक कारणथी मानो छो. माटे ते एकांत थई जाय छे.
उत्तरः– भाई, समयसारनी गाथा ३७२मां आवे छे के-‘माटी कुंभभावे उपजती थकी शुं कुंभारना स्वभावथी उपजे छे के माटीना स्वभावथी उपजे छे? जो कुंभारना स्वभावथी उपजती होय तो, जेमां घडो करवाना अहंकारथी भरेलो पुरुष रहेलो छे अने जेनो हाथ व्यापार करे छे एवुं जे पुरुषनुं शरीर तेना आकारे घडो थवो जोईए. परंतु एम तो थतुं नथी, कारण के अन्यद्रव्यना स्वभावे कोई द्रव्यना परिणामनो उत्पाद जोवामां आवतो नथी. जो आम छे तो पछी माटी कुंभारना स्वभावथी उपजती नथी, परंतु माटीना स्वभावथी ज उपजे छे. कारण के पोताना स्वभावे द्रव्यना परिणामनो उत्पाद जोवामां आवे छे.’ तेथी घडो माटीथी थयो छे; कुंभारथी थयो छे एम अमे जोता नथी. निमित्तथी कार्य थयुं छे एम अमे जोतां नथी.
कुंभार, ‘घडो करुं छुं’ एम अहंकारथी भरेलो होय तोपण तेनो स्वभाव कांई घडामां जतो-आवतो (प्रसरतो) नथी; अन्यथा कुंभारना स्वभावे घडो थवो जोईए. परंतु घडो तो माटीना स्वभावे ज थाय छे, कुंभारना स्वभावे थतो नथी. माटे घडानो र्क्ता माटी ज छे, कुंभार नहि. परंतु ज्यां बे कारण कह्यां छे त्यां, जे वास्तविक कारण नथी पण उपचारमात्र कारण छे तेने सहकारी देखीने, ते काळे ते होय छे एम जाणीने, बीजुं कारण छे एम कह्युं छे. आ प्रमाणे बे कारणथी कार्य थाय छे एम व्यवहार कर्यो छे. आवी वस्तुस्थिति छे. वीतरागनो मार्ग बहु सूक्ष्म अने गहन छे, भाई. अहीं वीस बोल पूरा थया.
२१. जुदी जुदी प्रकृतिओना परिणाम जेमनुं लक्षण छे एवां जे बंधस्थानो ते बधांय जीवने नथी. जेटला प्रकारना बंधना परिणाम उत्पन्न थाय छे ते बधाय पुद्गल-द्रव्यना परिणाममय छे. माटे ते अनुभूतिथी भिन्न छे.