Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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११० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३

१. विकारी भाव जे जीवमां थाय छे ते निश्चयथी जीवनी पोतानी पर्याय छे.

२. विकारी भावमां कर्म निमित्त छे एवुं (उपादान-निमित्तनुं साथे) ज्ञान करवुं ते प्रमाणज्ञान छे. विकारी भाव निश्चयथी जीवनी पर्याय छे एम निश्चय राखीने साथे निमित्तनुं ज्ञान करवुं ते प्रमाणज्ञान छे. ते सद्भूत उपचार-व्यवहार छे.

३. हवे भगवान आत्मा जे अनंत-अनंत गुणनुं परिपूर्ण शुद्ध चैतन्यदळ, चैतन्यरसनुं आखुं त्रिकाळी सत्त्व छे ते कदीय विकारपणे परिणमे नहि. माटे निमित्तथी थयेला विकारने निमित्तमां नाखीने पुद्गलना परिणाम कह्या छे. भाई! आ कांई खाली पंडिताईनो विषय नथी. भगवान वीतरागदेवनो मार्ग जेवो छे तेवो अंदर अंतरमां बेसवो जोईए.

श्री वासुपूज्य भगवाननी स्तुति करतां ‘स्वयंभूस्तोत्र’मां श्री समंतभद्रस्वामीए कह्युं छे के-कार्योमां बाह्य अने अभ्यंतर, निमित्त अने उपादान एम बन्ने कारणोनी समग्रता होवी ते आपना मतमां द्रव्यगत स्वभाव छे. श्री अकलंकदेवे पण कह्युं छे के बे कारणथी कार्य थाय छे. ए तो बे (उपादान-निमित्त) सिद्ध करवा छे, अने प्रमाणज्ञान कराववुं छे तेथी एम कह्युं छे. खरेखर तो कार्य थाय छे पोताथी पोताना कारणे, अने त्यारे निमित्त होय छे. परंतु निमित्तनी अपेक्षा छे एम नथी. श्री पंचास्तिकायनी ६२ मी गाथामां आवे छे के पर्यायमां जे विकार थाय छे ते पोताना षट्कारकथी थाय छे. द्रव्य-गुणथी तो नहि पण परकारकथी- निमित्तथी पण विकार उत्पन्न थतो नथी. अहीं अस्तिकाय सिद्ध करवुं छे. द्रव्य-गुण-पर्यायनुं अस्तित्व छे एम सिद्ध करवुं छे. तेथी विकार छे ते पर्यायना षट्कारकनुं परिणमन छे एम कह्युं छे. अहाहा! विकारनां र्क्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान अने अधिकरण स्वयं विकार छे. एक समयनी पर्यायमां षट्कारकनुं परिणमन द्रव्य-गुणनी के पर निमित्तनी अपेक्षा विना ज थाय छे. आ प्रमाणे त्यां निश्चयथी विकारना परिणाममां पर कारकनी अपेक्षा नथी एम कह्युं छे.

ज्यारे अहीं स्वभावनी द्रष्टि कराववी छे तेथी एम कह्युं के विकारना परिणाम पुद्गलना छे.

तथा ज्यां बे कारण कह्यां त्यां निश्चयथी तो पर्याय पोताथी ज पोताना षट्कारकथी ज थाय छे परंतु साथे निमित्त छे तेने भेळवीने प्रमाणज्ञान कराव्युं छे. भाई! खरेखर तो कारण एक ज छे. जेमके-मोक्षमार्ग एक ज छे. मार्ग कहो के कारण कहो ते एक ज अर्थ छे. मोक्षनुं कारण जेम एक ज छे तेम पर्यायनुं कारण निश्चयथी एक ज छे. प्रभु! सत्य तो आवुं छे, हों. जो कांई आडुं-अवळुं करवा जईश तो सत् सत् नहि रहे. वस्तुनो भाव ज यथार्थ आम छे अने एम ज बेसवो जोईए.