Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा प० थी पप ] [ १०९ छे एम जाणेलुं प्रयोजनवान छे. निमित्तथी कार्य थाय छे एम नथी, पण कार्यमां अन्य पदार्थ निमित्त छे एम जाणेलुं प्रयोजनवान छे.

ज्यां बे कारण कह्यां छे त्यां खरुं कारण तो उपादान एक ज छे. जेमके जे निश्चयमोक्षमार्ग छे ए ज मोक्षनुं कारण छे. मार्ग तो एक ज छे. परंतु साथे देव-गुरु-शास्त्र आदिना रागने सहचर देखी, मोक्षमार्गनुं निमित्त जाणी, एने व्यवहार मोक्षमार्ग कह्यो छे. निमित्त छे खरुं, पण ते उपादानमां कांई पण करे छे एम नथी. अहो! वस्तुनुं सत्य स्वरूप आवुं ज छे.

निश्चयथी दरेक द्रव्यनी पर्याय, तेनो ‘जन्मक्षण’-जे उत्पत्तिनो काळ छे. ते ज काळे थाय छे ए निश्चय छे, यथार्थ छे. हवे आ निश्चयने यथार्थपणे राखीने बीजी चीजनुं-निमित्तनुं ज्ञान कराववा बे कारण उपचारथी कह्यां छे. बीजी रीते कहीए तो प्रमाण छे ते पोते व्यवहारनो विषय छे कारण के बे भेगां थयां ने? कार्यनुं निश्चय कारण स्व अने तेनुं निमित्त पर एम प्रमाणमां बे भेगां थयां माटे ते व्यवहारनो विषय थई गयो. एक चीजना ज्ञानमां, बीजी चीजनुं साथे ज्ञान कर्युं एटले के बन्नेनुं साथे ज्ञान कर्युं ते प्रमाणज्ञान थयुं माटे प्रमाणज्ञान सद्भूतव्यवहारनो विषय थयो. आ प्रमाणे पंचाध्यायीमां पण कह्युं छे.

‘आत्मा रागने जाणे छे’ एम कहेवुं ते सद्भूत व्यवहार-उपचार छे. जाणवुं पोतानामां छे माटे सद्भूत अने खरेखर तो पोताने जाणे छे छतां रागने जाणे छे एम कहेवुं ते उपचार छे. ‘ज्ञान ते आत्मा’ एम भेद पाडवो ते सद्भूत व्यवहार अनुपचार छे. अहा! जुओ आचार्योए केवी स्पष्टता करी छे! प्रमाणज्ञान स्वद्रव्य अने रागने एटले परने एम बन्नेने एकीसाथे जाणे छे. ज्ञान परने जाणे ए सद्भूत व्यवहार-उपचार छे. माटे प्रमाणज्ञान पोते ज सद्भूत व्यवहारनयनो विषय थई गयो. वस्तुस्थिति ज आवी छे, बापु. आ कांई घरनी वात नथी पण वस्तुना घरनी वात छे.

अहीं कहे छे के कायवर्गणा, वचनवर्गणा अने मनोवर्गणाना कंपनना निमित्तथी आत्मामां जे कंपन थाय छे ते पुद्गलना परिणाम छे. आ जे कंपननी वात छे ते जड वर्गणाना कंपननी वात नथी. मन-वचन-कायना परमाणुओ तो जड छे ज. परंतु अहीं तो तेमना निमित्ते आत्मामां थता कंपनना परिणामने जड कह्या छे. योगनुं जे कंपन छे ते जीवनी पर्याय छे अने ते पोताथी ते काळे थयेली स्वयंनी ज जन्मक्षण छे. ते जड वर्गणाथी थई छे एम नथी. परंतु जीवना स्वभावमां कंपन थाय एवो स्वभाव नथी. तेथी स्वभावनी अपेक्षाए निमित्त होतां जीवमां थता कंपनने पुद्गलना परिणाम कह्या छे.

आ रीते त्रण प्रकारे कथन कर्युं.