Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१०८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३

जीव पोते (अशुद्ध उपादान) विकारनुं कारण छे ए ज निश्चय कारण छे. परंतु अहीं तो शुद्ध जीव विकारनुं कारण छे ज नहि एम सिद्ध करवुं छे. अहीं तो शुद्ध चैतन्यनी द्रष्टि कराववी छे ने? अहाहा? शुद्ध, बुद्व, चैतन्यघन, निर्मळानंद प्रभु एवा भगवान आत्मामां पुण्य-पापने उत्पन्न करे एवुं छे ज शुं? तेथी द्रव्यस्वभावनी द्रष्टिनी अपेक्षाए विकारना परिणामने पुद्गलना कहीने जीवमांथी काढी नाख्या छे. परंतु कोई एम ज पकडीने बेसी जाय के विकारी पर्याय कर्मनी छे, अने कर्मने लईने छे तो तेने एम कह्युं के विकार जीवमां, जीवथी जीवने लईने थाय छे भाई! जो तुं पर्याय छे एने मानतो नथी तो तुं मूढ छे. तथा तुं पर्यायमां ज मात्र लीन छे अने स्वभाव-द्रष्टि करतो नथी तोपण तुं मूढ छे, मूर्ख छे. तेथी प्रथम पर्यायनी स्वतंत्रतानो निर्णय करावीने पछी, त्रिकाळ स्वभावनी द्रष्टि-श्रद्धान कराववा विकारना परिणाम पुद्गलना छे एम अहीं कह्युं छे.

प्रश्नः– एक कार्यमां बे कारण होय छे ने?

समाधानः– बे कारण होय छे ते बराबर छे. ते पैकी एक यथार्थ वास्तविक कारण छे अने बीजुं उपचार आरोपित छे. वास्तविक कारण तो एक ज छे. निश्चयथी स्वशक्तिरूप निज उपादानथी कार्य थाय छे. ते वातने लक्षमां राखीने, निमित्तने कारणनो आरोप करीने, बे कारणथी कार्य थाय छे एम प्रमाणज्ञान दर्शाव्युं छे. निश्चय कारणनी वात राखीने प्रमाणज्ञान बीजा निमित्त कारणने भेळवे छे, निश्चय कारणने उडाडीने नहि. जो निश्चय कारणनो लोप करे तो प्रमाणज्ञान ज न थाय, बे कारण ज सिद्ध न थाय.

अहीं आ गाथामां जीवस्वभावनुं वर्णन चाले छे. आत्माना स्वभावमां योगनुं कंपन थवानो कोई गुण नथी. तेथी योगना कंपनने पुद्गलना परिणाममय कह्युं छे. त्यां गाथा ३७२मां कह्युं छे ते अनुसार कंपनना जे परिणाम छे ते स्वद्रव्यनी जीवनी पोतानी पर्याय छे अने ते पोताथी थाय छे. पर निमित्तथी के वर्गणाथी ते उत्पन्न थाय छे एम नथी. ज्यां पर्याय क्रमबद्ध स्वतंत्रपणे परिणमे त्यां पर शुं करे? पोताना परिणामनो उत्पादक पर छे ज नहि. सर्वविशुद्धज्ञान अधिकारमां त्यां परिणामनी-पर्यायनी स्वतंत्रता सिद्ध करी छे. त्यारे अहीं आ गाथाओमां त्रिकाळी स्वभावनुं परिणमन विकारी होई शके नहि तेथी योगना कंपननी पर्यायने पुद्गलपरिणाममय दर्शावीने स्वभावनी द्रष्टि करावी छे. तथा ज्यां बे कारण कह्यां छे त्यां जे निश्चय उपादानकारण छे तेने राखीने व्यवहार कारण भेळव्युं छे; निश्चय कारणने खोटुं पाडीने व्यवहार कारण भेळव्युं नथी. निश्चयथी योग-कंपन जीवनुं ज छे अने जीवथी ज थाय छे ए वात राखीने निमित्तने भेळव्युं छे. निश्चयने उडाडीने जो निमित्तने भेळवे तो बे कारणनुं यथार्थ ज्ञान-प्रमाण-ज्ञान थाय ज नहि. भाई! जेम व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान छे तेम आ निमित्त पण