समयसार गाथा प० थी पप ] [ १०७ निश्चय कह्यो; तथा पर्यायमां जे अशुद्धता-अपूर्णता छे तेने जाणवी ते व्यवहारनय कह्यो. तेम जीव द्रव्यमां कंपन के रागनी उत्पत्ति स्वतः (पोताथी) थाय छे, परथी नहि; अने ते परिणाम पोताना ज छे. छतां बाह्य कारणथी थाय छे एम कहेवुं ए निमित्तनुं ज्ञान करावनारुं व्यवहारनुं कथन छे. एमां निश्चयथी पर्याय पोताथी थाय छे एम जणावीने निमित्तनुं पण साथे ज्ञान कराव्युं छे, केमके निमित्त जाणेलुं प्रयोजनवान छे. व्यवहार जाणेलो प्रयोजनवान छे एम बारमी गाथामां कह्युं छे ने? ज्ञाननो स्वपरप्रकाशक स्वभाव छे. ते स्वने जाणे अने पर जे निमित्त होय तेने पण जाणे निमित्तथी कार्य थाय छे एम नहि पण कार्यकाळे निमित्तनी उपस्थिति छे. तेथी निमित्त जाणेलुं प्रयोजनवान छे, आदरेलुं नहि. बाह्य निमित्तथी राग उत्पन्न थाय छे के व्यवहाररत्नत्रयथी निश्चयरत्नत्रय उत्पन्न थाय छे एम कहेवुं ए व्यवहारनयनुं कथन छे. निश्चयथी तो निश्चय रत्नत्रय निज स्वद्रव्यना आश्रये ज थाय छे. आवी वात छे, भाई!
अहीं तो एकली स्वभावद्रष्टिनी अपेक्षाथी वात छे. तेथी ते रागना, कंपनना परिणामने पुद्गलना कह्या छे कारण के जे विभाव छे ते नीकळी जाय छे. भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्यस्वभावी ज्ञानानंदस्वरूप वस्तु छे. तो तेनुं परिणमन अशुद्ध केम होय? शुद्ध चैतन्यमय वस्तुनुं परिणमन तो शुद्ध चैतन्यमय होय, अशुद्ध न होय. तेथी अहीं अशुद्ध परिणमनने पुद्गलना परिणाममय कह्युं छे. अहीं त्रिकाळी ज्ञायक-स्वभावनी-शुद्ध उपादाननी द्रष्टि कराववानुं प्रयोजन छे.
ज्यारे गाथा ३७२मां जे विकारी अशुद्ध परिणाम थाय छे ते जीवना जीवमां थाय छे एम कह्युं छे ते, ते ते समयनी पर्यायनी जन्मक्षण सिद्ध करी छे. रागादि विकार निमित्तथी नीपजे छे एम नथी पण पोताथी पोतामां स्वतंत्रपणे थाय छे. एम त्यां सिद्ध कर्युं छे.
तथा स्वयंभूस्तोत्रमां भक्तिनो अधिकार होवाथी श्री समंतभद्रस्वामीए निमित्तनी हयाती (बर्हिव्याप्ति) सिद्ध करवा एम कह्युं के अभ्यंतर अने बाह्य कारणनी समग्रता ए कार्य उत्पत्तिनुं कारण छे. जो के कार्यनी उत्पत्तिनुं वास्तविक कारण तो स्व (अभ्यंतर कारण) ज छे. छतां जोडे जे निमित्त छे तेनुं ज्ञान कराववा तेने सहचर देखी उपचारथी आरोप करीने, निमित्तथी कार्य थयुं छे एम व्यवहारनयथी कहेवामां आव्युं छे. तेथी एम न समजवुं के निमित्त आव्युं माटे कार्य थयुं के निमित्त वडे कार्य थयुं छे. पर्यायमां जे विकार थाय छे ते शुं चीज छे? ते छे तो पोतानो (जीवनो) ज अपराध. ते कोई निमित्तनो-कर्मनो कराव्यो थयो छे एम नथी. तथा निमित्त छे माटे थयो छे एम पण नथी. विकारी के निर्विकारी पर्याय, थवा काळे पोतानी स्वतंत्रताथी थाय छे. ते वखते निमित्त तरीके बीजी चीज हयात छे, बस एटलुं ज.