१०६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ एकत्वना विशुद्ध चैतन्यपरिणाम थाय ते, चैतन्यपरिणामथी जुदापणुं जेनुं लक्षण छे एवा स्वपरनी एकत्वबुद्धिना अध्यवसायोथी भिन्न छे. जुओ, विशुद्ध चैतन्यना परिणमनथी अध्यात्मस्थानोनुं जुदुं लक्षण छे एम कहीने पछी ते एकत्वबुद्धिना परिणाम अनुभूतिथी भिन्न छे एम कह्युं छे. (आशय एम छे के स्वपर एकत्वबुद्धि बनी रहे त्यांसुधी शुद्ध चैतन्यना परिणाम उपजे नहि अने निज शुद्धात्माना आश्रये स्वानुभूति प्रगट थतां एकत्वबुद्धिना परिणाम उपजता नथी.)
१९. जुदी जुदी प्रकृतिओना रसना परिणाम जेमनुं लक्षण छे एवां जे अनुभागस्थानो ते बधांय जीवने नथी. अनुभागस्थानो तो जडरूप छे, पण आत्मामां तेना निमित्ते जे भाव थाय छे ते पण खरेखर जीवने नथी. कर्मना अनुभागना निमित्ते आत्मामां जे परिणाम थाय छे ते अनुभागस्थानो छे, अने ते जीवने नथी. एकला जडना अनुभाग-स्थानोनी आ वात नथी. पर्यायमां कर्मना रसना निमित्ते जे भावो थाय ते अनुभागस्थानो छे. ते भाव छे तो पोतानी पर्यायमां पण तेने अहीं पुद्गलद्रव्यना परिणाममय गण्या छे. स्वभावनी द्रष्टिथी जोतां स्वभाव, विकारना अनुभागपणे परिणमे एवो नथी. आत्मद्रव्यमां कोई गुण के शक्ति एवां नथी जे विकाररूपे परिणमे. तथा निज आत्मद्रव्यनो अनुभव करतां ते (अनुभागस्थानो) अनुभूतिथी भिन्न रही जाय छे. तेथी अनुभागस्थानो बधांय जीवने नथी.
२०. कायवर्गणा, वचनवर्गणा अने मनोवर्गणानुं कंपन जेमनुं लक्षण छे एवां जे योगस्थानो ते बधांय जीवने नथी. आ वातने आपणे त्रण प्रकारे विचारीए.
प्रथम वातः– आत्मामां जे योगनुं कंपन छे तेने जीवना स्वभावनी अपेक्षाए पुद्गलना परिणाम कह्या छे. कंपन छे तो जीवनी पर्यायमां; छतां जीवना त्रिकाळी स्वभावनी द्रष्टिए तेने पुद्गलना परिणाममां गण्या छे.
बीजी वातः– समयसार सर्वविशुद्ध अधिकारनी ३७२ मी गाथामां आवे छे के दरेक द्रव्यना परिणाम पोताथी थाय छे. जेम घडो माटीथी थाय छे, कुंभारथी एटले निमित्तथी नहि; तेम जीवद्रव्यनी कंपन के रागनी पर्याय जे ते समये स्वतंत्र पोताना कारण थाय छे, निमित्तना कारणे नहि. त्यां अशुद्ध उपादानथी उत्पन्न थयेली दशा पोतानी छे एम सिद्ध कर्युं छे. त्यारे अहीं शुद्ध उपादाननी द्रष्टिए ते कंपनना परिणाम पुद्गलना छे एम कह्युं छे.
हवे त्रीजी वातः– स्वयंभूस्तोत्रमां बाह्य अने अभ्यंतर एम बे कारणथी कार्य थाय छे एम आवे छे. हवे कार्य तो अभ्यंतर कारणथी ज थाय छे. परंतु कार्यकाळे जोडे निमित्त कोण छे एनुं त्यां ज्ञान कराववानुं प्रयोजन छे तेथी बीजुं बाह्य कारण पण कह्युं छे. जेम निश्चय स्वभावनुं भान थतां भूतार्थना आश्रये सम्यग्दर्शन थाय ए