समयसार गाथा प० थी पप ] [ १०प
उत्तरः– भाई! स्वरूपनी समजण विना ज अनंतकाळथी जीव संसारमां परिभ्रमण करे छे. श्रीमदे पण ए ज कह्युं छे ने केः-
अहीं आ बोलमां एक विशेषता छे. बीजा बधा बोलमां समुच्चय लीधुं छे. जेमके ‘प्रीतिरूप राग छे ते बधोय जीवने नथी कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे.’ आ बोलमां जे स्वपरनी एक्ताबुद्धिना भाव-अध्यवसाय कह्या ते विशुद्ध चैतन्यपरिणामथी जुदा लक्षणवाळा कह्या छे. अहीं एम कहेवुं छे के निज स्वरूपना आश्रये जे विशुद्ध चैतन्यपरिणाम थाय तेमां आ मिथ्या अध्यवसाय आवता नथी, उपजता नथी, अभावरूप रहे छे. तथा अध्यवसायमां-स्वपरनी एक्ता-बुद्धिना भावमां विशुद्ध चैतन्यपरिणाम रहेता नथी, उपजता नथी. बीजा बोल करतां आमां आ विशेषता लीधी छे के स्वपरनी एक्ताबुद्धिमां चैतन्यना विशुद्ध परिणाम नथी अने चैतन्यना विशुद्ध परिणाम थतां स्वपरनी एक्ताबुद्धि रहेती नथी.
प्रश्नः– अमारे वेपार-धंधो करवो, कुटुंबादिनुं भरण-पोषण करवुं, ईज्जत-आबरू साचववी के पछी बस आ ज समजवुं?
उत्तरः– भाई! हित करवुं होय तो मार्ग तो आ ज छे, बापु! स्वपरना एकत्व- परिणमनमां तारी चडती देगडी उडी जाय छे ए तो जो हुं परनुं करी शकुं, वेपार करी शकुं, पैसा कमाई शकुं, पैसा राखी शकुं, बीजाने आपी शकुं, वापरी शकुं, कुटुंबनुं पोषण करी शकुं, परनी दया पाळी शकुं तथा आबरू साचवी शकुं, -इत्यादि जे स्वपरनी एक्ताबुद्धिना अध्यवसाय छे ते विशुद्ध चैतन्यना परिणामथी विलक्षण छे, जुदा छे. ए मिथ्या अध्यवसायनी हयातीमां शुद्ध चैतन्यपरिणाम उत्पन्न थता नथी ए तो जो. अहीं टीकामां कह्युं छे ने के- स्वपरना एकपणानो अध्यास होय त्यारे, विशुद्ध चैतन्यपरिणामथी जुदापणुं जेमनुं लक्षण छे एवां जे अध्यात्मस्थानो ते जीवने नथी केमके ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे.’ अध्यात्मस्थानो एटले आत्मानी निर्मळतानां स्थानो एम अर्थ नथी. अध्यात्मस्थानोनो अर्थ स्वपरनी एकत्वबुद्धिनो अध्यवसाय छे, ए अध्यवसाय विशुद्ध चैतन्यपरिणामथी जुदो छे. अरे, जुदापणुं ज तेनुं लक्षण छे. बहु सूक्ष्म वात! अहो! आवी वात दिगंबरोना शास्त्रो सिवाय बीजे कयांय नथी.
अध्यात्मस्थानो सघळाय जीवने नथी. केम नथी? तो कहे छे के तेओ विशुद्ध चैतन्यपरिणामथी जुदा लक्षणवाळा छे. चिदानंदघन भगवान आत्माना आश्रये जे स्वरूप