Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१०४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ ‘विशुद्ध चैतन्यपरिणामथी’ एटले के स्वनी एक्ताना परिणामथी. आ पर्यायनी वात छे. स्वनी एक्ताना परिणामथी स्वपरनी एक्ताना परिणाम भिन्न छे.

बंध अधिकारना १७३मा कळशमां आवे छे के-हुं पर जीवनी रक्षा करुं, तेना प्राणनो नाश करुं, तेने सुख-दुःख आपुं एवो जे अध्यवसाय-स्वपरनी एक्ताबुद्धि-छे ते मिथ्यात्व छे. तेनो भगवाने निषेध कराव्यो छे. तेथी हुं-अमृतचंद्राचार्य एम समजु छुं के पर जेनो आश्रय छे एवो सघळोय व्यवहार छोडाव्यो छे. आचार्यदेव कहे छे के सर्व वस्तुओमां जे अध्यवसान थाय छे ते बधांय जिन भगवंतोए पूर्वोक्त रीते त्यागवा योग्य कह्यां छे तेथी अमे एम समजीए छीए के परना आश्रये जेटलो कोई व्यवहार थाय छे ते सघळोय भगवाने छोडाव्यो छे. आ महाव्रत, समिति, गुप्ति आदिना जे विकल्प छे ते व्यवहार छे अने ते परना आश्रय सहित छे. तेथी ते व्यवहार सघळोय छोडाव्यो छे. ‘तो पछी आ सत्पुरुषो एक सम्यक् निश्चयने ज निष्कंपपणे अंगीकार करीने शुद्धज्ञानघनस्वरूप निज महिमामां स्थिरता केम धरता नथी? आचार्य कहे छे के -आ प्रमाणे देव-गुरु-शास्त्रनी श्रद्धानो भाव, पंचमहाव्रतनो भाव के व्यवहार रत्नत्रयनो भाव ए सघळोय त्याज्य छे तो पछी संतो एक निज शुद्ध चैतन्यमां ज लीन केम रहेता नथी? (निज चैतन्यमां ज लीन रहेवुं जोईए).

हुं परने जीवाडी शकुं, तेना प्राणनी रक्षा करी शकुं, परना प्राण हरी शकुं, अनुकूळता- प्रतिकूळता आपी शकुं, भूख्याने अनाज अने तरस्याने पाणी पहोंचाडी दउं तथा गरीबोने पहेरवा कपडां अने रहेवा मकान दई दउं एवी जे बुद्धि छे ते बधीय एकत्वबुद्धिरूप अध्यवसाय छे, मिथ्यात्व छे. बापु! हुं परने कांई आपी शकुं छुं ए वात ज जूठी छे. कोई परनुं कांई करी शक्तो ज नथी. आ प्रमाणे पर साथे एकताबुद्धिना भाव-अध्यवसाय ते बधाय निज चैतन्यद्रव्यमां ढळेला विशुद्ध चैतन्य-परिणामथी भिन्न छे कारण के तेओ पुद्गल द्रव्यना परिणाममय छे.

भगवान आत्मा शुद्ध चैतन्यस्वभावी वस्तु छे. ते एकनो आश्रय लईने स्वाश्रये जे परिणाम थाय छे ते विशुद्ध चैतन्य-परिणाम छे. ते चैतन्यपरिणामथी आ मिथ्या अध्यवसाय सघळाय भिन्न छे, जुदा छे. चैतन्यना विशुद्ध परिणाम थाय त्यां आ स्वपरनी एक्ताबुद्धिना अध्यवसाय भाव रहेता नथी एम अहीं कहेवुं छे. तेथी अध्यात्मस्थानो सघळाय जीवने नथी केमके तेओ पुद्गल परिणाममय होवाथी अनुभूतिथी भिन्न छे. स्वानुभूति थतां स्वपरनी एक्ताबुद्धिना सघळा परिणाम भिन्न पडी जाय छे, एटले अभावरूप थई जाय छे. आवी वात छे.

प्रश्नः– तमे तो (स्वरूपने) समजवुं, समजवुं, समजवुं, बस एटलुं ज कह्या करो छो? (बीजुं कांई करवानुं तो कहेता नथी.)