Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा प० थी पप ] [ १०३ कर्मनो तो दोष छे नहि पण तारो ज दोष छे. तुं पोते तो महंत रहेवा इच्छे छे अने पोतानो दोष कमरदिकमां लगावे छे? पण जिनआज्ञा माने तो आवी अनीति संभवे नहि.’ जुओ विकार कर्मथी थाय छे एम माननारा अनीति करे छे. ए अनीति जैनदर्शनमां संभवित नथी. त्यां मोक्षमार्ग प्रकाशकमां एम कहेवुं छे के विकार थाय छे ते पोताना अपराधथी ज थाय छे, कर्मथी के निमित्तथी नहि. ज्यारे आ गाथामां अहीं एम कहे छे के जीवने विकार नथी केमके स्वानुभूति करतां विकारना परिणाम अने तेनुं निमित्त जे कर्म ते भिन्न रही जाय छे. तेथी आठेय कर्म जीवने नथी. अहीं स्वभावनी द्रष्टि कराववानुं प्रयोजन छे.

१४. जे छ पर्याप्तियोग्य अने त्रण शरीरयोग्य पुद्गलस्कंधरूप नोकर्म छे ते बधुंय जीवने नथी. आहार, शरीर, इन्द्रिय, भाषा, मन अने श्वासोच्छ्वास-एम छ पर्याप्तियोग्य जे पुद्गलस्कंधो छे तथा त्रण शरीरयोग्य जे पुद्गलस्कंधो छे ते नोकर्म छे. ते बधुंय जीवने नथी कारण के पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी पोतानी अनुभूतिथी भिन्न छे. चौद बोल थया.

१प. जे कर्मना रसनी शक्तिओना-अविभाग परिच्छेदोना समूहरूप वर्ग छे ते बधोय जीवने नथी केमके ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी पोतानी अनुभूतिथी भिन्न छे.

१६. जे वर्गोना समूहरूप वर्गणा छे ते बधीय जीवने नथी कारण के ते पुद्गलद्रव्यना परिणाममय होवाथी पोतानी अनुभूतिथी भिन्न छे.

१७. जे मंदतीव्र रसवाळां कर्मदळोना विशिष्ट न्यासरूप-वर्गणाओना समूहरूप-स्पर्धको छे ते बधाय जीवने नथी. जीवनुं स्वरूप तो सच्चिदानंदशक्तिमय छे. निजस्वरूपमां झुकाव करतां परिणाममां आनंदनो अनुभव आवे छे. परंतु तेमां कर्मना वर्गो के वर्गणाना समूहनो अनुभव आवतो नथी. जड तो जीवथी भिन्न ज छे. आ कर्मना वर्ग अने वर्गणाओ जे छे ते पुद्गल छे. तेथी तेओ शुद्ध चैतन्यथी भिन्न ज छे. परंतु ते तरफना वलणनो जे भाव छे ते पण स्वानुभूतिथी भिन्न छे. ए जड तरफना वलणवाळी दशा स्वद्रव्यना वलणवाळा भावथी जुदी पडी जाय छे माटे वर्ग, वर्गणा अने स्पर्धको बधाय जीवने नथी.

१८. स्वपरना एकपणानो अध्यास एवा जे परिणाम ते अध्यात्मस्थानो अर्थात् अध्यवसाय छे. विशुद्ध चैतन्य-परिणामथी जुदापणुं जेमनुं लक्षण छे एवां ए अध्यात्म-स्थानो जीवने नथी. अध्यात्मस्थान एटले आत्मानां स्थान नहीं. स्वपरनी एक्ताबुद्धिना अध्यवसायने अध्यात्मस्थान कह्यां छे. ते अध्यात्मस्थानो बधांय जीवने नथी. ‘बधांय’ एम कह्युं छे ने? एटले स्वपरनी एक्ताबुद्धिना जेटला भाव छे ते बधांय जीवने नथी.