Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१०२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ एम कहेवामां आवे छे. कर्म तो जड छे. शुं जड आत्माने रोकी शके छे? ‘कर्म बिचारे कौन, भूल मेरी अधिकाई.’ भूल मारी पोतानी ज छे. ‘अधिकाई’ एटले अधिक एम नहीं, पण पोतानी भूलने कारणे विकार थाय छे. अहीं गाथामां कहे छे के अंदर अनुभूति थतां ए विकारना परिणाम भिन्न रही जाय छे, अनुभवमां आवता नथी. आवो जैन परमेश्वरनो मार्ग लोकोए लौकिक जेवो करी नाख्यो छे.

प्रश्नः– ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम थाय तो ज्ञान उघडे ने?

उत्तरः– (ना). पोतानी योग्यताथी ज्ञान उघडे छे तेवी रीते पोतानी योग्यताथी आत्मामां (पर्यायमां) विकार थाय छे.

प्रश्नः– जीवनो स्वभाव तो केवळज्ञान छे. छतां वर्तमानमां जे संसार अवस्था छे तथा ज्ञानमां ओछप छे ते कर्मना उदयने कारणे छे के कर्मना उदय विना छे?

उत्तरः– वर्तमान संसार अवस्थामां ज्ञाननी जे ओछप छे ते पोताना कारणे छे. कर्मना उदयने कारणे थई छे एम नथी. एनुं उपादानकारण पोते आत्मा छे. पोतानी योग्यताथी ज ज्ञानमां ओछप थई छे, कर्मना कारणे नहि. कर्म तो जड परवस्तु छे. तेथी ज्ञानावरणादि कर्मो खरेखर कांई करतां नथी. पोतानुं अशुद्ध उपादान छे तेथी ज्ञानमां ओछप थई छे. कर्म तो त्यां निमित्त मात्र छे. कर्म मार्ग आपे तो क्षयोपशम थाय एम नथी. पोतानी योग्यताथी पोतामां अने कर्मना कारणे कर्ममां क्षयोपशम थाय छे. कर्मना उदयने कारणे ज्ञान हीणुं छे एम नथी. पण पोते ज्यारे ज्ञाननी हीणी दशारूपे परिणमे त्यारे ज्ञानावरणीय कर्म निमित्तमात्र छे.

परंतु अहीं बीजी वात छे. अहीं तो एम कहे छे के, वस्तु जे शुद्ध चैतन्य-स्वभावी आत्मा छे एमां ढळतां ते कर्मना परिणाम अनुभवमां आवता नथी, अनुभूतिथी भिन्न परपणे रही जाय छे. कर्मना जे परिणाम छे ते जड पुद्गलथी नीपजेला छे. तेथी शुद्ध चैतन्यस्वभावी आत्माथी तेओ भिन्न छे ए वात तो छे ज परंतु अहीं तो एम कहे छे के शुद्ध चैतन्यवस्तुनो अनुभव करतां, ते कर्मो तरफना वलणवाळी जे विकारी दशा ते अनुभूतिथी भिन्न रही जाय छे. माटे ते आठेय कर्म जीवने नथी. आयु, वेदनीय आदि कर्म जीवने नथी.

आगळ ६८मी गाथामां आवे छे के जवपूर्वक जे जव थाय छे ते जव छे. तेम पुद्गलथी पुद्गल थाय. त्यां अपेक्षा एम छे के जीवना स्वभावमां विकार नथी तथा विकार उत्पन्न करे एवी जीवनी कोई शक्ति के स्वभाव नथी. छतां पर्यायमां विकार छे तो एनो र्क्ता कोण छे तो कहे छे के पुद्गल त्यां पर्यायबुद्धि छोडाववा एम कह्युं के चौदेय गुणस्थान जीवने नथी. त्यारे मोक्षमार्ग प्रकाशकमां एम आवे छे के-‘तत्त्वनिर्णय करवामां कांई