Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा प० थी पप ] [ ११७ ने! आत्मा तो सदा भगवानस्वरूपे ज, परमात्मस्वरूपे ज छे. भाई! सिद्धना स्वरूपमां अने तारा स्वरूपमां शुं फेर छे? जे जिननुं स्वरूप छे ते ज आत्मानुं स्वरूप छे. वर्तमानमां ज परमात्मस्वभाव तारो छे. माटे तेमां द्रष्टि दे तो तारुं कल्याण थशे, तने आत्मानी प्राप्ति थशे. परमात्मस्वभाव उपर द्रष्टि दे तो तने परमात्मानी द्रष्टि प्राप्त थशे.

द्रष्टिनी पर्याय छे तो क्षणिक, परंतु ते पर्यायमां त्रिकाळी भगवाननो स्वीकार थतां पर्यायमां परमात्मा जणाय छे. ११मी गाथामां लीधुं छे के भूतार्थनो आश्रय करतां समकित थाय छे. वस्तु त्रिकाळी शुद्ध भगवान छे ते तरफ द्रष्टि ढळतां, ते सम्यक् थाय छे अने ते निर्मळ श्रद्धा-ज्ञान अने शांतिनी पर्यायथी आत्मा प्राप्त थाय छे. निर्विकार समाधिथी आत्मा प्राप्त थाय छे. परंतु व्यवहारना विकल्पथी आत्मा प्राप्त थतो नथी. व्यवहार हो भले, पण ते कांई निश्चयमां मदद करे छे एम नथी. तेम निमित्त हो भले, पण ते परमाणु के जीवनी ते ते काळे उत्पन्न थती पर्यायने कांई सहाय करे छे एम नथी.

प्रश्नः– निमित्त सहकारी छे एम आवे छे ने?

उत्तरः– निमित्त सहकारी छे एटले के साथे (समकाळे) छे एटलुं ज. ते साथे छे एटले सहकारी कह्युं, कांई सहाय-मदद करे छे माटे सहकारी छे एम नथी. जो निमित्त कार्यमां सहाय (मदद) करतुं होय तो धर्मास्तिकाय तो अनादिथी पडयुं छे. तेथी गति निरंतर थवी ज जोईए. पण एम नथी. जीव स्वयं गति करे त्यारे धर्मास्तिकाय निमित्त छे, नहींतर नहि. गतिना काळे जेम धर्मास्तिकाय निमित्त छे तेम (गति पूर्वक) स्थिरताना काळे अधर्मास्तिकाय निमित्त छे. आनो अर्थ शुं थयो? गति करे छे त्यारे पण अधर्मास्तिकाय तो मोजुद छे ज. तो पछी ते निमित्त केम न थयुं? भाई! एनो अर्थ एटलो ज छे के परिणमनस्वभावी जीव अने पुद्गलोने ज्यारे ते स्वयं स्वतंत्र गतिरूप परिणमन करे त्यारे धर्मास्तिकाय निमित्त थाय छे अने ज्यारे गति करतां स्वयं रोकाई जाय छे त्यारे अधर्मास्तिकाय निमित्त थाय छे. वस्तुनुं स्वरूप आवुं छे, भाई.

अहीं कहे छे के ज्ञानना भेद पाडवा ते पुद्गलना परिणाम छे. भगवान आत्मा अभेद एकरूप चैतन्यवस्तु छे. तेमां ज्ञानना भेदोनुं लक्ष करतां राग ज उत्पन्न थाय छे अने राग छे ते पुद्गलद्रव्यना परिणाम छे. नियमसार शुद्धभाव अधिकारमां (गाथा ४२मां) आ ज्ञानना भेदो जे मार्गणास्थानो छे तेने ‘विकल्पलक्षणानि’ कह्या छे. भेदनुं स्वरूप ज विकल्पलक्षण छे. गति, इन्द्रिय, आदि भेदस्वरूप जे चौद मार्गणास्थानो छे ते बधांय जीवने नथी. जीव कहो के शुद्धभाव कहो, बन्ने एक ज छे. नियमसारमां त्रिकाळ शुद्ध भावने जीव कह्यो छे अने अहीं जीवने त्रिकाळ शुद्धभाव कह्यो छे. आ मार्गणास्थानो ‘विकल्पलक्षणानि’ एटले के भेदस्वरूप जेनुं लक्षण छे एवा छे. तेथी ते जीवनुं