११८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-३ स्वरूप नथी. रागादि तो जीवनुं स्वरूप नथी पण भेदस्वरूप पण निश्चयथी जीव नथी. नियमसार गाथा प०मां आवे छे के पर्याय छे ते परद्रव्य छे अने तेथी निश्चये ते जीवनुं स्वरूप नथी. भाई! अभेद द्रष्टि थया विना सम्यग्दर्शन थतुं नथी. अने तेमां (अभेदनी द्रष्टि थवामां) निमित्त के व्यवहार कांई मददगार नथी. अहाहा! गजब वात छे! जेनुं लक्षण विकल्प-भेद छे एवा मति, श्रुत, आदि ज्ञानना भेदो शुद्ध जीवने नथी. आवो वीतरागनो मार्ग बहु झीणो छे. सावधानीथी (उपयोगने सूक्ष्म करीने) समजवानो प्रयत्न करवो जोईए.
आत्मा अभेद एकरूप त्रिकाळी द्रव्य छे. तेमां भेद केवो? तेमां राग केवो? अने तेमां एक समयनी पर्याय केवी? गंभीर वात छे, भाई! काळ थोडो छे अने करवानुं घणुं छे. त्यां वळी जीवने बहारनो मोह बहु छे. बहारनो त्याग जोईने ते खूब राजी-राजी थई जाय छे. पण ते बहारनो त्याग आत्मामां छे कयां? अहीं तो कहे छे के ज्ञानना भेद आत्मामां नथी तो ए सघळा बाह्य क्रियाकांड वस्तुमां कयांथी होय? भारे आकरी वात, भाई! प्रथम मिथ्यात्वना त्याग विना बीजो त्याग होई शके ज नहि. ए मिथ्यात्वना त्याग माटे शुं छोडवुं? तो कहे छे के निमित्तने, रागने अने भेदने द्रष्टिमांथी छोडवां, अने अभेद एकरूप निर्मळानंदस्वरूप भगवान आत्मानी द्रष्टि करवी. सर्वज्ञ परमेश्वरे आ ज मार्ग कह्यो छे.
हवे संयम एटले चारित्रनी वात करे छे. संयमना पण भेदो जीवने नथी केमके ते पुद्गल परिणाम छे. आत्मा शुद्ध ज्ञायकभाव त्रिकाळ एकरूप छे. तेमां संयमना भेद केवा? भेदना लक्षे तो राग ज थाय छे. माटे अभेदमां चारित्रना भेदो पाडवा ए पुद्गलना परिणाम छे. चारित्र पर्याय छे अने चारित्र त्रिकाळी गुण पण छे. ए त्रिकाळी चारित्र गुणना भेद पर्यायमां भासवा ते विकल्पनुं कारण छे. तेथी भेदने पुद्गलना परिणाम कह्या छे. संयमस्थानो ‘विकल्पलक्षणानि’ एटले भेदस्वरूप छे. माटे त्रिकाळी शुद्ध जीवद्रव्यमां आ संयमनां भेदस्थानो नथी. मार्ग बहु अलौकिक छे, भाई. परंतु लोकोए तेने बहारना मापथी कल्पी लीधो छे के आ त्याग कर्यो अने आ राग घटाडयो. पण ध्रुव चैतन्यवस्तु द्रष्टिमां आव्या विना राग केम घटे? अहाहा! रागनो तथा भेदनो जेमां अभाव छे तेवा द्रष्टिना विषयने द्रष्टिमां लीधा विना राग घटे केवी रीते (अर्थात् खरेखर राग त्यांसुधी घटतो नथी.)
मोक्षमार्ग प्रकाशकमां शिष्ये प्रश्न कर्यो छे के-प्रभु! शुभभाववाळाने अशुभ राग तो घटे छे. माटे एटलुं चारित्र तो कहो? त्यां कह्युं छे के सम्यग्दर्शन जेने होय, जेने अभेदनी द्रष्टि थई होय तेने ज शुभभावमां अशुभ राग घटे छे. पण जेने वस्तुनी द्रष्टि थई नथी, जे चैतन्यनिधान छे ते नजरमां आव्युं नथी, ते जीवने शुभभाव वखते अशुभभाव